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Jammu Kashmir : शाह की कश्मीर रैली से पहले नेकां में आई फूट, नेकां पूर्व विधायक रहमान ने किया रैली का समर्थन

अपने एक बड़े वोट बैंक के नाराज होने की आशंका के चलते नेशनल कांफ्रेंस कांग्रेस और अन्य कश्मीरी दल इस विषय पर चुप्पी साधे हुए हैं। पीडीपी के संस्थापकों में शामिल रहे पूर्व उपमुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग भी पहाड़ी समुदाय से ही आते हैं।

By naveen sharmaEdited By: Rahul SharmaUpdated: Tue, 04 Oct 2022 07:52 AM (IST)
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अगर अब चूक गए तो फिर यह बहुत मुश्किल होगा।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : गृह मंत्री अमित शाह की बारामुला रैली में पहाड़ी भाषी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की उम्मीद के बीच नेशनल कांफ्रेंस की फूट सतह पर आ गई है। नेकां के वरिष्ठ नेता और तीन बार के विधायक कफील उर रहमान ने जम्मू कश्मीर के सभी लोगों विशेषकर पहाड़ी भाषियों को शाह की बारामुला रैली में शामिल होने का आह्वान किया है। जम्मू के बाद कश्मीर में भी लगे इस झटके से नेकां नेता सदमे में है और ज्यादातर वरिष्ठ नेता इस पर टिप्पणी से परहेज करते रहे।

पहाड़ी नेता रहमान ने सोमवार को कहा कि बिरादरी (समाज) पहले है, राजनीति बाद में। हमारे लिए अपनी ताकत दिखाने और अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त करने का यही मौका है। अगर अब चूक गए तो फिर यह बहुत मुश्किल होगा।

आज मंगलवार सुबह मां वैष्णो के दर्शन को जाएंगे : केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सोमवार देर शाम जम्मू कश्मीर के तीन दिवसीय दौरे पर जम्मू पहुंचे। वह आज मंगलवार सुबह मां वैष्णो के दर्शन को जाएंगे और उसके बाद राजौरी में रैली को संबोधित करेंगे। बुधवार पांच अक्टूबर को उत्तरी कश्मीर के बारामुला में एक जनसभा को संबोधित करने का कार्यक्रम है। नियंत्रण रेखा से सटे बारामुला जिले में शाह की यह पहली रैली होगी। उम्मीद है कि अमित शाह राजौरी या बारामुला रैली में उन्हें यह सौगात दे सकते हैं। राजौरी-पुंछ के अलावा बारामुला के साथ लगे कुपवाड़ा और बांडीपोरा में पहाड़ी भाषियों की खासी तादाद है और वह कई वर्षाें से अनुसूचित जनजाति के दर्जे के लिए संघर्षरत हैं। प्रदेश में गुज्जर बक्करवाल इसका विरोध कर रहे हैं।

कश्मीर केंद्रीय दल चुप्पी साधे हुए : अपने एक बड़े वोट बैंक के नाराज होने की आशंका के चलते नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस और अन्य कश्मीरी दल इस विषय पर चुप्पी साधे हुए हैं। पीडीपी के संस्थापकों में शामिल रहे पूर्व उपमुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग भी पहाड़ी समुदाय से ही आते हैं। वहीं महबूबा भाजपा पर गुज्जर और पहाड़ियों को आपस में लड़ाने की राजनीति करने का आरोप लगा रही हैं।

शाह की रैली में शामिल होंगे पूर्व नेकां विधायक रहमान : रहमान के अमित शाह की रैली में शामिल होने के आह्वान से नेकां को भी झटका लगा है और नेकां के भीतर अंतर्कलह तेज होने का भी संकेत दिया है। वर्ष 1996, 2002 और 2008 में लगातार तीन बार करनाह (कुपवाड़ा) विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीत चुके कफील उर रहमान ने कहा कि इस समय पार्टी की बात नहीं हो रही है, यह हमारी पूरी बिरादरी का मसला है। हम जिस हक के लिए लड़ रहे हैं, आज उसके बहुत करीब हैं। बारामुला रैली में करीब दो दर्जन बसें करनाह और उससेसटे इलाकों से पहाड़ी भाषी लोगों को लेकर जाएंगी। इससे पूर्व जम्मू संभाग के पुंछ जिले के सुरनकोट से पूर्व विधायक मुश्ताक बुखारी ने फरवरी माह में पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के दर्जे पर पार्टी नेतृत्व पर उदासीन रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए नेशनल कांफ्रेंस से किनारा कर लिया था।

क्यों अहम हैं पहाड़ी भाषी : पहाड़ी भाषी आबादी का अधिकांश हिस्सा बारामुला, कुपवाड़ा, राजौरी और पुंछ के पहाड़ी क्षेत्रों में बसा है। पहाड़ी भाषियों में हिंदू, मुस्लिम और सिख शामिल हैं। पहाड़ी भाषी समुदाय प्रदेश की कुल आबादी का करीब 10-11 प्रतिशत है और आठ सीटों पर निर्णायक भूमिका में है। नए परिसीमन में पहली बार नौ सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित की गई हैं। अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद गुज्जर-बक्करवाल को पहले ही अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जा चुका है। गुज्जरों को लगता है कि पहाड़ियों को दर्जा मिलने से उनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व कमजोर हो जाएगा। इसीलिए वह इसका विरोध कर रहे हैं और कश्मीर के कई जिलों में प्रदर्शन हुए हैं। पहाड़ी भाषी एक समय मुख्यत: कांग्रेस के वोटर माने जाते थे पर अगर दर्जा मिल जाता है तो एकमुश्त भाजपा को जा सकते हैं।

जम्मू में पहले लग चुके हैं झटके : जम्मू में नेकां को पहले ही काफी झटके लग चुके हैं। जम्मू संभाग के अध्यक्ष देवेंद्र राणा सहित आधा दर्जन बड़े नेता पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं। इसके अलावा पहाड़ी नेता भी किनारा कर चुके हैं। अब रहमान के रुख से लगता है कि नेकां को कश्मीर का गढ़ में दरार आ चुकी है। 

  • मुझे नहीं पता कि रहमान ने यह बयान कब दिया। इसलिए मैं इस पर कुछ नहीं कह सकता। हम कभी भी पहाड़ियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के खिलाफ नहीं है, लेकिन हम यह naveeनहीं चाहेंगे कि किसी एक का हिस्सा छीनकर किसी दूसरे को दिया जाए। सभी को बराबरी के आधार पर उनका हक मिलना चाहिए। -नासिर सोगामी, नेशनल कांफ्रेंस के कश्मीर संभाग प्रमुख 
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