गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) के छह में से चार नेताओं के चुनाव मैदान से हटने के बाद मुकाबला और रोचक हो रहा है।बागी सबकी चिंता बढ़ा रहे हैं और नेकां-कांग्रेस दोस्ताना मुकाबला भी गठबंधन के सामने चुनौती भी खड़ी हो सकती है। भाजपा अपनी पुरानी सीटों को बचाने के प्रयास में है।
आठ विधानसभा क्षेत्रों पर 18 सितंबर को होगी वोटिंग
डोडा, किश्तवाड़ और रामबन के आठ विधानसभा क्षेत्रों पर 18 सितंबर को मतदान होना है। इस क्षेत्र में कुल 64 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें सात पूर्व मंत्री, चार महिलाएं और 25 निर्दलीय हैं।भद्रवाह में 10 उम्मीदवार, डोडा और इंद्रवाल में नौ-नौ, डोडा पश्चिम और रामबन में आठ-आठ, किश्तवाड़ और बनिहाल में सात-सात और पाडर-नागसेनी में छह उम्मीदवार मैदान में हैं।
डोडा पश्चिम और पाडर-नागसेनी में पहली बार होगा चुनाव
परिसीमन के बाद डोडा पश्चिम और पाडर-नागसेनी नए विधानसभा क्षेत्र बनाए गए हैं। ऐसे में इन क्षेत्रों में पहली बार चुनाव होने जा रहा है। कहने को तो यहां नेकां-कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन बनिहाल, भद्रवाह और डोडा में दोनों दल आमने-सामने भी हैं। वहीं, इंद्रवाल से नेकां के बागी उम्मीदवार भी कांग्रेस की परेशानी बढ़ा रहे हैं।
इन सीटों पर भाजपा के दो बागी आजमा रहे हैं किस्मत
हालांकि भाजपा के भी दो बागी रामबन और पाडर-नागसेनी निर्वाचन क्षेत्रों से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। डीपीएपी ने छह प्रत्याशी थे पर पूर्व महाधिवक्ता मोहम्मद असलम गोनी भद्रवाह, फातिमा बेगम इंद्रवाल, आसिफ अहमद खांडे बनिहाल और गिरधारी लाल भाऊ रामबन से चुनाव मैदान से हट गए। इसका फायदा किसे मिलेगा फिलहाल कहना मुश्किल है।
किश्तवाड़ के इंद्रवाल में होगा दिलचस्प मुकाबला
किश्तवाड़ जिले के इंद्रवाल क्षेत्र में बहुकोणीय मुकाबले की उम्मीद है। यहां से कांग्रेस से तीन बार विधायक रहे पूर्व मंत्री गुलाम मोहम्मद सरूरी को डीपीएपी से टिकट न मिलने के बाद निर्दलीय ही मैदान में उतरना पड़ा। सरूरी 2002, 2008 और 2014 के चुनाव में लगातार इस सीट से जीते थे।
नेकां-कांग्रेस गठबंधन से कांग्रेस के शेख जफरुल्ला और भाजपा के तारिक हुसैन से उनका मुकाबला है, लेकिन नेकां के बागी प्यारे लाल शर्मा भी चुनाव मैदान में है। हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी लाल सिंह को यहां से सबसे अधिक 18,832 वोट मिले थे।इसके बाद भाजपा के डॉ. जितेंद्र सिंह को 11,671 और सरूरी को 10,373 वोट ही मिले थे। वर्ष 2014 में सरूरी ने भाजपा के तारिक हुसैन कीन को हराया था। इस बार सरूरी के लिए राह आसान नहीं है। कांग्रेस उम्मीदवार जफरउल्ला मढ़वा के हैं और जिला विकास परिषद के सदस्य भी हैं।
पहले मढ़वा और वाडवां किश्तवाड़ विधानसभा क्षेत्र में थे, लेकिन परिसीमन के बाद अब इंद्रवाल में जुड़ गए हैं। द्रबशाला को अब इंद्रवाल से निकालकर किश्तवाड़ में शामिल कर दिया गया है। ऐसे में तीन बार के विधायक और पूर्व मंत्री सरूरी के लिए चुनाव की राह आसान नहीं है।
डोडा में महंगा न पड़ जाए नेकां-कांग्रेस का दोस्ताना
डोडा में दो पूर्व मंत्री आमने-सामने हैं। यहां कांग्रेस और नेकां दोस्ताना मुकाबले में है। पूर्व मंत्री खालिद नजीद सुहरावर्दी नेकां से और अब्दुल माजिद वानी डीपीएपी से चुनाव लड़ रहे हैं। सुहरावर्दी ने वर्ष 1997 के उपचुनाव में सीट जीती थी, जबकि वानी वर्ष 2002 और 2008 में कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से विजयी रहे।
अब वानी आजाद की डीपीएपी की तरफ से चुनाव मैदान में हैं। भाजपा के शक्ति परिहार ने वर्ष 2014 में यह सीट जीती थी। इस बार भाजपा की ओर से गजय सिंह राणा, कांग्रेस के उम्मीदवार रियाज अहमद, पीडीपी के मंसूर अहमद बट्ट और आम आदमी पार्टी (आप) के मेहराज मलिक इस सीट से चुनाव मैदान में हैं।इस सीट पर यहां कांग्रेस और नेकां के बीच वोट बंटने का लाभ भाजपा को हो सकता है। हालांकि पहली बार चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के रियाज अहमद की भी क्षेत्र में अच्छी पकड़ है। मीडिया विश्लेषकों के अुनसार अभी बहुकोणीय मुकाबला है और चारों उम्मीदवार मजबूती से चुनाव मैदान में उतरे हैं।
