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कितनी खतरनाक है Steyer AUG राइफल, आतंकियों के हाथ लगे अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज के छोड़े गए हथियार, मचा रहे जम्मू में तबाही

JK News कश्मीर में बीते कुछ वर्षाों में एक दर्जन से ज्यादा इरिडियम सैटेलाइट फोन और वाइफाई-सक्षम थर्मल इमेजरी उपकरण भी मिले हैं जो आतंकियों को रात के समय सुरक्षाबलों की घेराबंदी तोड़ निकलने और सुरक्षित घुसपैठ करने में मदद करते हैं। इसके अलावा बीते दिनों सुरक्षाबलों ने आतंकियों के पास से अल्ट्रा और माइक्रो रेडियो सेट बरामद किए हैं जिनके नेटवर्क में सेंध लगाना आसान नहीं है।

By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Fri, 19 Jul 2024 08:56 PM (IST)
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कितना खतरनाक है Steyer AUG राइफल, जानिए इसकी खासियत। @Remnantize के ट्विटर से
नवीन नवाज, श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में जारी आतंकी हिंसा के दुष्चक्र के और तेज व खूंरेज होने की आशंका गहराने लगी है, क्योंकि अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज और उसके खिलाफ लड़ने वाले जिहादी संगठनों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले हथियार अब कश्मीर में सक्रिय आतंकियों के हाथ लग चुके हैं।

एम-4 कार्बाइन, 509 टैक्टिगल गन्स और एम 1911 पिस्तौल के बाद अब स्टेयर एयूजी राइफल भी कश्मीर में सक्रिय आतंकी इस्तेमाल करने लगे हैं। दुनियाभर में कई देशों की सेना द्वारा स्टेयर एयूजी राइफल का इस्तेमाल किया जा रहा है। अफगानिस्तान में भी नाटो सेनाओं ने इस्तेमाल किया है।

आतंकियों के पास से मिली स्टेयर एयूजी राइफल

बीते चार वर्ष से कश्मीर में सक्रिय कई आतंकियों के स्टेयर एयूजी राइफलों से लैस होने की सूचनाएं मिल रही थीं। पुंछ में भी बीते वर्ष एक सैन्यदस्ते पर आतंकी हमले में इसके इस्तेमाल की बात सामने आयी थी, लेकिन सुरक्षा इसकी पुष्टि नहीं कर रही थी, क्योंकि किसी भी जगह इसकी बरामदगी नहीं हुई थी।

अलबत्ता, गत गुरुवार को उत्तरी कश्मीर के केरन सेक्टर में सुरक्षाबलों द्वारा एलओसी पर मारे गए दो आतंकियो के पास से मिले हथियारों में एक स्टेयर एयूजी राइफल है।

कश्मीर में सक्रिय आतंकियों के पास स्टेयर एयूजी की उपलब्धता का पहला संकेत जुलाई 2020 में जैश-ए-मोहम्मद का हिट स्क्वाड कहे जाने वाले पीपुल्स एंटी फासिस्ट फोर्स के एक आतंकी के वीडियो से मिला था।

अमेरिकी उपकरण से आतंकी कर रहे हमला

कश्मीर में बीते कुछ वर्षाों में एक दर्जन से ज्यादा इरिडियम सैटेलाइट फोन और वाइफाई-सक्षम थर्मल इमेजरी उपकरण भी मिले हैं, जो आतंकियों को रात के समय सुरक्षाबलों की घेराबंदी तोड़ निकलने और सुरक्षित घुसपैठ करने में मदद करते हैं।

इसके अलावा बीते दिनों सुरक्षाबलों ने आतंकियों के पास से अल्ट्रा और माइक्रो रेडियो सेट बरामद किए हैं, जिनके नेटवर्क में सेंध लगाना आसान नहीं है। यह भी अमेरिका द्वारा ही पाकिस्तान को उपलब्ध कराए गए हैं।

अमेरिका कर रहा हथियार आपूर्ति

जम्मू कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों में सक्रिय भूमिका निभा रहे एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, बीते चार-पांच वर्ष के दौरान प्रदेश के भीतरी हिस्सों में मारे गए आतंकियों या फिर आतंकी ठिकानों से मिले कई हथियारों में अमेरिकी मुहर लगी हुई मिली है।

एलओसी पर घुसपैठ का प्रयास करते हुए मारे गए आतंकियों के पास से भी अमेरिकी हथियार ही नहीं, बल्कि अमेरिकी संचार उपकरण भी मिले हैं। इनके बारे में छानबीन करने पर पता चला कि यह साजो सामान अमेरिकी और नाटो सेनाओं के अलावा तालिबान भी इस्तेमाल करत है।

तालिबान को पहले अमेरिका ही हथियारों की आपूर्ति करता रहा है। उन्होंने बताया कि स्टिकी बम का इस्तेमाल अफगानिस्तान में खूब होता रहा है और वह भी बीते तीन वर्ष से हमारे प्रदेश में मिल रहे हैं। कटरा में एक बस में आतंकियों ने स्टिकी बम से ही धमाका किया था।

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आतंकी हिंसा में पाकिस्तान की भूमिका 

रक्षा मामलों के जानकार कर्नल (सेवानिवृत्त) सुखबीर सिंह मनकोटिया ने कहा कि करीब तीन वर्ष पहले जब अफगानीस्तान से अमेरिकी और नाटो सेनाएं हटी तो वह वहां अपने हथियारों का एक बड़ा जखीरा छोड़ गई। यह हथियार आज तालिबान के कब्जे में हैं। जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तैयबा के तालिबान से रिश्ते कोई छिपी बात नहीं है।

इन दोनों संगठनों के आतंकी भी अफगानिस्तान में अमेरिका के खिलाफ तालिबान के साथ मिलकर लड़ चुके हैं। इसलिए अमेरिका जब अफगानिस्तान से हटा होगा तो उसके हथियार इन दोनों आतंकी संगठनों ने भी माल ए गनिमत के तौर पर प्राप्त किए होंगे।

इसके अलावा पाकिस्तानी सेना के पास भी यह हथियार हैं और जम्मू कश्मीर में आतंकी हिंसा में पाकिस्तान की भूमिका जगजाहिर है।

तालिबान हमेशा जैश के साथ खड़ा रहा 

पूर्व पुलिस महानिरीक्षक(सेवानिवृत्त) अशकूर वानी ने कहा कि तीन वर्ष अफगानीस्तान पर तालिबान का कब्जा जम्मू कश्मीर में आतंकी हिंसा को प्रभावित करता है। रुसी सेनाएं 1989 में जब अफगानीस्तान से लौटी थी तो कई अफगानीस्तान में सक्रिय कई अफगानी, मिस्री, सूडानी जिहादियों ने कश्मीर का रुख किया था।

तालिबान हमेशा जैश के साथ खड़ा रहा है। जैश और अल-बदर जैसे आतंकी संगठनों के ट्रेनिंग कैंप अफगानीस्तान में भी हैं। इसके अलावा मौजूदा समय में जम्मू कश्मीर में सक्रिय आतंकियों में अधिकांश विदेशी ही हैं और उनके अफगानिस्तान कनेक्शन से इंकार नहीं किया जा सकता।

वह अपने साथ अमेरिकी सेना द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे हथियार कश्मीर जरूर ला रहे हैं। इसके अलावा इन आतंकियों ने जो बीते दो तीन वर्ष में हमले किए हैं, वह अफगानीस्तान में तालिबानी आतंकियेां द्वारा अमेरिकी फौज के खिलाफ अपनाई गई रणनीति जैसे ही हैं।

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