जम्मू-कश्मीर में सियासी जमीन खिसकने से कांग्रेस बेचैन, नेताओं को सता रही भविष्य की चिंता
जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हाशिए पर चली गई है। 90 सीटों पर हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 6 सीटों पर ही चुनाव जीती है। इस प्रदर्शन के बाद कांग्रेस में अंतर्कलह बढ़ गई है। जम्मू संभाग के नेता अपने भविष्य को लेकर भी चिंतित हैं। वहीं तारिक हमीद कर्रा ने प्रदेश कांग्रेस संगठन में बदलाव के संकेत दिए हैं।
सतनाम सिंह, जम्मू। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस अपनी राजनीतिक जमीन लगभग खो चुकी है। पूर्व में कांग्रेस जम्मू क्षेत्र में हमेशा अच्छी संख्या में सीटें जीतती रही और कश्मीर में हमेशा से उसका क्षेत्रीय दलों के बीच दंगल चलता रहा।
करीब दो दशकों के दौरान भाजपा की धीरे-धीरे जड़ें गहरी होने से जम्मू संभाग कांग्रेस के हाथ से फिसलता चला गया। इसी कारण लोकसभा के बाद अब विधानसभा चुनाव में भी पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद प्रदेश कांग्रेस में अंतर्कलह बढ़ गई है।
अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं जम्मू संभाग के नेता
जम्मू संभाग के नेता अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो उठे हैं। अधिकांश ने नेकां से गठबंधन को प्रमुख रूप से जिम्मेदार ठहराया। इसके अलावा पार्टी नेता टिकट आवंटन, चुनाव से पहले प्रधान, तीन और कार्यवाहक प्रधानों की नियुक्ति और गंभीर होकर प्रचार न करने जैसे कई मुद्दों पर नाराज हैं।जम्मू में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं व हारे हुए उम्मीदवारों ने आपस में बैठकर बैठक कर उक्त मुद्दों पर मंथन किया। बता दें कि कांग्रेस का नेकां से गठबंधन होने के दौरान भी कई नेताओं ने खुलकर विरोध किया था। वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तारिक हमीद कर्रा ने भी संगठनात्मक ढांचे में बदलाव के संकेत दिए हैं।
भरत सिंह सोलंकी से है नाराजगी
सूत्रों ने बताया कि इसके लिए पार्टी के जम्मू कश्मीर प्रभारी भरत सिंह सोलंकी के कामकाज के तरीके पर नाराजगी है। सोलंकी ने जम्मू संभाग को गंभीरता से नहीं लिया। उनका अधिक ध्यान कश्मीर पर ही केंद्रित रहा।कांग्रेस ने चुनाव में जम्मू में 32 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। विजयपुर, कठुआ और उधमपुर पूर्व को छोड़कर पार्टी ने 29 उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाया। जम्मू संभाग की कुल 43 सीटों में से कांग्रेस ने मात्र एक ही राजौरी वाली सीट को जीता।
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