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लद्दाख के सिंधु दर्शन की तरह निहारिये सूर्यपुत्री तवी को Jammu News

आने वाले समय में विभाग सिंधु दर्शन महोत्सव की तर्ज पर यहां पर भी दो या तीन दिवसीय महोत्सव आयोजित करने की योजना पर काम कर रहा है।

By Rahul SharmaEdited By: Updated: Sat, 15 Jun 2019 12:08 PM (IST)
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लद्दाख के सिंधु दर्शन की तरह निहारिये सूर्यपुत्री तवी को Jammu News
जम्मू, ललित कुमार। देश-विदेश के सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन चुके लद्दाख के सिंधु दर्शन की तर्ज पर अब जम्मू संभाग में तवी दर्शन करवाने की तैयारी है। पर्यटन विभाग जम्मू ने सिंधु दर्शन की तरह ही ऊधमपुर जिले में तवी दर्शन का कार्यक्रम बनाया है। शनिवार को यह ऊधमपुर के डुडु में अायोजित होने जा रहा है। इस बार तो यह पहला आयोजन है, लिहाजा सीमित लोगों के साथ ही विभाग शनिवार को डुडु में तवी नदी का तिलक अभिषेक कर आरती करेगा। इसके पश्चात स्थानीय कलाकारों की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए जाएंगे।

आने वाले समय में विभाग सिंधु दर्शन महोत्सव की तर्ज पर यहां पर भी दो या तीन दिवसीय महोत्सव आयोजित करने की योजना पर काम कर रहा है। पर्यटन विभाग डुडु को लाटी, सुद्धमहादेव व मानतलाई से जोड़ कर टूरिस्ट सर्किट विकसित करेगा और यहां सालाना महोत्सव आयोजित होगा। जिस प्रकार सिंधु दर्शन महोत्सव के दौरान पूजा-अर्चना के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, उसी तर्ज पर यहां भी कार्यक्रम आयोजित करने की योजना है। शनिवार के कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए पर्यटन विभाग जम्मू की टीम शुक्रवार को डुडु पहुंच गई थी और वहां पर स्थानीय लोगों की मदद से सफाई अभियान चलाया गया।

शनिवार सुबह 11 बजे तवी दर्शन कार्यक्रम आरंभ होगा जिसमें डुग्गर प्रदेश के जानेमाने लेखक प्रोफेसर शिव निरमोही श्रद्धालुओं को तवी नदी की उत्पति व इसके महत्व बारे विस्तृत जानकारी देंगे। इसके पश्चात सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होगा और अंत में विभाग की ओर से प्रोफेसर शिव निरमोही समेत कुछ अन्य बुद्धिजीवियों को सम्मानित भी किया जाएगा।

सूर्यपुत्री तवी का महत्वः तवी डुग्गर की जीवन दायिनी नदी है जिसे सूर्यपुत्री और मां गंगा की छोटी बहन भी कहा जाता है। यह रियासत की मुख्य नदियों में से एक है। कपिलास पर्वत समुंद्र तट से करीब 14,242 फुट की ऊंचाई पर स्थित है और इसी पर्वत से नीचे काली कुंड से निकलने के बाद 45 किलोमीटर का सफर तय करने के उपरांत डुडु में यह नदी तवी के नाम से अभिहित है। इसी स्थान पर यह अपने पूर्ण स्वरूप में बहती है। जखेड़, पट्टनगढ़ से होती हुई यह नदी सुद्धमहादेव से नीचे बिनिसंग में अपने साथ देवक व भागीरथ की जलधाराओं को भी शामिल करती है और यहां संगम का जिक्र पदम पुराण में भी है। चनैनी कब्से से होते हुए यह पवित्र नदी ऊधमपुर तक जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ-साथ चलती है। लड्डन कोटली से आगे जगानू, कृष्णपुर मनवाल से बाबा पैड़ नगरोटा होते हुए यह नदी जम्मू में प्रवेश करती है। जम्मू शहर का असितत्व इसी नदी पर है जो आगे चलकर दरिया चिनाब में मिलती है।

  • -जितना धार्मिक महत्व सिंधु दर्शन का है, उतना ही महत्व तवी दर्शन का भी है लेकिन अाज तक श्रद्धालुओं को इस तरफ आकर्षित करने की दिशा में कोई विशेष प्रयास नहीं हुए। तवी नदी को इसका उचित स्थान दिलाने व देश-विदेश के श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण व धार्मिक महत्व का केन्द्र बनाने के उद्देश्य से तवी दर्शन का आयोजन किया जा रहा है। इसके साथ ही विभाग यह भी प्रयास कर रहा है कि युवा पीढ़ी को जम्मू की जीवन दायिनी के महत्व बारे जागरूक किया जाए। -अंसुया जम्वाल, डिप्टी डायरेक्टर पर्यटन विभाग जम्मू
  • -एक कोशिश है कुछ अच्छा करने की व अपनी संस्कृति को पहचान दिलाने की। इस बार तो केवल शुरूआत है लेकिन अगले साल इसे बड़े पैमाने पर आयोजित किया जाएगा। मौजूदा समय में डुडु में श्रद्धालुओं के लिए कोई विशेष ढांचागत सुविधाएं भी नहीं है। इस शुरूआत के बाद ढांचा विकसित करने पर काम किया जाएगा और यह प्रयास रहेगा कि जिस तरह लद्दाख में हर साल सिंधु दर्शन महोत्सव होता है, डुडु में तवी दर्शन महोत्सव का आयोजन किया जाए। -ओपी भगत, डायरेक्टर पर्यटन विभाग जम्मू 
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