जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा, आर्टिकल-370 और आतंकी हमलों पर चुनाव से पहले मनोज सिन्हा का Exclusive Interview
LG Manoj Sinha Full Interview जम्मू-कश्मीर में आगामी 18 सितंबर को पहले चरण का विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे में केंद्रशासित प्रदेश में कैसे हालात हैं और क्या तैयारियां हैं। इसे लेकर जागरण संवाददाता नवीन नवाज ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से बातचीत की। इस इंटरव्यू में कई मुद्दों को लेकर बातचीत हुई। इसी क्रम में पेश हैं बातचीत के कुछ अंश।
1. जम्मू-कश्मीर बदलाव के दौर में है, अगले पांच वर्ष में आप इसे कहां पाते हैं?
जम्मू-कश्मीर बदल रहा है, मत कहिए। परिवर्तन हो चुका है। यह ट्रांजिशन के फेज में नहीं है, बीते पांच वर्ष में यहां बहुत ट्रांस्फॉर्मेशन हुआ है। इस बदलाव को आप जम्मू-कश्मीर के हर क्षेत्र में, हर वर्ग में खुद महसूस कर सकते हैं। कुछ वर्ष पहले तक कश्मीर में चुनाव के समय तक मतदाताओं का मतदान केंद्र पर पूरा दिन इंतजार होता था, लेकिन लोकसभा चुनाव में सभी ने देखा। हर जगह मतदाता पूरे उत्साह के साथ निकले।2. आपको नहीं लगता कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव बहुत पहले हो जाने चाहिए थे। जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा, इस समय एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा है।
अगर आप केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का पांच अगस्त 2019 का भाषण ध्यान से सुनें तो उन्होंने उसमें हरेक बात पूरी स्पष्टता के साथ रखी। पहले परिसीमन, फिर चुनाव और उसके बाद राज्य का दर्जा। पुनर्गठन के बाद जम्मू कश्मीर में सीटों की संख्या बढ़कर 83 से 90 हो गई। परिसीमन का कार्य प्रशासनिक स्तर से तो किया नहीं जा सकता, इसके लिए परिसीमन आयोग का गठन करना होता है।3. प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी और कई अन्य अलगाववादी संगठनों के नेता चुनाव में भाग ले रहे हैं। कुछ नेता आरोप मढ़ रहे हैं कि प्रशासन इन लोगों को जानबूझकर मैदान में उतार रहा है।
यह लोकतंत्र हैं, इसमें कोई भी चुनाव लड़ सकता है। अगर प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी या किसी अन्य अलगाववादी संगठन के नेता या कोई पूर्व आतंकी चुनाव लड़ रहा है तो इसका अर्थ यही समझ आता है कि वह भारतीय संविधान में आस्था व्यक्त कर रहे हैं। यह लोकतंत्र की जीत ही है। कल तक यह लोग भारतीय संविधान के खिलाफ थे, मुख्यधारा से विमुख थे। आज इन्हें वास्तविकता का ज्ञान हो चुका है और यह मुख्यधारा में लौट रहे हैं। मैं या कोई प्रशासनिक व्यवस्था भी इन्हें चुनाव लड़ने से नहीं रोक सकती। इस पर बहस हो सकती है कि इन लोगों को चुनाव लड़ने की इजाजत होनी चाहिए या नहीं। इस पर चुनाव आयोग ही फैसला ले सकता है। उससे पूर्व सभी राजनीतिक दलों को इस विषय पर आम राय बनानी होगी और उसके अनुसार संसद कानून बना सकती है। वर्तमान में कानून देश के सभी योग्य नागरिकों को चुनाव लड़ने का अधिकार देता है।4. जम्मू-कश्मीर में चुनावी रैलियां और जगह-जगह प्रचार से क्या संदेश निकला है?
यह चुनाव काफी महत्वपूर्ण है। प्रशासन का कार्य है कि चुनाव पूरी तरह से एक निष्पक्ष, सुरक्षित और विश्वासपूर्ण वातावरण में हों। लोकसभा चुनाव में भी जम्मू-कश्मीर की जनता ने खुलकर भागीदारी की थी। स्पष्ट है कि कश्मीर की जनता हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में आस्था व्यक्त कर चुकी है। आम आदमी यह मान चुका है कि हमारा भविष्य भारत के साथ है और यही वजह है कि वह उत्साह से लोकतंत्र के उत्सव में भागीदारी कर रहा है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मतदान को लेकर विधानसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव का भी रिकॉर्ड टूट जाएगा।सभी राजनीतिक दल बेखौफ वातावरण में रैलियां कर रहे हैं। आप कश्मीर में आधी रात तक बैठकों का दौर और संपर्क अभियान देख सकते हैं। यह उन लोगों को देखना चाहिए, जिन्हें कश्मीर में कुछ बदलाव नहीं दिखाई पड़ता।5. लोगों के इस उत्साह का मूल कारण आप किसे मानते हैं?
