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Ladakh Pashmina: पश्मीना से लद्दाख को नई पहचान दिलाने की तैयारी, साल में होता है 45 हजार किलो ऊन का उत्‍पादन

Jammu News जम्‍मू के पश्‍मीना से लद्दाख को नई पहचान दिलाने की तैयारी की गई है। इसी उद्देश्य के साथ उपराज्यपाल प्रशासन पश्मीना बकरी पालन को बढ़ावा देने पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। प्रति वर्ष 45 हजार किलो पश्‍मीना ऊन का उत्‍पादन होता है।

By Jagran NewsEdited By: Himani SharmaUpdated: Sat, 10 Jun 2023 10:07 AM (IST)
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पश्मीना से लद्दाख को नई पहचान दिलाने की तैयारी, प्रति वर्ष होता है 45 हजार किलो ऊन का उत्‍पादन
राज्य ब्यूरो, जम्मू: लद्दाख में पश्मीना बकरी पालन में ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति सुधारने की पूरी क्षमता है। लद्दाख का पश्मीना और इससे बने उत्पाद प्रदेश को विश्व में नई पहचान दिलाएंगे। इसी उद्देश्य के साथ उपराज्यपाल प्रशासन पश्मीना बकरी पालन को बढ़ावा देने पर तेजी से आगे बढ़ रहा है।

उपराज्यपाल ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) बीडी मिश्रा खुद इस क्षेत्र से जुड़े लोगों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। उन्होंने विभागीय अधिकारियों को निर्देश दिए कि पश्मीना बकरियों की मृत्यु दर कम करने के लिए सभी ठोस प्रयत्न किए जाएं।

उत्पादन बढ़ाने के लिए भी उठाए जाएं कदम

लद्दाख के पश्मीना की गुणवत्ता के साथ इसका उत्पादन बढ़ाने के लिए भी कदम उठाए जाएं। लद्दाख में प्रत्येक वर्ष करीब 45 हजार किलो पश्मीना ऊन का उत्पादन होता है। इसमें लेह जिले के चांगथांग इलाके में ही 30 हजार किलो ऊन मिलती है। लद्दाख के दूरदराज इलाकों में चरवाहों के पास ढाई लाख से अधिक पश्मीना बकरियां हैं। लद्दाख की पश्मीना ऊन को इसी वर्ष अप्रैल में जियो टैग मिला है।

क्षेत्र के बकरी पालकों में नई ऊर्जा का संचार किया

इस उपलब्धि ने क्षेत्र के बकरी पालकों में नई ऊर्जा का संचार किया है। उन्हें पूरी उम्मीद है कि जियो टैग मिलने से पश्मीना ऊन का उन्हें उचित दाम मिल सकेगा और इसकी कोई नकल भी नहीं हो सकेगी। पशुपालन विभाग पश्मीना ऊन की पैदावार व बकरियों की संख्या बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहन दे रही है। लद्दाख के प्रशासनिक अधिकारी भी ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर पश्मीना बकरी पालकों को योजनाओं के बारे में बता रहे हैं।

उपराज्यपाल बीडी मिश्रा वर्तमान में कारगिल जिले के दौरे पर हैं

अब उपराज्यपाल बीडी मिश्रा वर्तमान में कारगिल जिले के दौरे पर हैं। कारगिल के खंगराल में उन्होंने खुद पश्मीना बकरियों के फार्म का दौरा कर किया। उन्होंने बकरी पालन से जुड़े लोगों से बातचीत कर उनकी मांगों और समस्याओं को भी सुना।

इसके बाद उन्होंने प्रशासन के अधिकारियों से जमीनी हालात के बारे में जानकारी ली। ठंड और चारे की कमी मौत का बड़ा कारण लद्दाख में सर्दी के दिनों में अत्यधिक ठंड और चारे की कमी के कारण बड़ी संख्या में पश्मीना बकरियों की मौत होती है।

दूरदराज इलाकों में जंगली जानवरों के हमले पहुंचा रहे नुकसान

इसके अलावा दूरदराज इलाकों में जंगली जानवरों के हमले भी नुकसान पहुंचाते हैं। इस पर पशुपालन विभाग ने बताया कि बकरियों को ठंड में भुखमरी से बचाने के लिए अकेले चांगथांग इलाके में ही गत वर्ष 2600 क्विंटल चारे की व्यवस्था की गई थी। इस वर्ष भी सर्दी के दिनों में विशेष व्यवस्था की जाएगी।

चांगथाग की भौगोलिक परिस्थितियां सबसे अनुकूल उपराज्यपाल को बताया गया कि कारगिल की पश्मीना ऊन की गुणवत्ता अच्छी है, लेकिन पूर्वी लद्दाख में लेह जिले के चांगथाग की भौगोलिक परिस्थितियां पश्मीना बकरियों और ऊन के उत्पादन के लिए सही हैं।

उपराज्यपाल को सर्दियों के महीनों में इन बकरियों को बचाने की दिशा में की जाने वाली कार्रवाई के बारे में भी जानकारी दी। चांगथांग के 54 गांवों के लोग पश्मीना बकरी पालन से जुड़े हैं। प्रदेश प्रशासन के साथ सेना भी इन्हें सहयोग दे रही है ताकि चरागाहों की कमी न खले। बता दें कि गलवन में चीनी सैनिकों से हिंसक झड़प के बाद से पूर्वी लद्दाख में घास के कुछ मैदान ग्रामीणों की पहुंच से दूर हो गए हैं।

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