डोडा पश्चिम सीट पर शक्ति परिहार की प्रतिष्ठा दांव पर
इस बार डोडा पश्चिम विधानसभा सीट पर भाजपा ने पूर्व मंत्री शक्ति राज परिहार को उम्मीदवार बनाया है। यह सीट पहली बार बनी है। शक्ति परिहार वर्ष 2020 में डोडा की दो सीटों से जिला विकास परिषद चुनाव हार गए थे। इस बार उनकी प्रतिष्ठा दांव पर है। उन्हें कांग्रेस के प्रदीप कुमार, पीडीपी के तनवीर हुसैन और डीपीएपी के अब्दुल गनी से चुनौती मिल रही है।
एक महिला प्रत्याशी मीनाक्षी कालरा इस सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं। परिसीमन के बाद बनी इस सीट में मरमत, अस्सर, कास्तीगढ़ और भागवा जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इस सीट पर मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है।
भद्रवाह में गठबंधन प्रत्याशी आमने-सामने
डोडा की ही भद्रवाह सीट पर भी कांग्रेस-नेकां गठबंधन आमने-सामने हैं। अंतिम बार वर्ष 2014 में हुए चुनाव में भाजपा के दलीप सिंह परिहार ने कांग्रेस के उम्मीदवार को हराकर यह सीट जीती थी। इस बार परिहार फिर से चुनाव मैदान में हैं। यहां पर त्रिकोणीय मुकाबला होने की उम्मीद है।
नेकां ने पूर्व आइएएस अधिकारी शेख महबूब इकबाल को उम्मीदवार बनाया है तो कांग्रेस ने पूर्व विधायक मोहम्मद शरीफ नियाज के बेटे नदीम शरीफ को टिकट दी है। इस सीट से आप पहली बार चुनाव लड़ रही है। पार्टी ने विक्रम राठौड़ को मैदान में उतारा है, जबकि बसपा ने इस सीट पर महिला उम्मीदवार मीनाक्षी भगत पर भरोसा किया है।
चाचा और पिता को मार डाला था आतंकियों ने, बेटी उतरी चुनाव मैदान में
किश्तवाड़ सीट पर कब्जा बरकरार रखने के लिए भाजपा ने 29 वर्षीय शगुन परिहार को टिकट दिया है। उनके पिता अजीत परिहार और चाचा अनिल परिहार को नवंबर 2018 में आतंकियों ने मार डाला था। ऐसे में शगुन के प्रति समाज में सहानुभूति भी है, जिसका उनको लाभ मिल सकता है।
उनके सामने नेकां के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री सज्जाद किचलू हैं। किचलू को वर्ष 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के सुनील शर्मा से हार मिली थी, लेकिन 2002 और 2008 के चुनाव में दो बार उन्होंने यह सीट जीती थी। इस सीट पर पीडीपी ने पूर्व एमएलसी फिरदौस टाक को उम्मीदवार बनाया है।
पाडर-नागसेनी सीट पर शर्मा के सामने ठाकुर
किश्तवाड़ जिले में परिसीमन के बाद पहली बार बनी पाडर-नागसेनी सीट पर भाजपा ने पूर्व मंत्री सुनील शर्मा को टिकट दिया है। उनका मुकाबला नेकां की पूजा ठाकुर से है, जो कि किश्तवाड़ की जिला विकास परिषद की मौजूदा अध्यक्ष हैं। भाजपा के बागी उम्मीदवार राकेश ने मुकाबले को रोमांचक बना दिया है। पीडीपी के संदेश कुमार इस सीट से मुकाबले में अन्य प्रमुख चेहरे हैं।
बनिहाल में विकार रसूल के समक्ष दोस्ताना चुनौती
रामबन जिले की बनिहाल विधानसभा सीट से कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विकार रसूल वानी यहां से हैट्रिक की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अपने ही गठबंधन के सहयोगी नेकां के सज्जाद शाहीन व पीडीपी के इम्तियाज शान से बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। वानी वर्ष 2008 और 2014 का चुनाव यहां से जीत चुके हैं।
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रामबन में नए चेहरों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा
रामबन निर्वाचन क्षेत्र में नए चेहरों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा है। भाजपा के राकेश सिंह ठाकुर का मुकाबला नेकां के अर्जुन सिंह राजू और पार्टी के बागी उम्मीदवार सूरज सिंह परिहार से है। यह सीट पिछली बार भाजपा के नीलम कुमार लंगेह ने जीती थी, जिन्हें इस बार पार्टी ने टिकट नहीं दिया है।साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने चार सीटें किश्तवाड़, रामबन, भद्रवाह और डोडा जीती थीं, जबकि कांग्रेस को बनिहाल और इंद्रवाल सीटें मिली थीं। अब परिसीमन के बाद इन तीन जिलों की सीटें आठ हो गई हैं। ऐसे में मुकाबला दिलचस्प हो सकता है।
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