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विधानसभा चुनाव में DPAP की हार पर आजाद ने साधी चुप्पी, अब नया ठिकाना तलाश रहे पार्टी के नेता

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में गुलाम नबी आजाद की पार्टी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी को करारी हार मिली थी। आजाद से कांग्रेस से अलग होकर खुद की पार्टी बनाई थी। हालात यह रही कि पार्टी के अधिकांश उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके। हार के बाद से आजाद चुप्पी साधे हुए हैं और न तो जम्मू आए हैं और न ही हार पर कोई प्रतिक्रिया दी है।

By satnam singh Edited By: Rajiv Mishra Updated: Mon, 28 Oct 2024 07:22 AM (IST)
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डीपीएपी की हार पर आजाद चुप, नेता तलाश रहे नया ठिकाना (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, जम्मू। जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) की करारी हार के बाद गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) ने चुप्पी साध ली है। पार्टी को विधानसभा चुनाव में कोई सीट नहीं मिली है। उसके अधिकतर प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए थे।

हालात यह हैं कि पार्टी ने हार के कारणों पर न कोई मंथन किया और न ही कोई बयान आया। विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद आजाद न तो जम्मू आए और न ही उन्होंने हार पर कोई प्रतिक्रिया दी। ऐसे में कई नेताओं व कार्यकर्ताओं का मनोबल गिर गया है और नई राह तलाश रहे हैं। कई कांग्रेस में घर वापसी करने की तैयारी में हैं तो कुछ अन्य पार्टियों में जा सकते हैं।

कांग्रेस से अलग होकर बनाई थी पार्टी

गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस को छोड़कर 26 सितंबर, 2022 को खुद की पार्टी बना ली थी। इसका नाम डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी रखा गया। पार्टी गठन के साथ आजाद ने जम्मू-कश्मीर में लगातार दौरे किए।

प्रत्येक रैली व जनसभा में उनकी मांग जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाने की होती थी। कांग्रेस में रहते हुए जम्मू-कश्मीर में अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल के कार्यों को जोर-शोर से गिनाते थे। चिनाब क्षेत्र के जिलों में उनकी लगातार रैलियां होती रहती थी।

खतरे में डीपीएपी का अस्तित्व

लोकसभा चुनाव में आजाद ने अपनी पार्टी के तीन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था जो बुरी तरह से हार गए थे। इसके बाद विधानसभा चुनाव में 22 प्रत्याशी उतारे थे, जिसमें सभी हार गए। इतने बड़े झटके की उम्मीद तो शायद खुद आजाद ने भी नहीं की थी। असल में चुनाव से पहले ही आजाद बीमार हो गए थे।

उनकी पार्टी के नेताओं का मनोबल गिर गया। पार्टी के लिए उम्मीदवारों को मैदान में उतारना तक मुश्किल हो गया था। जब प्रत्याशी मैदान में उतरे भी तो वह जमानत तक नहीं बचा पाए। नेताओं व कार्यकर्ताओं को डीपीएपी का अस्तित्व भी खतरे नजर आ रहा है।

नेताओं में हताशा स्पष्ट, पर बोलने से कतरा रहे

विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद प्रदेश में जिस तरह से राजनीतिक गतिविधियां तेज हुईं, उन परिस्थितियों में भी गुलाम नबी आजाद की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई। नई सरकार के गठन पर भी वह चुप ही रहे।

स्थिति यह है कि डीपीएपी के नेता सार्वजनिक तौर पर कुछ बोलने को तैयार नहीं है। उनमें हताशा और परेशानी साफ झलकती है।

यह भी बता दें कि आजाद के बेहद करीबी जीएम सरूरी और जुगल किशोर तो बीच चुनाव में डीपीएपी छोड़कर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए थे, हालांकि वह भी चुनाव हार गए।

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कांग्रेस में वापसी में लाभ-हानि देख रहे नेता

पार्टी से जुड़े नेताओं ने नाम सार्वजनिक न करने पर कहा कि डीपीएपी का वजूद अब कुछ नहीं रहा और आगे भी इसका कुछ नहीं होने वाला। हमें अपने राजनीतिक भविष्य के लिए सोच-समझकर किसी पार्टी में शामिल होना होगा।

अब विधानसभा चुनाव पांच साल बाद ही होने हैं, इसलिए हमारे पास दूसरी पार्टी में जाने के लिए पर्याप्त समय है। पार्टी सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस भी जमीनी सतह पर कमजोर है, इसलिए उसमें शामिल होने से पहले सोच-समझकर कदम उठाएंगे।

कई नेता गुणा-भाग लगा रहे हैं कि कांग्रेस में शामिल होने का उन्हें फायदा होगा या नहीं। आजाद की पार्टी के कश्मीर के नेताओं का रुख नेकां तो जम्मू के नेता भाजपा की तरफ भी जा सकते हैं।

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