आतंकी हमलों और उनमें सुरक्षाबलों का आकलन किया जाए तो 40 प्रतिशत मामले इन्हीं दो जिलों से ही संबधित हैं, जो यह बता देती हैं कि नियंत्रण रेखा के साथ सटे राजौरी-पुंछ अब सिर्फ आतंकियों के लिए कश्मीर तक पहुंचने का एक ट्राजिट रूट या ट्रांजिट कैंप नहीं रहे हैं। बल्कि एक बार फिर उनका मजबूत किला बन चुके हैं।
मौजूदा समय में 30 आतंकी हैं सक्रिय
राजौरी-पुंछ में इस समय 30 के करीब विदेशी आतंकी सक्रिय बताए जाते हैं। इनके साथ स्थानीय सक्रिय स्थानीय आतंकियों का किसी भी सुरक्षा एजेंसी के पास कोई पक्का ब्यौरा नहीं है। इन दोनों जिलों में आतंकियों के ओवरग्राउंड वर्करों को भी चिह्नित करना सुरक्षाबलों के लिए भारी साबित हो रहा है।इस वर्ष जिला राजौरी में 10 आतंकी मारे गए हैं और 14 सुरक्षाकर्मी बलिदानी हुए हैं जबकि पुंछ में 15 आतंकी मारे गए हैं और 10 सुरक्षाकर्मी बलिदानी हुए हैं। तीन आतंकी जिला राजौरी के साथ सटे रियासी में मारे गए हैं।
1994 के बाद बना आतंकियों का गढ़
आतंकियों नियंत्रण रेखा के साथ सटे जिला राजौरी और पुंछ के उत्तर में पीर पंजाल है। पुंछ की सीमांए कश्मीर घाटी के उड़ी, गुलमर्ग, शोपियां के साथ लगती हैं, जबकि राजोरी की सीमाएं शोपियां, कुलगाम के अलावा जम्मू प्रांत के रियासी और रामबन के साथ लगती है। दोनों जिले जम्मू प्रांत के विभिन्न इलाकों के साथ सड़क संपर्क भी है और कई जगह राष्ट्रीय राजमार्ग एलओसी से ज्यादा दूर नहीं है।
वर्ष 1989 में जब जम्मू कश्मीर में आतंकी हिंसा शुरु हुई, तो शुरूआत के कुछ वर्षों तक इन दोनों जिलों में आतंकी हिंसा की छिट पुट घटनाएं ही होती रही, लेकिन 1994 के बाद यह दोनों जिले आतंकियों का गढ़ बन गए। करगिल युद्ध से पहले हरकतुल जिहादे इस्लामी हुजी, हिजबुल मुजाहिदीन पीर पंजाल रेजिमेंट, हरकुतल अंसार व अल-बदर जैसे आतंकी संगठनों के स्थानीय और विदेशी आतंकी यहां सक्रिय रहे।
कौसर नामक आतंकी की काटी थी गर्दन
करगिल युद्ध के दौरान इन दोनों जिलों में लश्कर-ए-तैयबा की गतिविधियां बढ़ी। सुरक्षाबलों का मुखबिर होने के संदेह में अगर किसी इलाके में आतंकियों ने ग्रामीणों की गर्दनें काटी, तो वह राजौरी-पुंछ में ही काटी गई। पुंछ में कौसर नामक आतंकी इस मामले में सबसे ज्यादा कुख्यात रहा। बाद में उसके ही साथियों ने उसकी गर्दन काटकर धुंधक पुल पर टांगी थी।
वर्ष 2003 में सुरक्षाबलों ने राजौरी-पुंछ में आंकियों के खिलाफ ऑप्रेशन सर्पविनाश चलाया था, जो सुरनकोट की हिलकाका की पहाड़ियों चला था। बाद में इसका दायरा बढ़ाते हुए इसे पीरंपजाल की पहाड़ियों तक, जिला रियासी के अंतर्गत आने वाले गुलाबगढ़ माहौर और नियंत्रण रेखा के साथ सटे इलाकों तक ले जाया गया था। इसके बाद इन दोनों जिलों में आतंकी गतिविधियां धीरे धीरे कम हो गई।
साल 2010 में पकड़े गए आतंकी अब्दुल्ला इंकलाबी
वर्ष 2010 में पाकिस्तानी आतंकी अब्दुल्ला इंकलाबी के पकड़े जाने के कोई नामी आतंकी इस क्षेत्र में नहीं रहा और फिर यह लगभग शांत हो गया। इन दोनों जिलों में आतंकियों की भर्ती भी लगभग समाप्त हो गई और आतंकियों की गतिविधियां सिर्फ घुसपैठ तक सीमित हो गई।
