नूरी से मिला कश्मीरी पश्मीना को नूर, 8 वर्ष पहले क्लोन से जन्मी नूरी से पश्मीना शॉल उद्योग को है उम्मीद
डॉ. शाह ने कहा कि अगर नूरी का क्लोन तैयार हो सकता है तो फिर हांगुल का क्यों नहीं। उन्होंने कहा कि हमें हांगुल पर भी यह प्रयोग करना चाहिए।
By Rahul SharmaEdited By: Updated: Thu, 23 Jul 2020 08:10 PM (IST)
श्रीनगर, नवीन नवाज: विज्ञानियों के जज्बे और सपने को हकीकत में बदलने की चाहत का नाम है 'नूरीÓ। इन्हीं सपनों ने कश्मीर के पश्मीना की ढलते बाजार को नया नूर दिया। 'नूरीÓ के जन्म की कहानी काफी अजीब है। जम्मू कश्मीर के विज्ञानियों ने यह सपना सच कर दिखाया और आठ वर्ष पहले पश्मीना भेड़ का क्लोन विकसित कर दिखाया। इसीलिए नाम रखा गया नूरी। आज नूरी का भरा पूरा परिवार है। उसके चार बच्चे हैं।
नूरी से पहले देश में पशुओं के क्लोन तैयार हो चुके हैं। हरियाणा में वर्ष 2009 में गरिमा नामक भैंस को क्लोन तकनीक से पैदा किया था। दुनिया में क्लोन तकनीक से पहला पशु भी एक भेड़ थी। 1996 में पैदा इस भेड़ का नाम डाली रखा गया था और यह करीब सात साल जिंदा रही। नूरी अब आठ साल का जीवन पूरा कर चुकी है और पूरी तरह स्वस्थ है।श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय प्राणी बायोतकनीक विभाग के मुख्य विज्ञानी डॉ. रियाज शाह के नेतृृत्व में दल की दो साल की मेहनत के बाद नूरी का जन्म हुआ। डॉ. रियाज उस टीम के वरिष्ठ सदस्यों में शामिल रहे हैं जिन्होंने हरियाणा में पहली भैंस का क्लोन तैयार किया था। डॉ. शाह कहते हैं कि पहली क्लोन भेड़ तैयार करने में हमें दो साल का समय लगा था। उसके बाद अगले छह माह में दूसरी क्लोन भेड़ तैयार की। अब नूरी समेत 25 पश्मीना भेड़ हमारे फार्म में हैं। इनमें नूरी के चार बच्चे भी हैं। नूरी ने एक नर व तीन मादा भेड़ों को जन्म दिया है।
नर भेड़ का इस्तेमाल ही नहीं हुआ: नूरी के जन्म की क्लोन तकनीक का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि जब भेड़ों की अंडाशय से लिए अंडों का लैब में फ्यूजन किया और किसी नर भेड़ के वीर्य का इस्तेमाल नहींं किया गया। इसके बाद लैप्रोस्कोपिक तकनीक के जरिए भ्रूण को भेड़ के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया गया। पांच माह के प्राकृतिक गर्भावस्था की अवधि के दौरान पेट में पलने वाले भू्रण की अल्ट्रासाउंड के जरिए अकसर आकलन किया जाता रहा। क्लोन पश्मीना मेमना सामान्य रूप से पैदा हुआ और जन्म के समय उसका वजन करीब सवा किलो था।
एनडीआरआइ के साथ शुरू की थी योजना: यह परियोजना करनाल के राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआइ) और शेर-ए-कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय ने संयुक्त रूप से चलाई थी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) की यह योजना विश्व बैंक द्वारा वित्तपोषित थी और इसे राष्ट्रीय कृषि नवाचार परियोजना के तहत शुरूकिया गया था। सामान्य तौर पर भेड़ का जीवन काल आठ से 10 साल होता है। नूरी इस समय स्वस्थ है। इसका पहला चरण 2014 में ही समाप्त हो गया था। दूसरा चरण वित्तीय अभाव के कारण अभी तक शुरू नहीं हो पाया।
पर्वतीय क्षेत्रों में होती है पश्मीना भेड़: पश्मीना भेड़ सामान्य तौर पर समुद्रतल से करीब 10 हजार फुट की ऊंचाई पर ही पाई जाती हैं। लद्दाख के अलावा तिब्बत में भी यह भेड़ें पाई जाती हैं। इनकी ऊन नर्म और हल्की होने के साथ ही खूब गर्म होती है। पश्मीना ऊन से कश्मीरी बुनकरों द्वारा तैयार शॉल की दुनियाभर में मांग है। पश्मीना शॉल उद्योग से कश्मीर में एक लाख लोग प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से आजीविका कमाते हैं। कुछ वर्षों से पश्मीना भेड़ (नर) की संख्या लगातार घट रही है। इसके अलावा चारे की कमी इनके अस्तित्व के लिए संकट का कारण बनी हुई है। डॉ. शाह व उनके साथियों का कहना है कि हमने भेड़ बचाने और पश्मीना की उन्नत किस्म तैयार करने के लिए क्लोन तकनीक से इसके जन्म को सुनिश्चित बनाने का फैसला किया था। हमारा प्रयोग सफल रहा।
उमर ने प्रसन्नता जताई : जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहते हैं कि मुझे आज भी वह दिन याद है जब नूरी को पहली बार शुहामा स्थित अनुसंधान केंद्र से बाहर घुमाने के लिए श्रीनगर सचिवालय में लाया गया था। यकीन नहीं होता कि आज आठ साल हो गए हैं।नूरी ने हांगुल के संरक्षण को भी दी उम्मीद : डॉ. शाह ने कहा कि अगर नूरी का क्लोन तैयार हो सकता है तो फिर हांगुल का क्यों नहीं। उन्होंने कहा कि हमें हांगुल पर भी यह प्रयोग करना चाहिए। हांगुल भी खतरे में है। यह हमारा राज्य पशु है। अगर पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराए जाएं तो हांगुल का क्लोन तैयार किया जा सकता है।
राजपथ पर दिख चुकी नूरी : वर्ष 2013 में गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर सजी-धजी नूरी की सवारी दिखीं थी। जम्मू कश्मीर की यह आश्चर्यजनक झांकी तब और भी आश्चर्यजनक हो गई जब लोगों ने जाना कि यह समान बकरी कि कलाकृति नहीं बल्कि पशमीना बकरी की क्लोन नूरी की कलाकृति है।
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