Maharaja Hari Singh Birth Anniversary : जम्मू-कश्मीर के अंतिम महाराजा हरि सिंह ने दलितों के लिए खोल दिए थे मंदिरों के द्वार
महाराजा हरि सिंह ने 31 अक्टूबर 1932 को एक आदेश जारी कर कहा कि जम्मू कश्मीर में सभी मंदिर पूजा अर्चना और दर्शन के लिए निम्न जातियों के लिए भी खोल दिए जाएं। उनके इस फैसले का विरोध भी हुआ लेकिन उन्होंने अपना निर्णय नहीं बदला।
By Rahul SharmaEdited By: Updated: Fri, 23 Sep 2022 01:40 PM (IST)
श्रीनगर, नवीन नवाज : भारतवर्ष में दलितों और समाज के अन्य वंचित वर्गों के लिए मंदिर में जाना एक बड़ा अपराध माना जाता था। उच्च जाति के लोग दलितों के साथ खड़े होना भी पसंद नहीं करते थे। उस समय जम्मू कश्मीर में एक बड़ी सामाजिक क्रांति हुई। यह क्रांति आम लोगों ने नहीं बल्कि तत्कालीन महाराजा हरि सिंह जिनकी आज जयंती पर पूरे जम्मू कश्मीर में जश्न मनाया जा रहा है, ने लायी। यह सामाजिक क्रांति थी- मंदिरों के द्वार दलितों के लिए खोलना। उन्हें मंदिरों में पूजा का अधिकार देना।
महाराजा हरि सिंह ने 31 अक्टूबर 1932 को एक आदेश जारी कर कहा कि जम्मू कश्मीर में सभी मंदिर पूजा अर्चना और दर्शन के लिए निम्न जातियों के लिए भी खोल दिए जाएं। उनके इस फैसले का विरोध भी हुआ, लेकिन उन्होंने अपना निर्णय नहीं बदला।कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ संत कुमार शर्मा ने कहा कि महाराजा ने जब मंदिरों को खोलने का फैसला लिया तो उन्होंने उस समय जो सभी मंदिरों व धर्मस्थलों के प्रभारी मंत्री थे, उन्हें विशेष रूप से जम्मू और श्रीनगर स्थित श्री रघुनाथ जी मंदिर में जाकर इसका एलान करने को कहा। उन्होंने सबसे पहले श्री रघुनाथ जी मंदिर को ही दलितों के लिए खोला था।
जम्मू कश्मीर यूनिटी फोरम के अध्यक्ष अजात जम्वाल ने कहा कि महाराजा हरि सिंह एक समाजसुधारक थे। भारत में जम्मू-कश्मीर पहला ऐसा राज्य था,जहां दलितों के लिए मंदिरों में प्रवेश पर पाबंदी को हटाया गया। यह एक तरह से जम्मू कश्मीर में सामाजिक समानता और सामाजिक न्याय को सुनिश्चित बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम था। महाराजा के इस फैसले ने देश के अन्य भागों में भी दलितों के बीच एक नयी चेतना पैदा की। कई लोग उनके इस फैसले से प्रेरित हुए हैं। आज अगर जम्मू कश्मीर में छुआछूत नजर नहीं आती, तो इसका श्रेय महाराजा हरि सिंह को ही जाता है।
नेशनल कांफ्रेंस के अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के जिला प्रधान विजय लोचन ने कहा कि महाराजा हरि सिंह ने यहां छूआ छूत को समाप्त कर, दलितों के उत्थान के लिए कई कदम उठाए हैं। मंदिरों में दलित वर्ग का प्रवेश सुनिश्चित कर उन्होंने सामाजिक समानता को लागू किया। आज उनकी जयंती हैं। हम सभी लोग उन्हें अपने दिल से श्रद्धांजली अर्पित करते हैं। ईश्वर के सामने सभी बराबर हैं, हमारे धर्मग्र्रंथ यही कहते हैं, कुछ लोगों ने इनकी गलत व्याख्या कर समाज को बांटने का प्रयास किया है, लेकिन महाराजा ने सही मायनों में धर्म को समझा और छुआ-छूत को समाप्त करने की दिशा में आगे बढ़े।
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