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अब गूगल पर भी डोगरी में मिल सकेंगी जानकारियां, अनुच्छेद 370 हटने के बाद राजभाषा को मिली विशेष पहचान

अब गूगल पर भी डोगरी में जानकारियां मिल सकेंगी। अनुच्छेद 370 हटने के बाद राजभाषा बनी डोगरी को पंख लग गए हैं। इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर पहचान मिली है। युवा पीढ़ी डोगरी एलबम और फिल्मों से भाषा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए काम कर रही है।

By Jagran NewsEdited By: Achyut KumarUpdated: Tue, 20 Dec 2022 10:09 PM (IST)
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अब गूगल पर भी डोगरी में मिल सकेंगी जानकारियां

जम्मू, अशोक शर्मा। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद डोगरी को राजभाषा का दर्जा मिलते ही इसको नए पंख लग गए हैं। अब डोगरी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर उड़ान भर रही है। डोगरी भाषा में गूगल पर किसी सामग्री को सर्च कर जानकारी जुटाई जा सकती है। हालांकि, अभी डोगरी शब्दों में एकरूपता की कुछ तकनीकी बाधा जरूरी आ रही है, लेकिन इसे दूर करने की दिशा में तेजी से काम चल रहा है। पूरी उम्मीद है कि जल्द ही डोगरी की सामग्री आसानी से गूगल पर उपलब्ध हो सकेगी।

डोगरी भाषा को 2003 में मिली मान्यता

डोगरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हुए 19 वर्ष हो गए हैं। 21 दिसंबर, 2003 को डोगरी को मान्यता मिली थी। अनुच्छेद 370 हटने के बाद 23 सितंबर, 2020 को इसे राजभाषा का दर्जा भी मिला गया। इसके बाद डोगरी लगातार शिखर की ओर बढ़ रही है।

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गुमनामी की अंधेरी से बाहर निकली डोगरी

गुमनामी की अंधेरी कोटरी से निकल कर डोगरी इंटरनेट मीडिया, गूगल और दूसरे मंचों पर छा रही है। स्कूल-कालेजों में डोगरी पढ़ने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। युवा पीढ़ी में भी डोगरी तेजी से लोकप्रिय हो रही है। साहित्य ही नहीं, अब डोगरी एलबम और फिल्में भी बन रही हैं।

युवाओं में डोगरी को लेकर दिखी ललक

पंजाबी की तरह डोगरी की जन-जन तक पहुंच में समय जरूर लगेगा, लेकिन युवाओं में इस भाषा की प्रति जो ललक दिख रही है, उससे यह असंभव नहीं है। फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्वीटर पर डोगरी में विचारों का काफी आदान-प्रदान इन दिनों हो रहा है। डोगरी में शार्ट फिल्म बन रही हैं। डोगरी स्टिकर, मुहावरे और कहावतें आदि भी इंटरनेट मीडिया के माध्यम से लोकप्रिय हो रहे हैं।

डोगरी का बढ़ा दायरा

आश्चर्य की बात यह है कि कोरोना ने शारीरिक दूरियां तो बढ़ाई, लेकिन डोगरी को इसका काफी फायदा मिला। डोगरी संस्था और दूसरे कई संगठनों ने आनलाइन गोष्ठियां करवानी शुरू कीं, जिससे दुनियाभर से दर्शक जुड़े और डोगरी का दायरा बढ़ा।

डुग्गर प्रदेश में शब्दों की एकरूपता बन रही बाधा

डोगरी संस्था के अध्यक्ष प्रो. ललित मगोत्रा ने कहा कि डुग्गर प्रदेश ( जम्मू-कश्मीर के साथ हिमाचल प्रदेश का वह हिस्सा, जहां डोगरी भाषा बोली जाती है) के अलग-अलग क्षेत्रों में डोगरी शब्दों की एकरूपता नहीं है। इससे गूगल ट्रांसलेशन में आशातीत सफलता अभी नहीं मिली है, लेकिन इस पर काम करने से डोगरी को काफी लाभ होगा। यू-ट्यूब आदि पर डोगरी में काफी काम हो रहा है। युवा लगातार इंटरनेट मीडिया पर डोगरी में काम कर रहे हैं।

10 गुना बढ़ा डोगरी प्रकाशन

मगोत्रा ने कहा कि डोगरी को मान्यता मिलने के बाद डोगरी प्रकाशन 10 गुना बढ़ा है। स्कूलों और कालेजों में भी डोगरी पढ़ने वालों की संख्या बढ़ी है। जिस तरह तीन वर्ष पहले हायर एजुकेशन विभाग में एक साथ 49 लेक्चरार नियुक्त किए गए, उससे डोगरी को काफी प्रोत्साहन मिला, लेकिन अभी हायर सेकेंडरी स्कूलों में अध्यापकों की कमी है।

सरकारी संस्थानों में डोगरी को प्रोत्साहित करने की जरूरत

जम्मू यूनिवर्सिटी के डोगरी विभागाध्यक्ष रहीं प्रो. वीना गुप्ता ने कहा कि डोगरी का लगातार उत्थान हो रहा है। इसके लिए केंद्र सरकार के काफी प्रोजेक्ट चल रहे हैं। डोगरी को लेकर निराश होने की कोई बात नहीं है, मगर जम्मू-कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी का कार्य ठप कर सरकार भाषा के विकास की यात्रा में रुकावट बनी हुई है। सरकारी संस्थानों में डोगरी में जिस गति से कार्य होना चाहिए, वह नहीं हो रहा। शीराजा पत्रिका का प्रकाशन तक नियमित नहीं हो पा रहा।

योजनाबद्ध तरीके से हो काम

डोगरी के प्रोत्साहन के लिए योजनाबद्ध तरीके से कार्य होना चाहिए। सरकारी उदासीनता से डोगरी को जो नुकसान हो रहा, उसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। हालांकि, डोगरी के साफ्टवेयर विकसित हो रहे हैं। उससे लाभ होगा।

बढ़ी डोगरी किताबों की खरीदारी

डोगरी पुस्तकों की बिक्री में बढ़ोतरी हुई है। खासकर कालेजों में डोगरी विषय शुरू होने के बाद लगभग सभी कालेजों में डोगरी किताबों का खजाना बढ़ा है।

डोगरी पुस्तकों की खरीद पर नीति बनाने की जरूरत

प्रो. ललित मगोत्रा ने बताया कि जम्मू-कश्मीर कला संस्कृति, साहित्य अकादमी, डोगरी संस्था के प्रकाशनों का खरीदार बढ़ा है। डोगरी को बढ़ावा देने के लिए सरकार को डोगरी पुस्तकों की खरीद को लेकर एक नीति बनाने की जरूरत है ताकि डोगरी लेखकों की प्रकाशन करवाने की हिम्मत बढ़े।

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