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जम्मू-कश्मीर की हवा में जहर घोल रहा पाकिस्तान, 500 पार पहुंचा AQI; लोगों का सांस लेना हुआ मुश्किल

जम्मू और सांबा में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने का कारण पाकिस्तान में पराली जलाना है। सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रदूषण का स्तर 500 के पार पहुंच गया है जिससे लोगों का सांस लेना मुश्किल हो गया है। जम्मू में भी धुएं का असर साफ दिख रहा है। पाकिस्तान के पंजाब की राजधानी लाहौर सबसे प्रदूषित आंकी गई है। वहां प्रदूषण स्तर 700 पार कर गया है।

By Jagran News Edited By: Prince Sharma Updated: Sat, 09 Nov 2024 02:56 PM (IST)
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जम्मू-कश्मीर में लोगों का सांस लेना हुआ मुश्किल (जागरण फोटो)
जागरण संवाददाता, जम्मू। पाकिस्तान अपने शहरों में प्रदूषित होती हवा के लिए भले ही भारत सरकार को जिम्मेदार ठहराए, लेकिन हकीकत यह है कि पाकिस्तान के खुद के पंजाब में धड़ल्ले से जल रही पराली जम्मू और सांबा जिलों की आबोहवा को प्रदूषित कर रही है।

दोनों जिलों के सीमांत क्षेत्रों में प्रदूषण का स्तर 500 के पार पहुंच गया है जिससे लोगों का सांस लेना मुश्किल हो गया है। जम्मू में भी आसमान पर धुंए का असर साफ दिख रहा। वहीं पाकिस्तान के पंजाब की राजधानी लाहौर सबसे प्रदूषित आंकी गई है। वहां यहां प्रदूषण स्तर 700 पार कर गया है।

लखनपुर से आगे पंजाब में पराली जलाने पर प्रतिबंध होने के कारण स्थिति कुछ नियंत्रित है, लेकिन पाकिस्तान की तरफ सीमांत क्षेत्रों में पराली जलाने से कठुआ, सांबा व जम्मू में सीमा से लगते इलाकों में प्रदूषण का स्तर खतरे के निशान से काफी अधिक पहुंच गया है। इसका असर अब शहरी इलाकों में देखने को मिल रहा है।

पराली जलाने का प्रभाव पाकिस्तानी पंजाब का है जो हमारे यहां भी देखने को मिल रहा है। -स. मोहन सिंह, प्रधान बॉर्डर किसान यूनियन सांबा हमारे यहां पराली नहीं जलाई जाती। अब मजदूरों की कमी के कारण कइ्र जगह कंबाइन मशीनों से कटाई हो रही है। इससे भी प्रदूषण बढ़ता है।

-चौ. प्रेमपाल, सदस्य बॉर्डर किसान यूनियन

जम्मू व सांबा जिले के साथ पाकिस्तान के जो इलाके लगते हैं, वहां फसलों की कटाई का काम अभी धीमा है। यहां पराली जलाने की अधिक सूचनाएं नहीं है।

हमारे यहां तो अभी कटाई का काम शुरू हुआ है। कुछ जगह तो कटाई शुरू भी नहीं हुई है। यहां पराली जलाने का अधिक प्रचलन नहीं है।

-चौधरी मोहन सिंह, किसान नेता

दोनों जिलों में सीमावर्ती इलाकों की तुलना में एयर क्वॉलिटी इंडेक्स कुछ बेहतर है। शुक्रवार को जम्मू में एयर क्वॉलिटी इंडेक्स 180 तक पहुंच गया। जम्मू में आमतौर पर एयर क्वॉलिटी इंडेक्स 100-120 के आसपास रहता है। अब यह इंडेक्स 180 तक पहुंच गया है।

सीमा से सटे हुए क्षेत्रों में प्रदूषण स्तर लगातार बढ़ रहा है

सांबा में शुक्रवार को एयर क्वॉलिटी इंडेक्स 178 रिकार्ड किया जोकि सामान्य से करीब 50 प्वाइंट अधिक है। सूत्रों के अनुसार जम्मू के सीमांत क्षेत्र आरएसपुरा से सटे पाकिस्तान के सियालकोट में प्रदूषण स्तर 500 से अधिक और सांबा के साथ लगते पाकिस्तान की शक्करगढ़ तहसील में 600 से अधिक प्रदूषण स्तर पहुंचा है। पराली जलाने से प्रदूषण स्तर लगातार बढ़ रहा है।

इन दिनों मैदानी सीमांत क्षेत्रों में स्मॉग जैसा मौसम बना हुआ है। इसका सबसे बड़ा कारण खेतों में पराली और फसलों के दूसरे अवशेष जलाना है। इन दिनों फसलों की कटाई में कंबाइन मशीनों का इस्तेमाल अधिक होने से भी स्मॉग बन रही है। हवा की स्पीड एक किलोमीटर प्रति घंटे से भी कम चल रही है जिसके चलते भारी धूल के कण भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर ट्रांसफर नहीं हो पाते।

जब तक वर्षा नहीं होती, जिन मैदानी क्षेत्रों में स्मॉग भरी हुई है, वह उसी तरह बनी रहेगी। आने वाले कुछ दिनों में पश्चिमी विक्षोभ का दवाब बन रहा है। जिसके चलते उत्तरी कश्मीर के कुछ क्षेत्रों में हल्की वर्षा एवं बर्फबारी की संभावना है। इसी सप्ताह के अंत में एक और प्रेशर बनता दिख रहा है जिसके बाद स्मॉग कुछ कम होगी।

-डॉ. महेंद्र सिंह, शेर-ए-कश्मीर कृषि विवि के मौसम विशेषज्ञ

धुंध के कारण पाकिस्तान के कई जिलों में पार्क, जू और स्कूल बंद

सभी निजी और सरकारी स्कूलों एवं कॉलेजों को 17 नवंबर तक बंद करने के बाद पाकिस्तान में पंजाब प्रांत की सरकार ने शुक्रवार को सभी सार्वजनिक पार्कों, चिड़ियाघरों, संग्रहालयों, ऐतिहासिक स्थलों और खेल के मैदानों को भी 17 नवंबर तक बंद कर दिया।

प्रांत का एक बड़ा हिस्सा घनी धुंध का सामना कर रहा है और वायु गुणवत्ता सूचकांक खतरनाक स्तर पर बना हुआ है। अक्टूबर से ही 1.4 करोड़ की जनसंख्या वाला लाहौर शहर धुंध का सामना कर रहा है।

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आरएसपुरा पाकिस्तान में किसान बिना रोकटोक पराली जलाते हैं जिसका असर हमारे पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी देखने को मिलता है। यहां कठुआ व सांबा जिला पंजाब के साथ लगता है। इन जिलों में पाकिस्तानी पंजाब में पराली जलाने का प्रभाव अधिक देखने को मिलता है।

-डॉ. यशपाल, पर्यावरण वैज्ञानी, प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण समिति

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