Jammu Kashmir Election 2024: अलगाववाद को करारा झटका, जनता ने दिया विकास और शांति का संदेश
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गए हैं और यह स्पष्ट हो गया है कि लोगों ने अलगाववादी एजेंडे को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। नेशनल कॉन्फ्रेंस का कहना है कि जनादेश 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ है लेकिन यह जनादेश कश्मीर की जनता द्वारा अलगाववाद और कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का नारा देने वालों के खिलाफ भी है।
नवीन नवाज, जम्मू। जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव का परिणाम आ चुका है। नेशनल कॉन्फ्रेंस बेशक कहे कि जनादेश पांच अगस्त 2019 को केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्तीतकरण के संदर्भ में लिए गए फैसले के खिलाफ है। लेकिन यह जनादेश कश्मीर की जनता द्वारा अलगाववाद और कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का नारा देने वालों के खिलाफ भी है।
यह जनादेश अवामी इत्तिहाद पार्टी और प्रतिबंधित जमाते इस्लामी के खिलाफ भी है, क्योंकि प्रतिबंधित जमाते इस्लामी का समर्थित एक भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया जबकि संयुक्त राष्ट्र की सिफारिशों में कश्मीर मसले के समाधान की वकालत कर रहे इंजीनियर रशीद के लिए अपनी लंगेट सीट को बचाना मुश्किल हो गया था।
अवामी इत्तिहाद पार्टी ने एक ही सीट और वह भी लंगेट जीती है। इंजीनियर रशीद ने इस सीट से अपने भाई को उम्मीदवार बनाया था जबकि वह खुद इस सीट से वर्ष 2008 और 2014 के विधानसभा चुनाव में जीत चुके हैं। इसके अलावा कुछ पूर्व आतंकी और आतंकियों के रिश्तेदार भी चुनाव मैदान में थे, सब अब विधानसभा की सीढ़ियों से भी दूर रहेंगे। इनमें से अधिकांश अपनी जमानत तक बचाने में असमर्थ रहे हैं।
जमाते इस्लामी ने 18 सीटों पर निर्दलियों को दिया था समर्थन
प्रतिबंधित जमाते इस्लामी ने कश्मीर में लगभग 18 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों को समर्थन दिया था। यह सभी उम्मीदवार मूलत: प्रतिबंधित जमाते इस्लामी के ही सदस्य हैं और इन उम्मीदवारों ने चुनाव प्रचार में या किसी अन्य जगह जमात के साथ अपने रिश्तों को नहीं छिपाया था।
प्रतिबंधित जमाते इस्लामी जिसने वर्ष 1987 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के गठन में अहम भूमिका निभाई थी, ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव तक जम्मू कश्मीर में होने वाले प्रत्येक चुनाव के बहिष्कार का अभियान चलाया है।
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लोकसभा चुनाव 2024 और विधानसभा चुनाव 2024 में उसने बहिष्कार का एलान नहीं किया बल्कि विधानसभा चुनाव में वह पर्दे के पीछे से सक्रिय रही है ताकि उसके समर्थित निर्दलीय जीतें। उसने कुछ सीटों पर अवामी इत्तिहाद पार्टी के उम्मीदवारों का भी समर्थन किया था।प्रतिबंधित जमाते इस्लामी का एक ही एजेंडा है, कश्मीर में मुस्लिम बहुसंख्यक होने के कारण शरियत बहाली और कश्मीर का पाकिस्तान में विलय। प्रतिबंधित जमाते इस्लामी के नेता जो चुनाव में भाग लेने की इच्छा जता रहे थे, कह रहे थे कि जमात अपने एजेंडे को लेकर स्पष्ट है। अगर यह चुनाव के रास्ते पूरा होता है तो इसमें क्या हर्ज है। इस विकल्प को हम पहले भी अपनाते रहे हैं और आगे भी अपनाएंगे।
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