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Jhiri Mela: हक, उसूलों और अधिकारों का संघर्ष है झिड़ी मेला, जानिए क्या है इस मेले के पीछे की कहानी!

लोगों की भारी हाजिरी को देखते हुए प्रशासन की ओर से सुरक्षा और सुविधा के व्यापक प्रबंध रहते हैं। 15 नवंबर को मेला संपन्न होगा।

By Rahul SharmaEdited By: Updated: Mon, 11 Nov 2019 11:53 AM (IST)
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Jhiri Mela: हक, उसूलों और अधिकारों का संघर्ष है झिड़ी मेला, जानिए क्या है इस मेले के पीछे की कहानी!

जम्मू, अशोक शर्मा। झिड़ी मेला कटड़ा के अगार गांव के उस किसान की याद में मनाया जाता है, जिसने अपने हक के लिए जान दी थी ताकि फिर किसी किसान के साथ अन्याय न हो। बाबा जित्तो और उनकी बेटी बुआ कौड़ी की याद में हर वर्ष झिड़ी मेला लगता है। जम्मू से 25 किलोमीटर दूर झिड़ी गांव में लगने वाले मेले में जम्मू के विभिन्न जिलों से ही नहीं, देश-विदेश से श्रद्धालु बाबा के दरबार में माथा टेकने आते हैं।

झिड़ी मेला कार्तिक पूर्णिमा से दो दिन पहले शुरू होता है आैर पूर्णिमा के तीन दिन बाद तक चलता है। 10 नवंबर को मेला शुरू हो गया है। पूर्णिमा 12 नवंबर को है आैर इसी दिन बाबा तालाब में सुंगल स्नान भी होगा। मेले में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, पानीपत के साथ-साथ विदेश से भी श्रद्धालु आते हैं। वहां स्थित प्राचीन मंदिर में बुआ कौड़ी, बाबा जित्तो का आशीर्वाद लेंगे। लोगों की भारी हाजिरी को देखते हुए प्रशासन की ओर से सुरक्षा और सुविधा के व्यापक प्रबंध रहते हैं। 15 नवंबर को मेला संपन्न होगा। 

प्रेरणादायक है बाबा जित्तो का जीवन : मंदिर के महंत योगेश मेहता ने बताया कि बाबा जित्तो का जीवन प्रेरणादायक है। इसके कई पहलू मानवीय जीवन की महानता को प्रदर्शित करते हैं। अन्याय के सामने नहीं झुकें, किसी से धोखा न करें और बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए। बाबा बुआ के स्थान पर लगने वाले मेले को उत्तर भारत के सबसे बड़े किसान मेलों में गिना जाता है। तड़के से बाबा तालाब पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमडऩा शुरू हो जाता है। बहुत सी बिरादरियों के खारके भी यहीं चढ़ाए जाते हैं। आज बाबा का तालाब जम्मू के धार्मिक पर्यटन स्थलों में से एक है।

कार्तिक पूर्णिमा का सभी के लिए विशेष महत्व: कार्तिक पूर्णिमा 12 नवंबर मंगलवार को है। इस दिन र्का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। कई बिरादरियों की इस दिन वार्षिक मेल होती है। इस दिन सिखों के गुरु श्री गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि इस दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुर राक्षस का वध किया था। त्रिपुर ने एक लाख वर्ष तक प्रयाग में भारी तपस्या कर ब्रह्मा जी से मनुष्य और देवताओं के हाथों न मारे जाने का वरदान हासिल किया था। भगवान शिव ने ही उसका वध कर संसार को उससे मुक्ति दिलाई थी। उपवास करने से हजार अश्वमेध और सौ राजसूय यज्ञ के बराबर का फल प्राप्त होता है। कार्तिक पूर्णिमा की रात को बछड़ा (बैल) दान करने से शिव लोक की प्राप्ति होती है। जब चंद्रोदय हो रहा हो, तो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छह कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी का आशीर्वाद मिलता है क्योंकि ये स्वामी कार्तिक की माता है।

