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लुप्तप्राय प्रजाति भी आने लगी नजर, LOC पर दिखा जम्मू-कश्मीर का राजकीय वन्य जीव; खुशी से खिल उठे लोगों के चेहरे

Jammu and kashmir state wildlife sanctuary Hangul कश्मीर में हंगुल अब नियंत्रण रेखा के साथ सटे गुरेज सेक्टर (बांडीपोरा) में नियमित तौर पर नजर आने लगा है। इससे वन्य जीव विभाग और वन्य प्रेमी खुश हैं। हंगुल लाल प्रजाति का लुप्तप्राय हिरण है। यह जम्मू कश्मीर का राजकीय वन्य जीव भी है। वर्ष 1947 में इनकी संख्या करीब तीन हजार थी।

By Jagran NewsEdited By: Preeti GuptaUpdated: Wed, 27 Sep 2023 09:41 AM (IST)
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LOC पर दिखा जम्मू-कश्मीर का राजकीय वन्य जीव
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो।  Jammu-kashmir state wildlife sanctuary Hangul:  कश्मीर में हंगुल अब नियंत्रण रेखा के साथ सटे गुरेज सेक्टर (बांडीपोरा) में नियमित तौर पर नजर आने लगा है।

इससे वन्य जीव विभाग और वन्य प्रेमी खुश हैं। इसे वह हंगुल के संरक्षण के लिए शुभ मान रहे हैं। हंगुल लाल प्रजाति का लुप्तप्राय: हिरण है। यह जम्मू कश्मीर का राजकीय वन्य जीव भी है। यह कभी कश्मीर के लगभग हर हिस्से में पाया जाता था।

धीरे-धीरे कम होती गई हंगुल की संख्या

वर्ष 1947 में इनकी संख्या करीब तीन हजार थी। वन्य जीव विभाग के अनुसार हंगुल उत्तरी कश्मीर में किशनगंगा नदी के जल संग्रह क्षेत्र से लेकर दोरुस लोलाब, बांडीपोरा, तुलैल, बालटाल व दाचीगाम से लेकर त्राल और किश्तवाड़ तक पाया जाता था।

जंगलों के कटाव, शिकार और अनियोजित शहरीकरण का असर हंगुल की आबादी पर भी पड़ा और वर्ष 2008 में इनकी संख्या 127 पर सिमट गई। इसका बसेरा भी श्रीनगर के बाहरी छोर पर स्थित दाचीगाम नेशनल पार्क तक सीमित रह गया। इस दौरान त्राल के शिकारगाह इलाके में भी इसे देखा गया।

गुरेज के जंगलों में कई बार दिखा हंगुल

गुरेज, तुलैल और उसके साथ सटे इलाकों में यह 1980 के बाद किसी को नजर नहीं आया था। वर्ष 2018 में हंगुल की उपस्थिति तुलैल में फिर दर्ज की गई। तब इसका पता एक हंगुल के गले में डाले गए सेटेलाइट कालर की आधार पर चला था।

अधिकारियों ने बताया कि बीते दो वर्ष में गुरेज के जंगलों में कई बार हंगुल देखा गया है। स्थानीय लोगों और वन्यकर्मियों ने इसकी पुष्टि की है। हालांकि, इसकी संख्या का पता नहीं चल पाया है, लेकिन वहां दो से तीन झुंड हो सकते हैं। गुरेज में इसका आम तौर पर नजर आना बता रहा है कि अब यह सिर्फ दाचीगाम तक सीमित नहीं रहा है। इसके संरक्षण के उपाय असर दिखा रहे हैं।

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शिकारगाह में बढ़ी आमद

यह हंगुल के संरक्षण-प्रजनन के प्रयासों में सहायक होगा। हंगुल पर शोध करने वाले मंसूर नबी के अनुसार दाचीगाम-वांगथ-तुलैल में यह पाया जाता था। वह दाचीगाम से निकलने के बाद एलओसी पर गुरेज तक जाता था। इसके लिए वह हारवन, कंगन, बांडीपोरा के जंगल और पहाड़ों से गुजरता था।

अब गुरेज में इसका अक्सर दिखना बता रहा है कि यहां इसकी आबादी और स्थायी बसेरा है। शिकारगाह में इसकी आमद बढ़ी है और यहां इसके लिए प्रजनन व संरक्षण केंद्र बनाया जा रहा है।

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