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Article 370: जम्मू कश्मीर में बदलाव का दूसरा दौर, जीवन की राह हुई सुगम

जम्मू कश्मीर में बदलाव का दूसरा दौर आरंभ हो चुका है। पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन के बाद पहले चरण में सरकार का फोकस आमजन को मूलभूत सुविधाएं और बेहतर व पारदर्शी व्यवस्था उपलब्ध करवाने पर था। साथ ही आतंक मुक्त शासन मुहैया करवाने की भी चुनौती थी। दूसरे चरण में दशकों से वंचित और पीड़ित समाज को उनके हक दिलाने की व्यवस्था की जा रही है।

By Jagran NewsEdited By: Paras PandeyUpdated: Thu, 14 Dec 2023 06:43 AM (IST)
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राज्य में बदलाव का दूसरा दौर आरंभ हो चुका है।
अनिल गक्खड़, जम्मू। जम्मू कश्मीर में बदलाव का दूसरा दौर आरंभ हो चुका है। पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन के बाद पहले चरण में सरकार का फोकस आमजन को मूलभूत सुविधाएं और बेहतर व पारदर्शी व्यवस्था उपलब्ध करवाने पर था। साथ ही आतंक मुक्त शासन मुहैया करवाने की भी चुनौती थी।

चार वर्षों में केंद्र के दृढ़ निश्चय और सुरक्षा बलों के हौसले के बूते जम्मू कश्मीर ने एक विकासशील प्रदेश बनने की राह पर तेजी से कदम बढ़ाए हैं। पारदर्शी शासन व्यवस्था की ओर प्रदेश तेजी से कदम आगे बढ़ा रहा है। आधारभूत ढांचे के तेज विकास से प्रदेश में जीवन की राह सुगम हुई है।

अब दूसरे चरण में दशकों से वंचित और पीड़ित समाज को उनके हक दिलाने की व्यवस्था की जा रही है। निश्चित तौर पर कुछ लोगों को यह बदलाव रास नहीं आ रहे होंगे पर सात दशक तक प्रदेश में हाशिये पर रहे समाज अब अपने अधिकार पाकर आनंदित है। वह इसे सच्ची आजादी की संज्ञा दे रहे हैं। देश की संसद उन सभी वर्गों को उनका हक दिलाने के प्रति गंभीर दिख रही है।

पिड़ितों के लिए पहली बार बना कानून 

कश्मीरी हिंदुओं और गुलाम कश्मीर के विस्थापितों ने दशकों तक न केवल विस्थापन का दंश झेला बल्कि हर पल अपनी पहचान के संकट से जूझते रहे। घर व जमीन छूटी वह अलग, अपने ही देश में प्रवासियों की तरह जीते रहे। जम्मू कश्मीर की विधानसभा उनके हक की आवाज पर अकसर मौन धारण कर लेती। वह सड़क पर भी आए पर उनकी आवाज हर बार पीर पंजाल की पहाड़ियों से टकराकर खोकर रह जाती और व्यवस्था अपने ढर्रे पर चलती रहती। पहली बार उनके लिए कानून बन रहा है। 

उनकी आवाज को अब कोई नहीं दबा पाएगा। वह जम्मू कश्मीर की विधानसभा में हक से न केवल अपनी बात कह पाएंगे बल्कि सदन उनके दर्द को अनसुना नहीं कर पाएगा। महिलाओं, पिछड़ों और अनुसूचित जनजाति के परिवारों को उनके कानूनी हक पहुंचाने की राह अब प्रदेश में खुल चुकी है और उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए जल्द नए कानून आकार भी ले लेंगे।

देश में पिछड़ों और वंचित समाज के नाम पर राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों को जम्मू कश्मीर के पिछड़ों और वंचितों का दर्द कभी नहीं दिखा। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार इन समाज को हक दिलाने में जुटी है तो यह दल इसमें राजनीति खोज रहे हैं।

अल्पसंख्यकों को भी मिला धार्मिक हक 

इतना ही नहीं जम्मू कश्मीर में अल्पसंख्यक सिख समुदाय को पहली बार उनके धार्मिक हक प्रदान कर दिए गए हैं। प्रदेश सरकार ने आनंद मैरिज एक्ट लागू करने के फैसले पर मुहर लगाकर सिख भाइयों को अपनी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं के पालन की कानूनी अनुमति दे दी। दशकों तक सिख समाज को धार्मिक स्वतंत्रता के मूलभूत अधिकार से वंचित रखने वाले धर्म दूसरों पर धार्मिक कट्टरता का आक्षेप मढ़ते पल भर भी नहीं हिचकते। यह सत्य है कि मुट्ठी भर लोगों के लिए काम कर रही व्यवस्था अब 370 की बेडि़यों से मुक्त होकर सर्वजन हिताय का लक्ष्य सामने रखकर आगे बढ़ती दिख रही है।

बहुत कुछ किया गया और काफी किया जाना है। पाकिस्तान के आए विस्थापितों को आखिर अब नौकरी और शिक्षा के साथ मतदान का हक तो मिल गया है पर आज भी उन्हें विस्थापन के बदले कोई जमीन आवंटित नहीं हुई। देश के अन्य हिस्सों में आकर बसे परिवारों को यह हक बंटवारे के तुरंत बाद दे दिया गया था। ऐसे हजारों परिवार आज भी इसके लिए केंद्र सरकार की ओर देख रहे हैं।

जम्मू कश्मीर की बहुसंख्यक आबादी आज भी यहां अल्पसंख्यक के हक पा रही है और प्रदेश में सही मायने में अल्पसंख्यक हिंदुओं, बौद्ध, सिखों और जैन को यह हक कभी नहीं दिया गया। अपेक्षा है कि समय के साथ कानून बदलेंगे और उन्हें यह हक मिल पाएगा। प्रदेश के हजारों मंदिर, गुरुद्वारे और अन्य धार्मिक स्थल कट्टरवाद की भेंट चढ़ गए। सदियों से यह सिलसिला जारी है।

क्या सरकार इन क्षतिग्रस्त और नष्ट कर दिए गए धार्मिक स्थलों की सुध लेगी। अभी चुनौतियां काफी हैं पर अपेक्षा है कि धीरे-धीरे सरकार इनकी भी सुध लेगी और जम्मू कश्मीर देश में एक प्रगतिशील और सशक्त समाज की मिसाल बन जाएगा। 

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