प्रदेश में पहली बार बड़ी आबादी को उनके अधिकार मिले। इन्हें अनुच्छेद 370 के नाम पर अधिकारों से वंचित रखा गया था। भ्रष्ट और अपारदर्शी व्यवस्था के कारण लोगों को उनके मौलिक अधिकार ही नहीं दिए जा रहे थे। अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में व्यापक प्रशासनिक सुधार हुए। 1947 में पाकिस्तान से आए विस्थापित पहली बार विधानसभा चुनाव में वोट डाल रहे हैं। वाल्मीकि समाज, गोरखा समुदाय को भी विधानसभा चुनाव में मतदान का हक मिला है। अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को उनके हिस्से का आरक्षण देकर समाज में उनके आगे बढ़ने की राह खोली गई है। पिछड़ा वर्ग का आरक्षण दोगुना हो गया है। निश्चित तौर पर बड़ी आबादी पहली बार नागरिक के तमाम अधिकार पाकर उत्साहित है और यही वजह है कि उनका भारतीय संविधान में विश्वास और अधिक बढ़ा है और चुनावों में यह जोश स्पष्ट दिख रहा है।6. प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली की बहाली हुई थी पर अब प्रशासन समय से चुनाव ही नहीं करवा पाया?
पंचायत चुनाव भी होंगे। हम ग्रामीण लोकतंत्र की मजबूती के लिए कृत संकल्पित हैं। विधानसभा चुनाव के बाद हम पंचायती राज व्यवस्था और शहरी निकायों के चुनाव शीघ्रता से करवाने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। देरी का कारण प्रशासनिक चुनौती थी।जम्मू-कश्मीर में आज तक स्थानीय निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग आरक्षण के लाभ से वंचित था। जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद केंद्रीय कानून लागू हो चुके हैं और ऐसे में पिछड़ा वर्ग को लाभ देने के लिए प्रदेश के कानूनों में संशोधन किया जाना था। यहां विधानसभा नहीं होने के कारण हम संसद के रास्ते गए और संशोधन कानून पास करवाया। अब पिछड़ा वर्ग को आरक्षण की राह साफ हो चुकी है। चुनाव के बाद आरक्षण की प्रक्रिया पूरी होते ही निकाय और पंचायत चुनाव भी शीघ्र करवाएंगे।7. जम्मू-कश्मीर में बीते कुछ माह के दौरान कई आतंकी हमले हुए। इससे लोगों में असुरक्षा एवं भय की भावना पैदा हुई। यह हमले शांति बहाली के दावों पर भी सवाल उठाते हैं?
राजनीतिक दल इसे मुद्दा बना रहे हैं। इसके दो पहलू हैं। पहला, पूरे देश की प्राथमिकता यही थी कि किसी तरह से कश्मीर में शांति और सुरक्षा का वातावरण बहाल हो।आतंकवाद और उसके पारिस्थितिकी तंत्र के खिलाफ कार्रवाई की जाए। इसलिए प्रशासन का ध्यान पहले कश्मीर पर ही केंद्रित रहा और सही भी है, क्योंकि जम्मू क्षेत्र में आतंकी हिंसा लगभग समाप्त हो चुकी थी।इसका असर दिखा और कश्मीर में आतंकी हिंसा लगभग समाप्त हो चुकी है, पत्थरबाजी नहीं होती है, कोई राष्ट्रविरोधी प्रदर्शन नहीं हो रहा है। आतंकियों की भर्ती अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुकी है। कश्मीर में शांति बहाली और उसके बाद लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड भागेदारी से हमारे पड़ोसी के पेट में दर्द होना स्वाभाविक था।हताश पाकिस्तान ने जम्मू में प्रशिक्षित विदेशी आतंकियों की घुसपैठ कराई। इन आतंकियों को अत्याधुनिक हथियार, नाइट विजन कैमरे और अन्य साजो सामान देकर भेजा गया। जम्मू के पहाड़ी इलाकों में 10-15 वर्ष पहले आतंकी हिंसा समाप्त होने के बाद सुरक्षाबलों की उपस्थिति काफी कम थी और इन आतंकियों ने इसका फायदा उठाया और जम्मू का माहौल खराब करने की साजिश रची।मैं आपके माध्यम से जम्मू-कश्मीर की जनता और पूरे देश को आश्वस्त करना चाहता हूं कि किसी को घबराने की जरूरत नहीं है। हमने आतंकियों के पूरे सफाए और इन क्षेत्रों में सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए व्यापक कार्ययोजना को लागू करना शुरू कर दिया है। सुरक्षाबलों को तैनात किया जा रहा है। l8. कुछ दल आरोप लगा रहे हैं कि उपराज्यपाल के अधिकार बढ़ाए गए हैं, ऐसा विधानसभा की प्रतिष्ठा को कम करने के लिए किया गया है।
