महाराजा हरि सिंह जयंतीः कहानी अंतिम डोगरा शासक की, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में डाली लोकतंत्र की नींव
Maharaja Hari Singh Birth Anniversary साहित्यकार हसरत गड्डा ने कहा कि आप इससे इनकार नहीं कर सकते कि जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र पंचायत राज व्यवस्था और चुनावी प्रक्रिया की शुरुआत महाराजा हरि सिंह ने की है। महाराजा हरि सिंह एक प्रगतिशील विचारधारा के शासक थे। उनकी प्रगतिशील सोच आपको जम्मू कश्मीर के हर क्षेत्र में अपनी छाप के साथ नजर आएगी।
By Jagran NewsEdited By: Mohammad SameerUpdated: Sat, 23 Sep 2023 07:00 AM (IST)
नवीन नवाज, जम्मूः आज 23 सितंबर को महाराजा हरि सिंह की जयंती है। जम्मू कश्मीर में शासन में जनभागीदारी सुनिश्चित करने की नींव किसी और ने नहीं बल्कि जम्मू कश्मीर के अंतिम डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह ने रखी थी। उन्होंने ही पंचायती राज अधिनियम बनाया था। उन्होंने ही यहां प्रजा सभा बनाई थी जिसमें जनता के चुने हुए प्रतिनिधि शामिल रहते थे।
प्रजा सभा का पहला चुनाव 1934 में हुआ
जम्मू कश्मीर में पंचायत राज अधिनियम 1935 में लागू हुआ था। इससे पूर्व 1934 में महाराजा हरि सिंह ने प्रशासकीय कामकाज में पारदर्शिता लाने और आम लोगों की विकास व नीतिगत मामलों में भागदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रजा सभा गठित की थी। प्रजा सभा का पहला चुनाव 1934 में हुआ था।जम्मू कश्मीर मामलों के जानकार प्रो. हरि ओम ने बताया कि प्रजा सभा के गठन और संविधान को तैयार करने का जिम्मा महाराजा हरि सिंह ने 1932 में सर बरजोर दलाल को सौंप था। उन्होंने 1933 में अपनी सिफारिशें महाराजा हरि सिंह को सौंपी थी। प्रजा परिषद में 75 सदस्य होते थे।
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इसमें 12 सरकारी अधिकारी, 16 स्टेट काउंसलर और 14 नामांकित प्रतिनिधियों के अलावा 33 जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि होते थे। निर्वाचित प्रतिनिधियों में 21 मुस्लिम, 10 हिंदू और दो सिख समुदाय से होते थे। उन्होंने बताया कि प्रजा सभा के पहले चुनाव में आल जम्मू कश्मीर मुस्लिम कान्फ्रेन्स जो बाद में नेशनल कान्फ्रेन्स बनी, ने शेख मेाहम्मद अब्दुल्ला के नेतृत्व में भगा लिया। मुस्लिम कान्फ्रेन्स के 16 उम्मीदवार चुनाव जीते थे।
कश्मीर के वयोवृद्ध साहित्यकार हसरत गड्डा ने कहा कि आप इससे इनकार नहीं कर सकते कि जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र, पंचायत राज व्यवस्था और चुनावी प्रक्रिया की शुरुआत महाराजा हरि सिंह ने की है। महाराजा हरि सिंह एक प्रगतिशील विचारधारा के शासक थे।उनकी प्रगतिशील सोच आपको जम्मू कश्मीर के हर क्षेत्र में अपनी छाप के साथ नजर आएगी। पंचायती राज व्यवस्था उन्होंने ग्रामीण इलाकों में स्थानीय विवादों और मामलों के समाधान व स्थानीय लोगों को प्रशासकीय गतिविधियों में शामिल करने के लिए की थी।
महाराजा द्वारा लागू पंचायत राज अधिनियम की प्रस्तावना में कहा गया हैजम्मू और कश्मीर राज्य में प्रशासनिक, नागरिक और आपराधिक न्याय में सहायता के लिए और गांव की स्वच्छता और अन्य सामान्य चिंताओं व मामलों का प्रबंधन करने के लिए ग्राम पंचायतों की स्थापना करना समीचीन है।जम्मू कश्मीर मामलों के जानकार एडवोकेट अजात जम्वाल ने कहा कि नेशनल कान्फ्रेन्स समेत कई दल दावा करते हैं कि उन्होंने जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र को मजबूत बनाया हैख् पंचायतों को मजबूत बनाया है,लेकिन सच तो यह है कि महाराजा हरि सिंह ने उनके लिए नींव तैयार की है।
अगर आप आजादी के बाद का जम्मू कश्मीर का इतिहास देखेंं तो आपको पता चलेगा शेख मोहम्मद अब्दुल्ला और उनके बाद जो भी यहां सरकार का मुखिया रहा, उसने पंचायती राज अधिनियम को बदलते समय के साथ नहीं बदला।वर्ष 1951 और 1958 में इसमें संशोधन हुआ और पंचायत राज अधिनियम को सिर्फ गांवों के भीतर तक सीमित करने के साथ ही पंचायतों में कुछ सदस्यों के अलावा सरपंच भी नामांकित करने का अधिकार सरकार के पास हो गया। हां यह सही बात है कि महाराजा समय लगभग तीन प्रतिशत आबादी के पास ही मताधिकार का अधिकार था। मतदाताओं के लिए नहीं चुनाव लड़ने वालों के लिए भी न्यूनतम शिक्षा और संपत्ति जैसी शर्तें थी। वर्ष 1941 में जम्मू कश्मीर में 540 पंचायतें थी।
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