Baba Amarnath Yatra 2020: 25 जुलाई को दशनामी अखड़ा से पवित्र गुफा के लिए रवाना होगी पवित्र छड़ी
भगवान अमरेश्वर की पवित्र गुफा जिसे श्री अमरनाथ और बाबा बर्फानी की गुफा भी कहते हैं में भगवान शिव और मां पार्वती हिमलिंग स्वरुप में विराजमान होते हैं।
By Rahul SharmaEdited By: Updated: Mon, 15 Jun 2020 04:12 PM (IST)
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। वार्षिक तीर्थयात्रा को शुरू करने को लेकर बेशक केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है। लेकिन पौराणिक मान्यताओं का निर्वाह करते हुए पवित्र गुफा में वार्षिक पूजन के लिए पवित्र छड़ी 25 जुलाई को दशनामी अखाड़ा से रवाना होगी। इससे पूर्व पांच जुलाई को दशनामी अखाड़ा के महंत और पवित्र छड़ी मुबारक के संरक्षक महंत दीपेंद्र गिरि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पहलगाम में लिद्दर दरिया किनारे स्थित शिव मंदिर में भूमि पूजन और ध्वजारोहण करेंगे। इसके साथ ही पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक श्री अमरनाथ की वार्षिक तीर्थयात्रा का प्रारंभ होगा।
समुद्र तल से 3888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित भगवान अमरेश्वर की पवित्र गुफा जिसे श्री अमरनाथ और बाबा बर्फानी भी कहते हैं, में भगवान शिव और मां पार्वती हिमलिंग स्वरूप में विराजमान होते हैं। रक्षाबंधन के दिन बाबा बर्फानी की मुख्य पूजा का विधान है। उसके साथ ही पवित्र गुफा की वार्षिक तीर्थयात्रा को संपन्न माना जाता है। श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड ही पवित्र गुफा की वार्षिक यात्रा का प्रदेश प्रशासन के सहयोग के साथ संचालन कर रहा है। इस साल यह यात्रा 23 जून को शुरू की जानी थी, लेकिन कोविड-19 के संक्रमण से पैदा हालात के मद्देनजर अभी तक इस पर असंमजस बना हुआ है। कहा जा रहा है कि यात्रा को जुलाई माह के अंतिम पखवाड़े में ही शुरू किया जाएगा।
दशनामी अखाड़ा के महंत और पवित्र छड़ी मुबारक के संरक्षक महंत दीपेंद्र गिरि ने आज यहां पत्रकारों के साथ बातचीत में कहा कि कोरोनो संक्रमण के खतरे के बीच पवित्र गुफा के लिए आम श्रद्धालुओं को यात्रा की अनुमति देना, शारीरिक दूरी के सिद्धांत को लागू करना बहुत ही मुश्किल और चुनौतिपूर्ण है। श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड अगर यात्रा की अवधि को दो-तीन सप्ताह तक भी अगर सीमित रखता है तो भी यह बहुत ही मुश्किल है।
तीर्थयात्रा से जुड़े सभी धार्मिक अनुष्ठानों को किसी भी परिस्थिति में पूरा किए जाने की बात करते हुए महंत ने कहा कि हम इनका पूरा पालन करेंगे। पौराणिक मान्यताओं और जो इस तीर्थयात्रा का विधान है, उसके अनुरुप हम अगले माह 5 जुलाई को आषाढ़ पूर्णिमा जिसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं, के दिन पहलगाम में लिद्दर किनारे स्थित शिव मंदिर में भूमि पूजन करेंगे। नवग्रह पूजन और ध्वजारोहण होगा। व्यास पूर्णिमा के दिन से ही सही मायनों में तीर्थ यात्रा का विधान है। पहले व्यास पूर्णिमा के दिन से ही श्रद्धालुओं व संत महात्माओं को पवित्र गुफा की तरफ जाने की अाज्ञा होती थी।
20 जुलाई को शंकराचार्य पहुंचेंगी छड़ी: महंत दीपेंद्र गिरि ने बताया 5 जुलाई को पूजन के उपरांत पवित्र छड़ी मुबारक वापस दशनामी अखाड़ा लौट आएगी। इसके बाद 20 जुलाई को छड़ी मुबारक गोपाद्री पर्वत पर स्थित भगवान शंकर की आराधना के लिए शंकराचार्य मंदिर जाएगी। इसके बाद 21 जुलाई को श्रीनगर की अधीष्ठ देवी मां शारिका की पूजा के लिए पवित्र छड़ी मुबारक हारि पर्वत जाएगी। दशनामी अखाड़ा में स्थित अमरेश्वर मंदिर में 23 जुलाई को छड़ी स्थापना और ध्वजारोहण होगा। इसके बाद 25 जुलाई को दशनामी अखाड़ा से पवित्र छड़ी मुबारक पवित्र गुफा के लिए रवाना होगी। इसमें देश-विदेश से आए संत महात्मा शाामिल रहेंगे। रक्षाबंधन के दिन तड़के छड़ी मुबारक पवित्र गुफा में प्रवेश करेगी। बाबा बर्फानी के मुख्य दर्शन के उपरांत विशेष पूजा होगा।
इस समय यात्रा शुरू करना चुनौतिपूर्ण रहेगा: तीर्थ यात्रा की अनुमति को लेकर पैदा असंमजस सबंधी सवाल पर महंत ने कहा कि हमें मौजूदा परिस्थितियों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए। कोरोना के कारण जो हालात पैदा हुए हैं, उसे देखते हुए मुझे नहीं लगता कि यात्रा ज्यादा दिन रहेगी या फिर श्रद्धालुओं की संख्या पहले की तरह ज्यादा होगी। शारीरिक दूरी के सिद्धांत काे इस यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं के लिए लागू करना बहुत मुश्किल है। इसके अलावा लंगर व्यवस्था का आयोजन भी चुनौतिपूर्ण रहेगा। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए जो स्थान निर्धारित हैं, वे सभी इस समय कोविड-19 के मद्देजनर क्वारटांइन सेंटर बनाए जा चुके हैं।
इस समय परिस्थितियां अत्यंत विकट हैं: मुझे पूरा यकीन है कि इस समय जम्मू-कश्मीर प्रदेश प्रशासन और श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड सभी संबधित पक्षों के साथ लगातार संवाद-समन्वय को बनाए रखते हुए तीर्थयात्रा के संचालन के लिए एक व्यावहारिक व्यवस्था काे तैयार करेगा। इस समय परिस्थितियां अत्यंत विकट हैं। इनके अनुरूप ही प्रबंध करने जरूरी हैं। हमने उपराज्यपाल जीसी मुर्मू को भी अपने स्तर पर एक पत्र लिखकर सदियों पुरानी परंपरा को बनाए रखने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया है। यह पूछे जाने पर कि अगर छड़ी मुबारक को भी अनुमति नहीं मिलती है तो वह क्या करेंगे, इस पर महंत दीपेंद्र गिरि ने कहा कि हम कुछ चुनिंदा संत महात्माओं के साथ पवित्र गुफा में छड़ी मुबारक को लेकर पूजा के लिए जाएंगे। ऐसा पहले भी हो चुका है। मुझे यकीन है इसके लिए प्रशासन मना नहीं करेगा।
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