Rajnath Singh in Siachen: 'दीपावली का पहला दीपक, होली का पहला रंग सैनिकों संग', राजनाथ सिंह ने जवानों से किया संवाद
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह सोमवार को दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन पहुंचें। यहां वह उन्होंने जवानों से मिलकर उनका हौसला बढ़ाया। राजनाथ बोले विषम परिस्थिति में देशसेवा का भारतीय सैनिकों का जज्बा अतुलनीय है। रक्षामंत्री सोमवार सुबह सियाचिन के आधार शिविर में वॉर मेमोरियल में सेना के बलिदानियों को श्रद्धाअंजलि अर्पित करने के बाद सैनिकों को संबोधित कर रहे थे।
राज्य ब्यूरो, जम्मू। (Rajnath Singh Siachen Visit) जागरण रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि विश्व के सबसे उंचे रणक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में तैनात भारतीय सेना, देश की मजबूत इच्छाशक्ति व दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। विषम परिस्थितियों में देशसेवा करने का भारतीय सैनिकों का जज्बा अतुलनीय है। सियाचिन के आधार शिविर कुमार पोस्ट पर पहुंचे रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि फौलादी इरादे रखने वाले भारतीय सैनिक किसी देवता से कम नही हैं।
वॉर मेमोरियल में सेना के बलिदानियों को दी श्रद्धांजलि
वे उस देवीय वस्त्र की तरह हैं जिसने भक्त प्रहलाद को होलिका द्वारा आग में जलाने से बचाया था। रक्षामंत्री सोमवार सुबह सियाचिन ग्लेशियर के आधार शिविर में वॉर मेमोरियल में सेना के बलिदानियों को श्रद्धासुमन अर्पित करने के बाद सैनिकों को संबोधित कर रहे थे। भारतीय सैनिकों को देश की मजबूत इच्छाशक्ति का भी प्रतीक करार देते हुए रक्षामंत्री ने कहा कि हिमालय की तरह अडिग होकर सियाचिन ग्लेशियर में देशसेवा करने के लिए मैं आपका अभनंदन करता हूं।
होली पर आना चाहता था लेकिन मौसम विपरीत था -राजनाथ
उन्होंने कहा कि मैं होली का त्योहार आपके साथ मनाने के लिए गत माह सियाचिन आना चाहता था। खराब मौसम के कारण सियाचिन में न आ पाने के कारण मैंने होली का त्यौहार लेह में सैनिकों के साथ मनाया था। सैनिकों को होली के त्यौहार की शुभकामनाएं देते हुए रक्षामंत्री ने कहा कि मुझे होली पर सियाचिन ग्लेशियर न आने की वेदना थी, इसीलिए मैं आज आया हूं।
राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने कहा मैं रक्षामंत्री के रूप में नहीं, एक स्वजन के रूप में आज आपके बीच आया हूं। रक्षामंत्री ने दोहराया कि दीपावली का पहला दीपक व होली का पहला रंग सैनिकों के साथ ही होना चाहिए। देश की परंपरा है कि हम अच्छी शुरूआत भगवान को भोग लगाने से करते हैं। इसके बाद संत महात्मा, श्रेष्ठजनों को भोजन अर्पित करने के बाद खुद खाते हैं।
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