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Jammu News: आतंकियों का नया हथकंडा, ओवरग्राउंड वर्करों से संपर्क के लिए अपना रहे डेड-ड्राॅप की रणनीति

Terrorist Dead-Drop Strategy आतंकवाद में नए प्राण फूंकने का प्रयास कर रहे आतंकी कमांडर अपने कैडर और ओवरग्राउंड वर्कर के साथ संवाद-संपर्क के लिए अब डेड-ड्राॅप की रणनीति अपना रहे हैं। इससे सुरक्षाबलों के लिए उनका पता लगाना और उन्हें पकड़ना मुश्किल हो रहा है। आतंकी अब इंटरनेट और सिम कार्ड का प्रयोग किए बिना आपस में संपर्क कर रहे हैं।

By Jagran NewsEdited By: Nidhi VinodiyaUpdated: Tue, 05 Sep 2023 07:45 PM (IST)
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आतंकियों का नया हथकंडा, ओवरग्राउंड वर्करों से संपर्क के लिए अपना रहे डेड-ड्राॅप की रणनीति

जम्मू, नवीन नवाज। जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) में मरणासन्न आतंकवाद में नए प्राण फूंकने का प्रयास कर रहे आतंकी कमांडर अपने कैडर और ओवरग्राउंड वर्कर (Overground Worker) के साथ संवाद-संपर्क के लिए अब डेड-ड्राप की रणनीति अपना रहे हैं। इससे सुरक्षाबलों के लिए उनका पता लगाना और उन्हें पकड़ना मुश्किल हो रहा है। आतंकी अब इंटरनेट और सिम कार्ड का प्रयोग किए बिना आपस में संपर्क कर रहे हैं।

आतंकी कमांडरों ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ की मदद से अपनी एक साफ्टवेयर लैब भी तैयार की है, जिसमें अज्ञात एन्क्रिप्टेड ऐप तैयार किए जाते हैं और आतंकियों व ओवरग्राउंड वर्करों को उनके इस्तेमाल की समय समय पर उनकी जानकारी दी जाती है।

रणनीती को लेकर आतंकी हुए एक्टिव

आतंकरोधी अभियानों से जुड़े सूत्रों ने बताया कि सरहद पार बैठे आतंकी कमांडरों ने जम्मू कश्मीर में सक्रिय अपने कैडर को पूरी सावधानी के साथ डेड ड्राप रणनीति को अपनाने का निर्देश दिया है। उन्होंने बताया कि आईएसआईएस और अलकायदा जैसे संगठन इस तरीके का एक लंबे समय से इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि जम्मू कश्मीर में आतंकियों ने इस रणनीति पर कुछ समय पहले ही काम शुरू किया है।

आतंकी अब अपने कैडर के साथ संपर्क के लिए फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब के बजाय एन्क्रिप्टेड प्लेटफार्म विशेष रूप से टेलीग्राम और सिग्नल का इस्तेमाल कर रहे हैं। टेलीग्राम ने एक नया फॉर्मेट शुरू किया है,जिसमें उपयोगकर्ता को इंटरनेट कनेक्शन या हॉटस्पॉट या उपयोगकर्ता के नाम की आवश्यकता नहीं है।आतंकी अब क्लाउड शेयरिंग सेवाओं का अनुचित लाभ उठा रहे हैं।

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इस तरह से होते हैं कनेक्ट

उन्होंने बताया कि आतंकियों और ओवरग्राउंड वर्करों को नए स्मार्टफोन खरीदने और सिम कार्ड व इंटरनेट का प्रयोग किए बिना ब्लूटूथ टेदरिंग के जरिए टेलीग्राम ऐप अपलोड करने के लिए कहा जा रहा है। इसके लिए इंटरनेट और हॉटस्पॉट नहीं चाहिए। किसी भी पहले इस्तेमाल हो चुके मोबाइल फोन से ब्लूटूथ टेदरिंग के जरिए नए फोन में टेलीग्राम ऐप को डाउनलोड करना है। उसके बाद उक्त ऐप को पाकिस्तान, अमेरिका, दुबई या किसी अन्य मुल्क में सक्रिय फोन नंबर के साथ समन्वित किया जाता है।

विदेश में बैठे सिम कार्ड धारक द्वारा हर बार एक पासवर्ड बनाया जाता है,जिसे कश्मीर में बैठे आतंकी या ओवरग्राउंड वर्कर के साथ साझा किया जाता है और उसके बाद उक्त ऐप के जरिए बातचीत होती होती है, चैट होती है और जैसे ही यह समाप्त होगी, इसे संबंधित मोबाइल फोन के डाटा से पूरी तरह हटा दिया जाता है। इससे आतंकियों और उनके पारिस्थितिक तंत्र को चिह्नित करने में दिक्कत हो रही हे।

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बिना पंजीकरण वाले ऐप का कर रहे प्रयोग

उन्होंने बताया कि पहले आतंकी इंटरनेट का प्रयोग करते थे और जम्मू कश्मीर पुलिस व अन्य सुरक्षा एजेंसियों के साइबर सेल उसके आधार पर आतंकियों की स्थिति का पता लगाते थे। अब आतंकी इंटरनेट और सिम कार्ड का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। वह अब अज्ञात ऐप जिनके लिए पंजीकरण की जरूरत नहीं है, उनका इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमें टेलीग्राफ वाया टेलीग्राम जैसा एक मंच भी है।

इसे चलाने के लिए किसी तरह का अकाउंट या पंजीकरण जरूरी नहीं है। आतंकियों के लिए यह बहुत सुरक्षित साबित हो रहा है। कश्मीर में सक्रिय आतंकी और उनके ओवरग्राउंड वर्कर सिर्फ आपस में संपर्क करते हैं जबकि इस पर किसी भी तरह की सामग्री को अपलोड पाकिस्तान या किसी अन्य मुल्क से ही किया जा रहा है।

ISIS ने तैयार कराई साॅफ्टवेयर लैब

उक्त अधिकारी ने बताया कि बीते कुछ समय के दौरान पकड़े गए आतंकियों और उनके ओवरग्राउंड वर्करों से पूछताछ के आधार पर पता चला है कि आतंकी कमांडरों को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने कोई सॉफ्टवेयर लैब तैयार करने में मदद की है। इसे इस तरह से भी लिया जा सकता है कि पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के साइबर विशेषज्ञ आतंकी संगठनों को नए अज्ञात एन्क्रिप्टेड ऐप तैयार करने में मदद करने के अलावा उनके कैडर को इनके संचालन का प्रशिक्षण भी देते हैं। इनमें इंटरनेट और स्थानीय सिम कार्ड इस्तेमाल नहीं हो रहा है,इसलिए इसमें सेंध लगाना मुश्किल हो रहा है।

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