बेड़ियां तोड़ खेलों में भी आगे बढ़ रहीं कश्मीर की बेटियां, सबसे छोटी आयु की महिला हाकी कोच लिख रही इबारत
कश्मीर की पहली और सबसे छोटी आयु की महिला हाकी कोच रीबू हसन हैं। 24 वर्षीय रीबू लड़कों को भी हाकी के गुर सिखा रही हैं। रीबू उत्तरी कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के साथ सटे जिला कुपवाड़ा में हाकी के खिलाडिय़ों की नयी पौध तैयार करने में जुटी हैं।
By Jagran NewsEdited By: Lokesh Chandra MishraUpdated: Sun, 09 Oct 2022 06:32 PM (IST)
श्रीनगर, नवीन नवाज : कश्मीर में तेजी से सुधरते हालात और बह रही बदलाव की बयार के बीच मजहबी और सामाजिक बेड़ियों को तोड़कर घाटी की बेटियां खेल की दुनिया में भी आगे बढ़ रही हैं। इन्हीं में से एक है कश्मीर की पहली और सबसे छोटी आयु की महिला हाकी कोच रीबू हसन। 24 वर्षीय रीबू सिर्फ लड़कियों को ही नहीं, बल्कि लड़कों को भी हाकी के गुर सिखा रही हैं। रीबू उत्तरी कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के साथ सटे जिला कुपवाड़ा में हाकी के खिलाडिय़ों की नयी पौध तैयार करने में जुटी हैं।
खास बात यह है कि हरफनमौला रीबू फ्लोरबाल, कैरम, जूडो, फुटबाल, क्रिकेट और बाल हाकी भी खेलती हैं। बाल हाकी में उन्होंने चंडीगढ़ में हुई राष्ट्रीय प्रतियोगिता में रजत पदक प्राप्त किया था। श्रीनगर का प्रवेशद्वार कहे जाने वाले पंथाचौक के साथ सटे लास्जन की रहने वाली रीबू हसन ने दैनिक जागरण के साथ बातचीत में कहा कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि हाकी खेलूंगी, लेकिन वर्ष 2014 की शुरुआत में जब पहली बार हाकी देखी तो मैं और हाकी एक-दूसरे के हो गए।
रीबू ने कहा कि कश्मीर में क्रिकेट, फुटबाल के मुकाबले हाकी को कम तरजीह दी जाती है। जब मैंने अपने स्वजन को बताया कि मैं हाकी खेलना चाहती हूं तो उन्होंने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि हाकी में भविष्य नहीं है। उन्हें कई बार मेरे कारण कुछ लोगों के ताने भी सहने पड़े। कहा गया कि हाकी पुरुषों का खेल है, एक लड़की हाकी लेकर मैदान में उतरेगी तो कैसे लगेगी। मेरे पिता गुलाम हसन मीर और मां मैमूना ने मुझे फुटबाल खेलने के लिए कहा, क्योंकि मुझे आल इंडिया फुटबाल फेडरेशन की तरफ से भी फुटबाल में प्रशिक्षण के लिए चुना गया था। मैंने यह कोर्स भी किया, लेकिन इसमें मेरा मन नहीं लगा।
रीबू ने कहा कि जब मैंने हाकी को अपनाने का फैसला किया तो उस समय कश्मीर में बहुत कम लड़कियां हाकी खेलती थीं। हाकी खेलने वाले लड़के भी बहुत कम ही थे। घर वालों के एतराज के बावजूद मैंने कहा कि मुझे यही करना है। कश्मीर में हाकी को लोकप्रिय बनाना और इसमें खुद को साबित करना ही मेरे लिए चुनौती बन गया। मैंने लोगों की बातें नजर अंदाज की और खेल पर ध्यान लगाना शुरू किया। यहां हाकी के खेल के लिए बुनियादी सुविधाएं भी नहीं थी, मैदान भी लड़कों तक सीमित था।
सिर्फ फिजिकल एजूकेशन के प्रोफेसर जेएस मेहता ने दिया साथ
गेजुएट रीबू हसन ने बताया कि जब मेरा किसी ने साथ नहीं दिया तो उस समय यहां कालेज में फिजिकल एजूकेशन के प्रोफेसर जेएस मेहता ने मेरा साथ दिया। वह मेरे साथ एक दीवार बनकर खड़े रहे। उन्होंने मेरे माता-पिता को भी मनाया और कहा कि आप यकीन रखो, एक दिन यही आपका नाम करेगी। यही हुआ और आज मैं कश्मीर की पहली महिला हाकी कोच हूं। मैं नेशनल इंस्टीट्यूट आफ स्पोर्ट्स (एनआइएस) से प्रमाणित हूं। पिछले चार साल से कोचिंग प्रदान कर रही हूं। कश्मीर में हाकी के महिला और पुरुष खिलाडिय़ों में से मैं अकेली हूं, जिसने राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल सीनियर हाकी चैंपियनशिप तीन वार खेली है। यह प्रतियोगिता हाकी इंडिया द्वारा आयोजित की जाती है। मैंने पहली राष्ट्रीय चैंपियनशिप वर्ष 2016 में बेंगलुरु में खेली थी। रांची और हरियाणा में भी खेल चुकी हूं।कश्मीर में हाकी की बहुत संभावनाएं
इस समय रीबू खेलो इंडिया के तहत प्रदेश में हाकी के नए खिलाडिय़ों को तैयार करने में जुटी हुई हैं। जम्मू कश्मीर खेल परिषद ने उन्हें जिला कुपवाड़ा में कोच नियुक्त किया है। रीबू ने कहा कि कुपवाड़ा में लड़कियां और लड़के दोनों सीखने आते हैं। शुरू में लगभग 100 खिलाड़ी थे, जिनमें कुछ तो मेरे हम उम्र भी थे। बाद में लगभग 150 लड़के-लड़कियों में से मैंने 60 लोगों को कोङ्क्षचग के लिए चुना। कश्मीर में हाकी के भविष्य को लेकर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यहां बहुत संभावना हैं। जितनी ज्यादा प्रतियोगिताएं होंंगी, उतने ही खिलाड़ी सामने आएंगे। खेल सुविधाएं भी ज्यादा से ज्यादा होनी चाहिए।
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