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Jammu News: रामबन के परनोट गांव के 100 मकानों में आई दरारें, सुरक्षित स्थान पर भेजे गए लोग; जांच के लिए पहुंची टीम

रामबन जिले में रामबन-गूल मार्ग पर जमीन धंसने से परनोट गांव में 100 मकान क्षतिग्रस्त हो गए। विशेषज्ञों की टीम कारणों की जांच के लिए दिल्ली से परनोत पहुंची। जम्मू विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों की टीम भी क्षेत्र में अध्ययन करने के लिए जाएगी। वहीं मकानों में दरार के चलते प्रशासन ने लोगों को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया है इसके साथ ही क्षेत्र में भय का माहौल बना हुआ है।

By rohit jandiyal Edited By: Deepak Saxena Updated: Sat, 27 Apr 2024 06:56 PM (IST)
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रामबन के परनोट गांव के कई मकानों में आई दरारें, सुरक्षित स्थान पर भेजे गए लोग (सांकेतिक)।
रोहित जंडियाल, जम्मू। जम्मू संभाग के रामबन जिले में रामबन-गूल मार्ग पर परनोट गांव में जमीन धंसने से 100 घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं। मार्ग बंद हो गया है और पूरे क्षेत्र में भारी नुकसान हुआ है। हालांकि प्रशासन ने सभी घरों को खाली करवाकर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया है। लेकिन इससे पूरे क्षेत्र में भय का माहौल है और इस क्षेत्र में फिर से लोगों को स्थापित करने पर प्रश्नचिन्ह लग गया है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह पूरा क्षेत्र काफी संवेदनशील है और यहां पर होने वाले कायों में विशेषज्ञों की सलाह नहीं लिया जाना भी इस हालात का एक प्रमुख कारण है। वहीं अब जमीन धंसने के कारणों की जांच के लिए दिल्ली से एक टीम रामबन में पहुंची है।

रामबन-गूल मार्ग पर परनोत की दो पंचायतें स्थित हैं। परनोत-ए और परनोत-बी। परनोत-ए पंचायत में जमीन धंसी है और इससे करीब तीन से चार किलोमीटर का पूरा क्षेत्र प्रभावित है और लगातार अभी भी जमीन धंस रही है। इस पूरे क्षेत्र को पहले से ही सिंकिंग जोन भी कहा जाता है। यहां की मिट्टी के सैंपल लेकर जांच की जाएगी।

हालांकि अभी अधिकारिक तौर पर तो जमीन धंसने के कारणों के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा रहा है लेकिन गैर अधिकारिक तौर पर एक अधिकारी ने बताया कि इस क्षेत्र में पानी की निकासी के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं है। यहां पर रहने वाले लोगों के घरों से वषों से पानी बह रहा है। यहां के पहाड़ भी अभी बहुत पुराने नहीं हैं। यहां की मिट्टी की पत्थरों पर पकड़ बहुत कम है। इस कारण भी यह जगह लगातार धंस रही है।

वहीं, जम्मू विश्वविद्यालय में जियालोजी विभाग के प्रोफेसर और इस पूरे क्षेत्र में हो रहे भूस्खलन की स्टडी कर रहे प्रो. एसके पंडिता का कहना है कि इस क्षेत्र में जमीन धंसने के स्पष्ट कारण तो अभी नहीं मालूम है। लेकिन यहां के पहाड़ों की सख्त चट्टानें नहीं है। नरम चट्टानें होने और सड़कों व अन्य परियोजनाओं के लिए पहाड़ों की कटाई के कारण वर्टिकल स्लोप बन जाती है। फिर वर्षा होने के कारण यहां पर पानी भरता रहता है। साथ ही चिनाब दरिया होने के कारण यहां पर पहले से ही एक चुनौती है।

विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भूस्खलन पर कर रहे शोध

इस क्षेत्र में यह देखा गया है कि यहां पर पहाड़ों को काटते समय विशेषज्ञों की राय नहीं ली जाती है। यही कारण है कि इस पूरे क्षेत्र में जमीन धंसती जा रही है। उनका कहना है कि जल्दी ही उनकी पूरी टीम इस क्षेत्र का दौरा करेगी और यहां की मिट्टी के सैंपल लेकर अपनी रिपोर्ट देगी। हालांकि यह अधिकारिक टीम नहीं है मगर विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों की यह टीम जनहित में इस पूरे क्षेत्र में होने वाले भूस्खलनों पर शोध कर रहे हैं।

जम्मू विश्वविद्यालय में ही जियालोजी विभाग के प्रोफेसर डा. युद्धवीर सिंह का कहना है कि इस क्षेत्र के पहाड़ बहुत संवेदनशील है और यहां पर होने वाले निर्माण कायों के कारण भी इस प्रकार की स्थिति हुई है। पानी की निकासी के लिए कोई जगह नहीं है। घरों से निकलने वाला पानी और वर्षा का पानी इस क्षेत्र में जब लगातार जमा हो रहा है तो भी जमीन धंसना शुरू हो जाती है। डोडा के ठाठरी में भी इसी तरह दरारें आई थी। सही कारणों का पता इस जगह का अध्ययन करने के बाद ही लग पाएगा।

पहले भी हुए हादसे

रामबन व डोडा जिले में इसी प्रकार के मामले पहले भी सामने आए हैं। इसी वर्ष फरवरी महीने में रामबन के दुकसर दलवा गांव में जमीन धंसने के कारण चालीस घरों और एक स्कूल की इमारत में दरारें आ गई थी। यही नहीं डोडा जिले के ठाठरी क्षेत्र में भी कई मकानों और दुकानों में दरारें आई थी। तब विशेषज्ञों की एक टीम ने जांच में यह पाया था कि इस ठाठरी में जमीन धंस नहीं रही है। क्षेत्र में ढांचागत निर्माण कार्य की प्रणाली को सही तरीके से अपनाया नहीं गया। नालियों की व्यवस्था सही नहीं थी।

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पहले हुआ था अध्ययन

जिस क्षेत्र में जमीन धंसने के कारण मकान क्षतिग्रस्त हुए हैं, वहां पर पहले स्लाटर हाउस बनाने का प्रस्ताव भी था। अधिकारियों का कहना है कि इसके लिए दस करोड़ रुपये मंजूर भी हुए है लेकिन जब इस क्षेत्र की मिट्टी के सैंपल लेकर अध्ययन हुआ तो इस क्षेत्र को निर्माण के योग्य नहीं समझा गया। यहां पर स्लाटर हाउस नहीं बनाया गया। उनका कहना है कि अगर बिना अध्ययन के स्लाटर हाउस बनाया होता तो वे भी क्षतिग्रस्त हो जाता।

जियोलॉजी और माइनिंग के निदेशक पवन सिंह राठौड़ ने कहा कि हमसे जब भी कोई विभाग या कोई पीएसयू किसी क्षेत्र का सर्वे करने के लिए कहता है तो हमारी टीम मौके पर जाती है। अभी रामबन से किसी ने भी इस हादसे के बाद सर्वे के लिए नहीं कहा है। अगर कहा जाएगा तो जरूर क्षेत्र का सर्वे किया जाएगा।

प्रदेश युवा कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष फिरोज़ खान भी परनोत में पहुंचे थे। उनका कहना है कि नदी के तलों में मलबा डालने के कारण इसके बहाव में बदलाव आया है। विशेष रूप से रामबन में जल विद्युत परियोजनाओं, राजमार्गों, अनियोजित कटाई, विस्फोट गतिविधियां होने के कारण भी ऐसी स्थिति हुई है।

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