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Jammu Kashmir Election 2024: अलगाववाद को करारा झटका, जनता ने दिया विकास और शांति का संदेश

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गए हैं और यह स्पष्ट हो गया है कि लोगों ने अलगाववादी एजेंडे को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। नेशनल कॉन्फ्रेंस का कहना है कि जनादेश 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ है लेकिन यह जनादेश कश्मीर की जनता द्वारा अलगाववाद और कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का नारा देने वालों के खिलाफ भी है।

By Jagran News Edited By: Nitish Kumar Kushwaha Updated: Tue, 08 Oct 2024 10:53 PM (IST)
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जम्मू-कश्मीर में नेकां और कांग्रेस गठबंधन को मिली बहुमत।

नवीन नवाज, जम्मू। जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव का परिणाम आ चुका है। नेशनल कॉन्फ्रेंस बेशक कहे कि जनादेश पांच अगस्त 2019 को केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्तीतकरण के संदर्भ में लिए गए फैसले के खिलाफ है। लेकिन यह जनादेश कश्मीर की जनता द्वारा अलगाववाद और कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का नारा देने वालों के खिलाफ भी है।

यह जनादेश अवामी इत्तिहाद पार्टी और प्रतिबंधित जमाते इस्लामी के खिलाफ भी है, क्योंकि प्रतिबंधित जमाते इस्लामी का समर्थित एक भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया जबकि संयुक्त राष्ट्र की सिफारिशों में कश्मीर मसले के समाधान की वकालत कर रहे इंजीनियर रशीद के लिए अपनी लंगेट सीट को बचाना मुश्किल हो गया था।

अवामी इत्तिहाद पार्टी ने एक ही सीट और वह भी लंगेट जीती है। इंजीनियर रशीद ने इस सीट से अपने भाई को उम्मीदवार बनाया था जबकि वह खुद इस सीट से वर्ष 2008 और 2014 के विधानसभा चुनाव में जीत चुके हैं। इसके अलावा कुछ पूर्व आतंकी और आतंकियों के रिश्तेदार भी चुनाव मैदान में थे, सब अब विधानसभा की सीढ़ियों से भी दूर रहेंगे। इनमें से अधिकांश अपनी जमानत तक बचाने में असमर्थ रहे हैं।

जमाते इस्लामी ने 18 सीटों पर निर्दलियों को दिया था समर्थन

प्रतिबंधित जमाते इस्लामी ने कश्मीर में लगभग 18 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों को समर्थन दिया था। यह सभी उम्मीदवार मूलत: प्रतिबंधित जमाते इस्लामी के ही सदस्य हैं और इन उम्मीदवारों ने चुनाव प्रचार में या किसी अन्य जगह जमात के साथ अपने रिश्तों को नहीं छिपाया था।

प्रतिबंधित जमाते इस्लामी जिसने वर्ष 1987 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के गठन में अहम भूमिका निभाई थी, ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव तक जम्मू कश्मीर में होने वाले प्रत्येक चुनाव के बहिष्कार का अभियान चलाया है।

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लोकसभा चुनाव 2024 और विधानसभा चुनाव 2024 में उसने बहिष्कार का एलान नहीं किया बल्कि विधानसभा चुनाव में वह पर्दे के पीछे से सक्रिय रही है ताकि उसके समर्थित निर्दलीय जीतें। उसने कुछ सीटों पर अवामी इत्तिहाद पार्टी के उम्मीदवारों का भी समर्थन किया था।

प्रतिबंधित जमाते इस्लामी का एक ही एजेंडा है, कश्मीर में मुस्लिम बहुसंख्यक होने के कारण शरियत बहाली और कश्मीर का पाकिस्तान में विलय। प्रतिबंधित जमाते इस्लामी के नेता जो चुनाव में भाग लेने की इच्छा जता रहे थे, कह रहे थे कि जमात अपने एजेंडे को लेकर स्पष्ट है। अगर यह चुनाव के रास्ते पूरा होता है तो इसमें क्या हर्ज है। इस विकल्प को हम पहले भी अपनाते रहे हैं और आगे भी अपनाएंगे।

अवामी इत्तिहाद पार्टी ने उतारे थे 44 उम्मीदवार

सोपोर में आतंकी अफजल गुरू का भाई एजाज गुरू चुनाव लड़ रहा था। उसे मात्र 129 वोट मिले जबकि सोपोर में 341 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प अपनाया। अवामी इत्तिहाद पार्टी ने 44 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। अवामी इत्तिहाद पार्टी के अधिकांश उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। अवामी इत्तिहाद पार्टी के वरिष्ठ नेता फिरदौस बाबा भी जमानत जब्त कराने वालों में शामिल हैं।

कश्मीर चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज के पूर्व शेख आशिक हुसैन और पीडीपी के पूर्व प्रवक्ता हरबख्श सिंह ने भी अवामी इत्तिहाद पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था, दोनों ही हार गए हैं। शेख आशिक मात्र 963 वोट ही प्राप्त कर सके हैं। प्रतिबंधित जमाते इस्लामी द्वारा समर्थित एक दर्जन उम्मीदवारों में सिर्फ अहमद रेशी ही चुनौती देते नजर आए हैं। हालांकि, वह हार गए हैं, लेकिन उन्होंने 26 हजार वोट लिए हैं।

वर्ष 2016 के हिंसक प्रदर्शनों में अहम भूमिका निभाने वाले सरजन अहमद वागे उर्फ सरजन बरकती उर्फ आजादी चाचा जो अभी जेल में बंद हैं, दो सीटों पर चुनाव लड़ रहे थे, दोनों पर ही हार गए। गांदरबल में उनकी जमानत जब्त हो गई है जबकि बीरवाह में वह किसी तरह अपनी जमानत बचाने में सफल रहे हैं।

'यह चुनाव अलगाववादी एजेंडे का खिलाफ जनादेश'

कश्मीर मामलों के जानकार सलीम रेशी ने कहा कि अब कश्मीरी मतदाता लुभावने नारों के फेर में नहीं फंसता। वह पहले से कहीं ज्यादा परिपक्व है। वह अच्छी तरह जानता है कि उसका भविष्य भारतीय संविधान में सुरक्षित है। अगर उसने अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के खिलाफ वोट दिया है तो उसने यह मानकर कि अनुच्छेद 370 उसे भारतीय संविधान के दायरे में ही आंतरिक स्वायत्तता प्रदान करता है, अपना वोट दिया है।

अगर वह कहीं भी अलगाववादी एजेंडे का समर्थक होता तो वह कश्मीर को अनसुलझा विवाद बताने वाले इंजीनियर रशीद के उम्मीदवारों को जिताता, अगर वह कश्मीर बनेगा पाकिस्तान के नारे में यकीन रखने वाला होता तो प्रतिबंधित जमाते इस्लामी के समर्थित उम्मीदवारों को वोट देता।

अगर उसे आतंकियों और अलगाववादियों से हमदर्दी होती तो कश्मीर में कम से 30 ऐसे उम्मीदवार मैदान में थे जो पूर्व आतंकी हैं, आतंकियों के रिश्तेदार हैं या अलगाववादी खेमे से संबधित रहे हैं, तो सभी जीत गए होते। इसलिए यह चुनाव अलगाववादी एजेंडे का खिलाफ जनादेश है।

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