आतंकी घुसपैठ करते और सुरक्षाबलों से बचते बचाते कश्मीर घाटी की तरफ निकल जाते या फिर रियासी-रामबन के ऊपरी हिस्सों के रास्ते डोडा की तरफ चले जाते। आतंकियों व उनके हैंडलरों ने इन दोनों जिलों को अपने ट्रांजिट रूट की तरह या फिर कश्मीर सुरक्षाबलों का दबाव बढ़ने पर बचने के ठिकाने की तरह इस्तेमाल करना शुरु कर दिया।
2020 में अचानक बढ़ीं आतंकी गतिविधियां
जम्मू कश्मीर मामलों के जानकार डॉ अजय च्रंगु ने कहा कि वर्ष 2020 से ही राजौरी पुंछ में आतंकी गतिविधियां अचानक बढ़ी हैं। पहले यह कहा जाता था कि कश्मीर घाटी में ऑप्रेशन ऑल आउट से बचने के लिए आतंकी इस तरफ आ रहे हैं, लेकिन इन जिलों में मारे गए आतंकियों को विदेशी बताया जाता है।
वर्ष 2014 से 2019 तक दक्षिण कश्मीर अगर आतंकी हिंसा का केंद्र था, तो वर्ष 2020 के बाद से राजौरी पुंछ आतंकी हिंसा का केंद्र बना हुआ है। उन्होंने कहा कि राजौरी पुंछ की भौगोलिक व सामाजिक परिस्थितियां आतंकियों के लिए पूरी तरह लाभजनक हैं। यह दोनों जिले सांप्रदायिक रूप से अत्यंत संवेदनशील हैं।
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दोनों जिलों में हैं घने जंगल, नाले व पहाड़
यहां इस्लाम की जिहादी कट्टरवादी विचारधारा का प्रभाव बहुत ज्यादा है। इन दोनों जिलों में घना जंगल, नाले और पहाड़ जो नियंत्रण रेखा तक फैले हुए हैं। आतंकियों को नियंत्रण रेखा से लेकर कश्मीर घाटी तक या प्रदेश के किसी अन्य हिस्से में दाखिल होने के लिए एक सुरक्षित रास्ता प्रदान करते हैं।इसके अलावा यह दोनों जिले एक लंबे समय तक सुरक्षाबलों के राडार से दूर रहे हैं और इसका फायदा आतंकियों और उनके ओवरग्राउंड वर्करों ने उठाते हुए यहां अपना एक मजबूत पारिस्थितिक तंत्र तैयार किया है। जो उन्हें पूरी मदद करता है। इन दोनों जिलों के पहाड़ों में आतंकियों के पक्के ठिकानों की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
जम्मू कश्मीर पुलिस के सेवानिवृत्त महानिरीक्षक ने ये बताया
आतंकरोधी अभियानों में मुख्य भूमिका निभा चुके जम्मू कश्मीर पुलिस के सेवानिवृत्त महानिरीक्षक अशकूर वानी के अनुसार, इन दोनों जिलों में सुरक्षाबलों के खुफिया नेटवर्क का अभाव नजर आता है। इन दोनों जिलों के कई लोग इस समय गुलाम जम्मू कश्मीर में हैं और आतंकियों के पुराने गाइड हैं, उनका अपना एक नेटवर्क है।
जो इस समय आतंकियों के लिए मदद कर रहा है। अगर आप इन दोनों जिलों में सेना पर हुए हमलों का आकलन करेंगे तो पाएंगे कि हमलावर आतंकियों के पास पूरी जानकारी थी। हमलावर आतंकी कभी नहीं पकड़े गए और अगर किसी जगह मारे गए तो वह भी बाय चांस एनकाउंटर में।
बिना स्थानीय नेटवर्क के आतंकी और वह भी विदेशी लंबे समय तक जिंदा नहीं रह सकता, लेकिन यहां यह हो रहा हे। इसका मतलब यही है कि आतंकी यहां पांव पसार चुके हैं और उनके खिलाफ एक सुनियोजित और प्रभावी अभियारन चलाए जाने की जरुरत है।
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