Kargil Silver Jubilee Year: खेल मैदानों में युवाओं में जोश भर रही सेना, सुना रही शहीदों की वीरता के किस्से
Kargil Silver Jubilee Year खेल मैदानों में भारतीय सेना युवाओं में जोश भर रही है। उन्हें शहीदों की वीरता की कहानी सुना रही है। इसके साथ ही 1948 से क्षेत्र में पाकिस्तान से हुए युद्ध में बलिदान देने वाले अपने वीरों को श्रद्धांजलि दे रही है। 1999 के भारत-पाक युद्ध के बलिदानों के साथ सेना उन बलिदानों की वीरता को भी याद दिला रही जिन्होंने दुश्मनों से लोहा लिया था।
राज्य ब्यूरो, जम्मू। लद्दाख पर कब्जाने के षड्यंत्रों को नाकाम बनाते हुए बलिदान देने वाले भारतीय सेना के वीर लद्दाख के खेल मैदान में उमड़ रहे युवाओं में जोश जगा रहे हैं। कारगिल रजत जयंती वर्ष में सेना खेल प्रतियोगिताओं के माध्यम से वर्ष 1948 से क्षेत्र में पाकिस्तान से हुए युद्ध में बलिदान देने वाले अपने वीरों को श्रद्धांजलि दे रही है।
इस दौरान युवाओं को वर्ष 1999 के भारत-पाक युद्ध के बलिदानों के साथ सेना उन बलिदानों की वीरता को भी याद दिला रही, जो विपरीत हालात में अपनी बहादुरी से दुश्मन को मात देकर भारतीय सैनिकों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गए हैं। सेना की फायर एंड फ्यूरी कोर की फारेवर इन आपरेशन डिवीजन की ओर से बलिदानी सूबेदार हरका बहादुर व बलिदानी मेजर बीएस रंधावा की की याद में कारगिल में 11 जून से पांच दिवसीय तीरंदाजी व वाली प्रतियोगिता करवाई गई।
6 टीमों ने प्रतिभा का प्रदर्शन किया
वालीबाल प्रतियोगिता में चौदह टीमों ने हिस्सा लिया। वहीं प्रतियोगिता के अतिम दिन रविवार को कारगिल कस्बे में स्थित आर्मी गुडविल स्कूल हरका बहादुर के खेल मैदान में वालीबाल के मुकाबले हुए, जिसमें स्थानीय 16 टीमों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
इस दौरान युवाओं को बलिदानी सूबेदार हरका बहादुर व बलिदानी मेजर बीएस रंधावा सहित सेना के उन सेना के उन बलिदानियों के बारे में बताया गया, जिन्होंने लद्दाख को बचाने में अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया।
कश्मीर को कब्जाने के लिए कई बार रची गईं साजिशें
सेना के अधिकारियों ने खिलाड़ियों को बताया कि देश के विभाजन के बाद से पाकिस्तान ने लद्दाख, कश्मीर को कब्जाने के लिए भी कई बार साजिशें रची हैं। पाकिस्तान ने अक्टूबर 1947 को कश्मीर पर कब्जा करने के लिए हमला किया था। वर्ष 1948 में कारगिल पाकिस्तानी सेना के कब्जे में था।
सेना की 1-5 गोरखा राइफल्स के कमान अधिकार लेफ्टिनेंट कर्नल अनंत सिंह पठानिया को पाकिस्तानी सेना को खदेड़ने की जिम्मेदारी दी गई थी। पाकिस्तान ने कारगिल में पैर जमा लिया था। पाकिस्तान सेना कारगिल को शेष देश से जोड़ने वाली शिंगो नदी पर बने खेड़ा पुल पर डेरा डाले हुए थी। पुल की जिम्मेदारी अमेरिका द्वारा प्रशिक्षित पाकिस्तानी सैनिकों के पास थी।
दुश्मनों के बीच घुस गए सैनिक
ऐसे हालात में लेफ्टिनेंट कर्नल अनंत सिंह पठानिया, सूबेदार हरका बहादुर व उनकी साथ गोरखा सैनिकों ने दुश्मन के बीच घुसकर उन पर धावा बोलने की योजना बनाई। गोरखा सैनिकों ने नदी को पार कर सीधे दुश्मन के खेमे में घुसकर हमला बोल दिया।
चंद गोरखा सैनिकों ने दुश्मन की बुनियादी हिलाकर उसे पीछे हटने को मजबूर कर दिया। लेफ्टिनेंट कर्नल अनंत सिंह पठानिया को महावीर चक्र व हरका बहादुर को मिलिट्री क्रास से सम्मानित किया गया। इन सैनिकों के बलिदान की बदौलत ही आज कारगिल में नियंत्रण रेखा खेड़ा पुल से पांच किलोमीटर की दूरी पर है।
मेजर रंधावा के बलिदान की कहानी
महावीर चक्र विजेता मेजर बीएस रंधावा की कमान में कारगिल सेक्टर में राजपूत रेजीमेंट की एक कंपनी ने 17 मई 1965 को ऊंचाई पर डेरा डाले दुश्मन पर आधी रात को हमला किया था। चंद सैनिकों के साथ उन्होंने दुश्मन की लाइट मशीन गन वाली पोस्ट को तबाह किया था।
इस दौरान वह गोलीबारी में घायल हो गए। हमले को जारी रखने के लिए उन्होंने जवानों को मजबूर किया कि उन्हें वहीं छोड़ कर अपना मिशन पूरा करें। इस दौरान सैनिकों ने चौकी पर कब्जा कर लिया। मेजर रंधावा युद्ध में लड़ते हुए बलिदान हो गए।
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