Move to Jagran APP

Jammu Politics: आजाद को अपनों से ही चुनौती, एक के बाद एक सदस्य छोड़ रहे पार्टी

नया वर्ष गुलाम नबी आजाद की राजनीति पर भारी पड़ रहा है। मंगलवार को उनके दो और सदस्य पूर्व एमएलसी निजामुदीन खटाना और चौधरी गुलजार अहमद भी साथ छोड़ गए। बीते 15 दिनों में कई पूर्व मंत्रियों समेत लगभग 20 पुराने साथी डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी से किनारा कर चुके हैं।

By Jagran NewsEdited By: Sonu GuptaUpdated: Wed, 11 Jan 2023 01:38 PM (IST)
Hero Image
सदस्यों के पार्टी छोड़कर जाने से बढ़ रही आजाद की परेशानी
नवीन नवाज, जम्मू। नया वर्ष गुलाम नबी आजाद की राजनीति पर भारी पड़ रहा है। मंगलवार को उनके दो और पुराने सिपहसालार पूर्व एमएलसी निजामुदीन खटाना और चौधरी गुलजार अहमद भी साथ छोड़ गए। बीते एक पखवाड़े में पूर्व उपमुख्यमंत्री ताराचंद और कई पूर्व मंत्रियों समेत लगभग 20 पुराने साथी डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी से किनारा कर चुके हैं।

एक समय नई दिल्ली से जम्मू कश्मीर कांग्रेस को रिमोट कंट्रोल से चलाने वाले आजाद के लिए अपने पुराने विश्वस्तों को संभालना ही किसी चुनौती से कम साबित नहीं हो रहा। ऐसे में पार्टी को संभालने के साथ उन्हें सियासत में स्वयं को साबित करने की चुनौती दिख रही है।

यहां बता दें कि अगस्त माह में आजाद ने कांग्रेस से इस्तीफे की घोषणा की तो उनके समर्थकों में भी कांग्रेस छोड़ने की होड़ लग गई। कांग्रेस में मौजूद उनके पुराने मित्र और वफादार सब कांग्रेस छोड़ उनके साथ चल निकले।

आजाद की पार्टी को लेकर ठंडा पड़ा जोश

राजनीतिक पंडितों ने दावे किए कि गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी जम्मू कश्मीर में कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी जैसे दलों का विकल्प बनेगी और भाजपा को भी झटका देगी। जैसे जैसे जम्मू कश्मीर में ठंड बढ़ती गई, आजाद की पार्टी को लेकर लोगों में जोश भी ठंडा पड़ता गया। हालत यह हो चुकी है कि अब आजाद को डीएपी को संभालना भी भारी पड़ रहा है।

उनके लिए खुद को भी जम्मू कश्मीर की सियासत में प्रासंगिक साबित करना भी बड़ी चुनौती बन चुका है। उस समय एक के बाद एक नेता कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र देने की घोषणा करने लगे थे। आज उनमें से ज्यादातर नेता वापस कांग्रेस में ही लौट रहे हैं। पूर्व उपमुख्यमंत्री तारांचद समेत 17 नेताओं ने पिछले सप्ताह दोबारा कांग्रेस में वापसी की और खुलेआम आजाद पर आरोप लगाए। हालांकि आजाद कह रहे हैं कि नेताओं के जाने से कुछ नहीं होगा, उनके पास लोगों का समर्थन है और वही अहम है।

राजनीतिक मामलों के जानकार प्रो हरि ओम ने कहा कि गुलाम नबी आजाद की बयानबाजी को देखा जाए तो वह परोक्ष रूप से अलगाववादी एजेंडे को मुख्यधारा की सियासत का लबादा ओढ़ अपनी सियासत आगे बढ़ाना चाहते हैं, इसलिए जो भीड़ पहले नजर आती थी, अब नहीं है। उनके साथ जाने वाले नेताओं को भी असलियत समझ आ रही है। जम्मू संभाग में उनके चाहने वालों की संख्या लगातार गिर रही है।

आगामी विधानसभा चुनाव में बढ़ी आजाद की चुनौतियां

कश्मीर मामलों के जानकार बिलाल बशीर बट ने कहा कि लोगों को उम्मीद थी कि वह यहां नेकां, पीडीपी, कांग्रेस, भाजपा का विकल्प बनेंगे, लेकिन यह उम्मीद पानी के बुलबुले की तरह खत्म हो चुकी है। वह जम्मू कश्मीर की सियासत में कोई बदलाव लाने में असमर्थ साबित हुए हैं।

कांग्रेस उन्हें जम्मू कश्मीर में भाजपा की बी टीम साबित करने में सफल रही है। रही सही कसर उनके साथियों ने उनका साथ छोड़ और उनके खिलाफ बयान देकर पूरी कर दी है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने किसी हद तक कांग्रेस को फिर से सक्रिय बनाया है।

गुलाम नबी आजाद ने डीएपी से अलग हो रहे अपने साथियों को चला हुआ कारतूस और जनाधारहीन बताकर यही साबित करने की कोशिश की है, उन पर इससे कोई असर नहीं है। हालांकि यह स्पष्ट है कि अपने करीबियों के पार्टी छोड़ने से आगामी विधानसभा चुनाव के लिए आजाद की चुनौतियां बढ़ रही हैं। वह कितना चीजें सुधार पाएंगे अभी यह कहना मुश्किल है।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।