इस विषय का अनावश्यक रूप से राजनीतिकरण करने का प्रयास किया जा रहा है। आम लोगों में कुछ राजनीतिक दलों ने भ्रम पैदा करने का प्रयास किया है। वह ऐसा क्यों कर रहे हैं, यह सभी को पता है। सच्चाई यह है कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में यह सब पहले ही दिन से पूरी तरह स्पष्ट तौर पर परिभाषित है।केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तो अब सिर्फ एक अधिसूचना जारी कर नियम स्पष्ट किए हैं। किसी भी तरह की शक्तियां या अधिकार बढ़ाए नहीं गए हैं। यह कार्य कानून के दायरे में किए जा सकते हैं।अगर किसी के अधिकार बढ़ाने की बात होती तो उसके लिए संसद में संविधान संशोधन विधेयक पेश होता, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। यह व्यवस्था पूरे देश में सभी केंद्र शासित प्रदेशों में है और यहां भी यही है।9. आपको नहीं लगता कि ऐसी व्यवस्था से नई सरकार व उपराज्यपाल के बीच विवाद पैदा हो सकता है, टकराव की स्थिति आ सकती है।
अगर यहां की निर्वाचित सरकार लोगों के कल्याण और विकास के लिए काम करती है, यहां शांति और कानून-व्यवस्था बनाए रखने में काम करती है तो फिर टकराव की नौबत क्यों आएगी। चुनी हुई सरकार का उद्देश्य यही होना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर को विकास के पथ पर आगे लेकर जाएं। ऐसा होता है तो फिर टकराव किस बात का होगा। सभी लोग मिलकर इस उद्देश्य के लिए कार्य करेंगे।10.विधानसभा चुनाव के साथ आपकी एक बड़ी जिम्मेदारी पूरी हो रही है। क्या इसके बाद फिर से सक्रिय राजनीति में लौटने का कोई इरादा है?
अभी मुझे यहां की जिम्मेदारी दी गई है। मैं उसे पूरी ईमानदारी से निभाने का प्रयास कर रहा हूं। भविष्य में क्या होगा, यह अभी कोई तय नहीं कर सकता, लेकिन अवसर मिला तो मेरी तरफ से इससे कोई इन्कार भी नहीं है।11. विधानसभा चुनाव में आप उम्मीदवारों की संख्या को किस नजरिए से देखते हैं, आपको क्या लगता है कि मतदान कैसा होगा?
देखिए, लोकसभा चुनाव में जो मतदान हुआ है, उसने पूरी दुनिया को बताया है कि जम्मू-कश्मीर, विशेषकर कश्मीर की जनता का भारतीय संविधान और भारतीय लोकतंत्र में पूरा विश्वास है। उसने उन सभी आवाज को शांत कर दिया है जो चुनाव बहिष्कार की बात करते थे या फिर यह कहते थे कि कश्मीर में अलगाववाद का विचार बहुत प्रबल है।विधानसभा चुनाव में जो आपको उत्साह नजर आ रहा है या जो आप उम्मीदवारों की संख्या की बात करते हैं, वह इस बात की पुष्टि करता है कि लोग अब यहां खुली फिजा में सांस ले रहे हैं, वह पहली बार अपने लोकतांत्रिक अधिकारों को महसूस कर रहे हैं। इसे आप यूं भी देख सकते हैं कि जम्मू-कश्मीर की जनता में यह सोच पैदा हुई है कि वह भी खुद अपना फैसला कर सकती है, लोगों में यह भावना पैदा हुई है कि वह अपने क्षेत्र की बेहतर नुमाइंदगी कर सकते हैं।कुछ लोग आप पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाते हैं। ऐसे लोगों के बारे में आप क्या कहेंगे?
कुछ लोगों की आदत दूसरों पर हल्की टिप्पणियां करना या आक्षेप लगाना ही है। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता और न मैं ऐसे लोगों की टिप्पणियों का जवाब देकर उन्हें कोई प्राथमिकता देना चाहता हूं। मैं एक बात अवश्य कहना चाहूंगा कि मुझे जम्मू-कश्मीर में आज चार वर्ष और एक माह हो चुका है, इस दौरान मैने अपना काम पूरी ईमानदारी, निष्ठा और निष्पक्षता से किया है।आज पूरे प्रदेश में किसी भी आतंकी संगठन का कोई भी कमांडर जिंदा नहीं बचा है। आतंकियों का नेटवर्क पूरी तरह नष्ट हो चुका है। जो यहां-वहां छिपे हैं, उनका भी सफाया कर दिया जाएगा। मैं देश को आश्वस्त करना चाहता हूं कि किसी को घबराने की जरूरत नहीं है।
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मतदान को लेकर विधानसभा चुनाव में लोकसभा का भी रिकॉर्ड टूट जाएगा। विधानसभा चुनाव को लेकर हर तरफ उत्साह नजर आ रहा है। यह अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में व्यापक प्रशासनिक सुधार का नजीता है।