स्नान और दान : कार्तिक महीना में गंगा नदी, नदी, सरोवर में स्नान करने से सभी जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है। श्रद्धालु स्नान कर दीप दान, हवन, यज्ञ, घी, वस्त्र, ब्राह्मण भोजन, तेल, तिल दक्षिणा दान करते हैं। विधि-विधान से पूजा-अर्चना करना न केवल पवित्र माना जाता है बल्कि समृद्धि आती है। इससे कष्ट दूर हो सकते हैं। कुल देवी देवताओं के स्थान पर नया अनाज चढ़ाया जाता है। उसके बाद लोग घर में नया अनाज खाना शुरू करते हैं।

माता वैष्णो देवी के भक्त थे बाबा जित्तो : बाबा जित्तो माता वैष्णो देवी के परम भक्त थे। सीधे-साधे व्यक्तित्व के मालिक थे। हमेशा सच्चाई का साथ देना और अन्याय न सहना उनकी पहचान थी। कटड़ा के गांव अगार के रहने वाले बाबा जित्तो की चाची जोजां, जो उनकी मासी भी थीं के सात बेटे थे। वही उसके सबसे बड़े दुश्मन थे। जब बंटवारा होने की बात हुई तो बाबा जित्तो को जमीन का आठवां हिस्सा देने की बात हुई। नियमानुसार आधा हिस्सा बनता था। पंचायत बुलाई गई, तो उसमें भी बाबा के साथ न्याय नहीं हुआ। बाबा जित्तो और बुआ कौड़ी को कई बार मारने की भी साजिशें हुई। बाबा जित्तो परेशान होकर बेटी की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वहां से गांव शामा चक्क में मित्र रुलो लोहरा के पास आ गए। उसके पास इतनी जमीन थी नहीं।

उन्होंने जमींदार मेहता बीर सिंह से निवेदन किया कि उन्हें खेती के लिए थोड़ी जमीन दी जाए। मेहता राजी हो गया पर बदले में फसल का एक चौथाई हिस्सा मांगा। उसने बाबा जित्तो को ऐसी रक्कड़ जमीन दी यहां खेतीबाड़ी कभी हुई ही नहीं थी। बाबा ने कड़ी मेहनत पर वहां पर इतनी अच्छी फसल पैदा कर ली कि लोग खेतों में लगी कनक देखने आने लगे। लोग हैरान थे कि ऐसी बेकार जमीन पर खेती कैसे संभव हुई। मेहता ने लालचवश ज्यादा फसल मांगी। जब बंटवारा होने से पहले बाबा स्नान करने गए कि पीछे से फसल को लूटा जाने लगा। जब बाबा जित्तो नहाकर लौटे और उन्होंने कनक लुटती देखी तो उन्होंने वहीं शहादत दे दी, ताकि आगे से किसी किसान के साथ इस तरह का अन्याय न हो कि वह मेहनत करता रहे और उसका हिस्सा कोई और खा जाए।

कभी खेत था बाबा तालाब: इस समय जहां पर बाबा का तालाब है, वहां किसी समय बाबा के खेत होते थे। जिस जगह बाबा की चिता बनाई गई थी वहीं बुआ कौड़ी ने भी चिता में छलांग लगा दी। इस स्थान पर बाबा जित्तो और बुआ कौड़ी का मंदिर है। जिन लोगों ने भी बाबा की फसल का दाना खाया है, उस परिवारों के लोग हर वर्ष बाबा के स्थान पर गलती की माफी मांगने पहुंचते हैं। बाबा ने फसल के ढेर पर खुदकुशी कर ली और सारी फसल उनके खून से सन गई। बुआ कौड़ी ने भी पिता की चिता के साथ प्राण त्याग दिए। तभी से उनकी याद में मेला लगाया जाता है।

