Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Jammu News: उपराज्यपाल ने जम्मू में जनरल जोरावर सिंह की प्रतिमा का किया अनावरण, बलिदान दिवस पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए

जिला कारागार में तीन दिवसीय भगवत चर्चा ने बंदियों-कैदियों की मनोदशा पर अमिट छाप छोड़ी है। दो दिन की कथा सुनने के बाद मंगलवार को गैंगस्टर एक्ट की विशेष अदालत पहुंचे एक आरोपित ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया। जुर्म स्वीकार करते हुए उसने माई लार्ड कहकर न्यायाधीश से माफी मांगी। इस पर न्यायाधीश ने उसे माफ भी कर दिया।

By Jagran NewsEdited By: Paras PandeyUpdated: Wed, 13 Dec 2023 03:05 AM (IST)
Hero Image
हिमालय पार कर बाल्टिस्तान और तिब्बत जीतने वाले जनरल जोरावर की चेयर स्थापित होगी

राज्य ब्यूरो, जम्मू। छह बार लद्दाख में हिमालय को पार कर छह हजार डोगरा व तीन हजार लद्दाखी सैनिकों के साथ बाल्टिस्तान व तिब्बत को जीतकर इतिहास रचने वाले जनरल जोरावर सिंह की याद में जम्मू विश्वविद्यालय में चेयर स्थापित की जाएगी। यह चेयर विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं को मजबूत और खुशहाल जम्मू-कश्मीर बनाने के लिए प्रेरित करेगी, जिसका सपना जनरल जोरावर सिंह ने संजोया था। उपराज्यपाल ने मंगलवार को जम्मू-विश्वविद्यालय में जोरावर सिंह आडिटोरियम के सामने जनरल जोरावर सिंह की प्रतिमा का अनावरण किया और बलिदान दिवस पर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए। 

डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह की फौज के सबसे काबिल जनरल जोरावर सिंह ने वर्ष 1841 में पश्चिमी तिब्बत पर हमला कर जम्मू-कश्मीर की सीमाओं को चीन में स्थित कैलाश पर्वत, मानसरोवर झील तक पहुंचा दिया था। जीत के बाद लौट रहे जोरावार सिंह पर रास्ते में छिपे तिब्बती सैनिकों ने हमला कर दिया था। घायल होने के बाद भी वह दुश्मन से लड़ते रहे जनरल ने 12 दिसंबर, 1841 को वीरगति पाई थी। 

सैनिक से जनरल बने थे जोरावर सिंह

हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर में राजपूत परिवार में 13 अप्रैल, 1786 को जन्मे जनरल जोरावर ¨सह ने अपनी बहादुरी से सैनिक से जनरल बनने का सफर पूरा किया। महाराजा की सेना में राशन के प्रभारी जोरावर सिंह अपनी योग्यता से पहले रियासी के किलेदार और बाद में किश्तवाड़ के गवर्नर बने। रियासी में जनरल का किला आज भी उनकी बहादुरी की याद दिलाता है। वर्ष 1821 में किश्तवाड़ का गवर्नर बनने वाले जोरावर सिंह ने वर्ष 1834 में दुर्गम लद्दाख क्षेत्र में प्रवेश किया था। वर्ष 1840 तक उन्होंने लद्दाख, बाल्टिस्तान, तिब्बत पर डोगरा परचम लहरा दिया था। 

वर्ष 1841 में जनरल ने तिब्बती सेना को हरा दिया। अत्याधिक ठंड में दुश्मन से लड़ने में जनरल जोरावर सिंह का अनुभव असाधारण था। उनका यह अनुभव लद्दाख में चीन व पाकिस्तान के उच्चतम पर्वतीय इलाकों डेरा डाले बैठे सैनिकों के लिए प्रेरणा है। सेना की जम्मू-कश्मीर राफल्स 13 अप्रैल को अपने स्थापना दिवस को जनरल जोरावर सिंह दिवस के रूप में मनाती है।