Sheetal Devi: पैरों से तीरंदाजी कर शीतल ने खुद लिखी अपनी तकदीर, 17 साल में हासिल किया 'अर्जुन अवॉर्ड'
जम्मू-कश्मीर की शीतल देवी पैरालिंपिक की विश्व की नंबर दो तीरंदाज खिलाड़ी हैं। जन्म से ही हाथ न होने के बावजूद उन्होंने अपने पैरों से तीरंदाजी में महारथ हासिल की है। हाल ही में उन्होंने पेरिस पैरालिंपिक्स खेलों में भाग लेकर तीरंदाजी स्पर्धा के मिश्रित टीम इवेंट में कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है। शीतल देवी की इस उपलब्धि से पूरा देश गौरवान्वित है।
विकास अबरोल/राकेश शर्मा, जम्मू/कटड़ा। कहते हैं कि भाग्य की रेखाएं हाथों में होती हैं, लेकिन अगर किसी खिलाड़ी के जन्म से ही दोनों हाथ न हों और वह अपने पांव से तरकश से तीर निकालकर सीधा लक्ष्य पर निशाना साधकर भारत देश को समूचे विश्वभर में गौरवान्वित करे तो उसे आप क्या कहेंगे।
हम आज बात कर रहे हैं, जम्मू-कश्मीर की पैरालिंपिक की विश्व की नंबर दो तीरंदाज खिलाड़ी शीतल देवी की जम्मू संभाग के किश्तवाड़ जिले के लोईधार गांव की रहने वाली 19 वर्षीय शीतल देवी ने हाल ही में पेरिस पैरालिंपिक्स खेलों में भाग लेकर तीरंदाजी स्पर्धा के मिश्रित टीम इवेंट में भाग लेकर कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया।
पैरालिंपिक्स खेलों में जहां सभी तीरंदाजों ने अपने हाथों से कमान पर तीर चढ़ाकर लक्ष्य की ओर निशाना साधा, तो शीतल देवी ने यह कारनामा अपने पैरों से कर दिखाया। उन्होंने अपने पैरों से कमान पर तीर चढ़ाकर और फिर लक्ष्य की ओर निशाना साधकर भारत देश के लिए कांस्य पदक जीतकर 150 करोड़ भारत वासियों के साथ समूचे विश्व के लोगों का दिल जीत लिया है।
यही वजह है कि स्वयं देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस बहादुर बेटी से भेंट की और शीतल से जर्सी पर आटोग्राफ लेकर उसे अपने पास सहेज लिया। शीतल ने जर्सी पर अपने पांव से लिखकर प्रधानमंत्री को आटोग्राफ वाली जर्सी भेंट की। शीतल बड़ी आसानी से अपने पांव से ही लिख लेती हैं।
जीवन में हर चुनौती का डटकर सामना किया
पिता मान सिंह और मां शक्ति उस यादगार पल को स्मरण करते हुए आज भी भावभिवोर हो जाते हैं। उनका कहना है कि शीतल के जन्म से ही हाथ नहीं हैं, लेकिन भगवान ने उसे ऐसी शक्ति प्रदान की है, जिसके दम पर उसने आज तक जीवन में हर चुनौती का डटकर सामना किया।शीतल को तीरंदाजी का शौक पैदा हुआ और उसने वर्ष 2019 में आयोजित तीरंदाजी प्रतियोगिता में भाग लेकर सभी को अपनी प्रतिभा का कायल बना दिया। इस दौरान वहां मौजूद तीरंदाजी के कोच अभिलाष चौधरी और कुलदीप वाधवन की उस पर नजर पड़ी।
इन दोनों ने शीतल के अदम्य साहस को देखते हुए उसे प्रशिक्षण देने का फैसला किया। देखते ही देखते दो वर्ष के भीतर शीतल देवी ने पैरालिंपिक्स खेलों में भाग लेकर भारत देश के लिए पदक जीता।
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