Jammu News: बढ़ती गई तिरंगे की शान, मिट गए 370 के निशान; सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार के निर्णय पर लगा दी मुहर
इतिहास के पन्नों में अब गुम हो गए अनुच्छेद-370 को हटाने के लिए जम्मू-कश्मीर में देशभक्तों को 70 वर्ष तक आंदोलन करना पड़ा। प्रदेश में वर्ष 1953 को शुरू हुए प्रजा परिषद के आंदोलन से तिरंगे की शान बढ़ती गई और आखिरकार अनुच्छेद-370 के निशान तक मिट गए। 370 को समाप्त करने को चुनौती देने वालों को दरकिनार कर सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार के निर्णय पर मुहर लगा दी।
By Jagran NewsEdited By: Paras PandeyUpdated: Wed, 13 Dec 2023 04:50 AM (IST)
राज्य ब्यूरो, जम्मू। इतिहास के पन्नों में अब गुम हो गए अनुच्छेद-370 को हटाने के लिए जम्मू-कश्मीर में देशभक्तों को 70 वर्ष तक आंदोलन करना पड़ा। प्रदेश में वर्ष 1953 को शुरू हुए प्रजा परिषद के आंदोलन से तिरंगे की शान बढ़ती गई और आखिरकार अनुच्छेद-370 के निशान तक मिट गए। 370 को समाप्त करने को चुनौती देने वालों को दरकिनार कर सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार के निर्णय पर मुहर लगा दी।
इसके साथ ही प्रदेश की राजनीति में 70 साल तक ज्वलंत रहा 370 का मुद्दा पूरी तरह से समाप्त हो गया है। जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी व प्रजा परिषद के संस्थापक पंडित प्रेम नाथ डोगरा ने अनुच्छेद-370 हटाकर देश में जम्मू-कश्मीर के संपूर्ण विलय का सपना साकार करने की मुहिम छेड़ी थी।
देश की आजादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम की तरह जम्मू-कश्मीर में भी 370 की समाप्ति के लिए लोगों ने तिरंगे लहराते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। वर्ष 1953 के आंदोलन से लेकर 2008 के श्री अमरनाथ भूमि आंदोलन तक भारत माता की जय के नारे बुलंद करने वाले 28 देशभक्तों ने बलिदान दिया। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जून 1953 में बलिदान दिया था।
जम्मू के ज्यौड़ियां से शुरू हुआ था बलिदान देने का सिलसिला 14 दिसंबर, 1952 को जम्मू के ज्यौड़ियां में देश में जम्मू-कश्मीर के संपूर्ण विलय की मांग को लेकर बलिदान देने का सिलसिला शुरू हुआ था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर के देश के संपूर्ण विलय के 1953 के आंदोलन में 15 बलिदानियों ने तिरंगा हाथ में लेकर सीने पर गोलियां खाई थीं।
जून 1953 को तिरंगे की शान के लिए लड़ रहे जम्मू वासियों के आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी परमिट सिस्टम तोड़ जम्मू-कश्मीर में पहुंचे। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और 23 जून, 1953 को उन्होंने जेल में बलिदान दिया। वहीं, भूमि आंदोलन में भी 12 लोगों ने बलिदान दिया।
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