इस खिचड़ी में है आस्था का स्वाद: कार्तिक पूर्णिमा पर विभिन्न बिरादरियों की वार्षिक मेल होती है। श्रद्धालुओं के लिए भंडारे लगाए जाते हैं। यह भंडारा काले मॉश और चावल की खिचड़ी के बिना अधूरा है। बाबा जित्तो की याद में लगने वाला झिड़ी मेला हो या विभिन्न देवी-देवताओं के स्थान पर लगने वाली मेल में दोपहर के भंडारे में खिचड़ी परोसी जाती है। कहते हैं कि जितना समय चावल पकने में लगता है, उससे तीन गुना ज्यादा समय काले मॉश पकने में लगता है, लेकिन इसे प्रभु कृपा समझें या देवी-देवताओं के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था, इन देव स्थलों पर काले मॉश व चावल को एक साथ पकाया जाता है। एक ही समय में दोनों पक जाते हैं। देव स्थलों पर खिचड़ी का प्रसाद कैसे शुरू हुआ, इसे लेकर बाबा जित्तो की कहानी को अंत तक समझना जरूरी है। कहते हैं कि बाबा की शहादत के वर्षों बाद जब उनकी याद में देवस्थल बना तो क्षेत्र के किसान नई फसल का कुछ हिस्सा चढ़ाने वहां पहुंचने लगे। श्रद्धालुओं के लिए भंडारे का फैसला किया गया। श्रद्धालुओं ने देवस्थल पर चावल चढ़ाए थे और कुछ ने काले मॉश चढ़ाए थे, लेकिन आयोजकों के पास भोजन बनाने के लिए एक ही बर्तन था। ऐसे में अगर पहले चावल बनाते तो दाल पकाने के लिए बर्तन नहीं बचता। श्रद्धालुओं ने दोनों को एक साथ पकने के लिए डाल दिया कि अगर मॉश कम पके होंगे तो किसी तरह गुजारा कर लिया जाएगा। श्रद्धालुओं ने बाबा का नाम लेकर एक ही बर्तन में काले मॉश व चावल डालकर पकाना शुरू कर दिया। आश्चर्य यह रहा कि एक समय में चावल व काले मॉश पक कर तैयार हो गए।

बेसब्री से रहता है किसानों को मेले का इंतजार: झिड़ी मेले का किसानों को बेसब्री से इंतजार रहता है। बाबा जीतमल स्वयं किसान थे। सप्ताह भर चलने वाले मेले के लिए किसानों से जुड़े डेढ़ दर्जन विभाग सक्रिय रहते हैं। स्टाल लगाकर किसानों को खेती, बागवानी, डेयरी, रेशम उद्योग, खादी, फूलवानी के बारे में जानकारी दी जाती है। खेती की नवीनतम तकनीकों से अवगत कराया जाता है। इसलिए जब झिड़ी मेला लगता है, एक सप्ताह पहले ही पशुपालन, कृषि विभाग, बागवानी विभाग, सेरिकल्चर विभाग, फूलवानी विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, किसानों से जुड़े बैंक आदि स्टाल लगाने में जुट जाते हैं। बेहतर डिस्प्ले इन स्टालों पर होता है। बाद में सर्वश्रेष्ठ स्टाल वाले विभाग को सम्मानित भी किया जाता है। हर साल किसानों के लिए कुछ न कुछ हटकर होता है।

प्लांट हेल्थ क्लीनिक का मॉडल रहेगा आकर्षण का केंद्र: इस बार झिड़ी मेले में प्लांट हेल्थ क्लीनिक का मॉडल आकर्षण का केंद्र रहेगा। कृषि विभाग के प्लांट हेल्थ क्लीनिक जिले भर में स्थापित हैं जहां पौध डॉक्टर बैठता है और बीमार पौधे का इलाज किया जाता है। रोटा वीटर, सीडलर, थ्रैशर, पटाटो डिग्गर, छोटे-बड़े ट्रैक्टर सब यहां पर प्रदर्शित किए जाएंगे। कई बैंक किसानों के लिए योजनाएं लेकर आएंगे। योजनाओं से किसानों को अवगत कराया जाएगा। मेले में किसानों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र राजस्थान, हरियाणा से लाई गई गाएं, भैंस होंगी जो कि अधिकतम दूध के लिए किसानों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं। कई किसान तो महज अच्छे माल मवेशी की तलाश में ही झिड़ी मेले में आते हैं। यहां तक कि ऊंट खरीदने के लिए भी पहुंचते हैं। राजस्थान से व्यापारी ऊंट लाकर मेले में प्रदर्शित करते हैं।