पक्षपात की सियासत : जम्मू की उम्मीदों पर हावी कश्मीरी दलों के सियासी दांव Jammu News
जम्मू कश्मीर की सियासत में परिसीमन बड़ा मुद्दा है। अगर परिसीमन संबंधित नियमों के आधार पर होता है तो जम्मू प्रांत में विधानसभा सीटें 37 से बढ़ जाएंगी।
जम्मू, नवीन नवाज । विधानसभा क्षेत्रों के परिसमीन के बहाने जम्मू से दशकों से हो रहे राजनीतिक पक्षपात समाप्त होने की उम्मीदें कमजोर होती दिख रही हैं। केंद्र में भाजपा को बहुमत मिलने के बाद यह उम्मीद जगी थी कि सरकार बड़े फैसले ले सकती है। फिर लगातार बैठकों में परिसीमीन का मुद्दा तेज हुआ लेकिन सरकार के रुख से साफ हुआ कि अभी इन उम्मीदों को हकीकत बनने में काफी समय लगेगा।
जम्मू कश्मीर की सियासत में परिसीमन बड़ा मुद्दा है। अगर परिसीमन संबंधित नियमों के आधार पर होता है तो जम्मू प्रांत में विधानसभा सीटें 37 से बढ़ जाएंगी। फिलहाल कश्मीर में विधानसभा सीटें 46 हैं। क्षेत्रफल के हिसाब से कश्मीर में राज्य का 15.8 फीसद हिस्सा आता है और आबादी करीब 54.9 फीसद है। जम्मू पूरे राज्य में 25.9 फीसद क्षेत्र में फैला और आबादी 42.9 फीसद है। लद्दाख में आबादी भले ही 2.2 फीसद है पर इसका क्षेत्रफल सबसे बड़ा है। लद्दाख 58.3 फीसद क्षेत्र में फैला है। वहां विधानसभा की सीटें मात्र चार हैं। ऐसे में और क्षेत्रफल और जनसंख्या का गणित देखें तो कश्मीर हर तरह से फायदे में है।
कश्मीर सात दशक से राज्य की सत्ता पर काबिज
विधानसभा क्षेत्रों में इसी बढ़त के सहारे कश्मीर सात दशक से राज्य की सत्ता पर काबिज है। पर कश्मीरी सियासी दल नहीं चाहते की उनका यह राजनीतिक वर्चस्व समाप्त हो जाए। इसलिए शायद परिसीमन पर रोक लगा दी गई। अब भी ऐसे किसी संभावित फैसले का विरोध कर रहे हैं। वह जानते हैं कि सीटों का परिसीमन हुआ तो कश्मीर केंद्रित राजनीतिक दलों की अहमियत भी घटेगी। यदि परिसीमन हो गया तो उनकी राह कठिन होगी।
अंतिम बार परिसीमन 1990 के दशक में
राज्य में अंतिम बार परिसीमन 1990 के दशक में तत्कालीन राज्यपाल केवी कृष्णाराव के दौर में हुआ था। लेकिन वह भी संबधित नियमों का परिसीमन में अनुपालन कराने में कथित तौर पर पूरी तरह समर्थ नहीं रहे थे। ऐसे में जम्मू व लद्दाख पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने की मांग बरसों से करते आ रहे हैं। भाजपा ने वर्ष 2002, 2008, 2014 के विधानसभा चुनावों में ही नहीं वर्ष 2000 के बाद हुए सभी संसदीय चुनावों में भी इसे अपने एजेंडे का हिस्सा बनाया है।
विरोधियों का तर्क, 2026 से पहले नहीं हो सकता परिसीमन
नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने संवैधानिक नियमों का हवाला देते हुए तथ्यों के आधार पर कहा था कि परिसीमन तो वर्ष 2026 से पहले नहीं हो सकता। अगर करना है तो केंद्र सरकार को पूरे देश में कराना होगा और इसके लिए उसे संसद में कानून लाना होगा। हां, केंद्र चाहे तो वह जम्मू कश्मीर में अलग से इसकी व्यवस्था कर सकता है, लेकिन तब भी उसे संसद के रास्ते से गुजरना है। उनके इस कठोर रुख के कारण ही शायद सरकार को पांव पीछे खींचने पड़े और उम्मीदों पर फिर सियासत हावी हो गई।
आयोग के गठन की हवा चली
वर्ष 2014 के विधानसभा चुनावों के बाद जब भाजपा ने पीडीपी के साथ मिलकर जम्मू कश्मीर में सरकार बनायी थी तो सभी को लगा था कि जम्मू के साथ पक्षपात का दौर समाप्त होने वाला है। पीडीपी के साथ तय किए गए एजेंडा ऑफ एलांयस में इस मुददे पर भाजपा पूरी तरह चुप रही। जून 2018 में पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार के भंग होने के बाद फिर सुगबुगाहट शुरू हुई। लोकसभा चुनाव में भाजपा केंद्र में दोबारा सत्ता में आयी तो केंद्रीय गृहमंत्रलय में अमित शाह के दाखिले के साथ ही जम्मू कश्मीर में परिसीमन आयोग के गठन की जोरदार हवा चली।
हालात बिगड़ने की दे रहे चेतावनी
पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने भी परिसीमन के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करते हुए इसे कश्मीरी मुस्लिमों के वजूद, राज्य के विशेष दर्जे के साथ जोड़ते हुए कहा था कि ऐसा कोई भी प्रयास जो कश्मीर के खिलाफ होगा, कश्मीर में हालात बिगाड़ देगा। ध्रुवीकरण की उनकी सियासत और धमकियों के कारण केंद्र सरकार संभलकर आगे बढ़ना चाहती है।
जम्मू की सीटें बढ़ेंगी : इकजुट जम्मू
इकजुट जम्मू के महासचिव अजातशत्रु सिंह ने कहा कि जम्मू कश्मीर की यह कड़वी सच्चाई है जिसे लोग समझते हैं, लेकिन स्वीकारते नहीं। अगर आबादी, क्षेत्रफल और भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए परिसीमन होगा तो कश्मीर घाटी में विधानसभा की सीटें घटेंगी।
गृह मंत्रलय ने किया चर्चा से इन्कार
गृहमंत्रलय ने कश्मीर में उठते विरोध के स्वरों को देखते हुए स्पष्टीकरण जारी किया था कि जिस बैठक में इस मुददे पर चर्चा की बात की जा रही है,उस बैठक में यह मामला उठा ही नहीं है। कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी जैसे दलों ने हालात बिगड़ने की चेतावनी दी थी।
परिसीमन की तत्काल आवश्यकता : भीम सिंह
जम्मू : पैंथर्स पार्टी के मुख्य संरक्षक प्रो. भीम सिंह ने कहा है कि जम्मू कश्मीर में परिसीमन की तत्काल आवश्यकता है, जो 1995 के बाद से नहीं की गई है। 25 साल हो गए हैं और 10 साल या उससे अधिक के लिए लटकने का कोई कारण नहीं है। इसलिए परिसीमन तत्काल होना चाहिए।
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