जम्मू कश्मीर में 'अपनों' के सहारे राजनीतिक लड़ाई के मूड में सिख समुदाय, कहा- हमारी उपेक्षा हुई
जम्मू कश्मीर में राजनीतिक दल निकट भविष्य में चुनाव की उम्मीद में लगातार विभिन्न समुदायों और वर्गों के बीच अपनी स्थिति मजबूत बनाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन सिख समुदाय इस बार किसी दल के बजाए अपने समुदाय के निर्दलीय उम्मीदवारों के सहारे अपनी राजनीतिक लड़ाई लड़ने के मूड में है। सिख समुदाय का कहना है कि आजादी के बाद से ही उन्हें राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक कल्याण का झुनझुना थमाया है।
By Edited By: Nidhi VinodiyaUpdated: Wed, 27 Sep 2023 09:21 PM (IST)
जम्मू, नवीन नवाज। जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) में विभिन्न राजनीतिक दल निकट भविष्य में चुनाव की उम्मीद में लगातार विभिन्न समुदायों और वर्गों के बीच अपनी स्थिति मजबूत बनाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन सिख समुदाय इस बार किसी दल के बजाए अपने समुदाय के निर्दलीय उम्मीदवारों के सहारे अपनी राजनीतिक लड़ाई लड़ने के मूड में है। सिख समुदाय का कहना है कि आजादी के बाद से ही विभिन्न राजनीतिक दलों ने उन्हें राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक कल्याण का झुनझुना थमाया है।
धमकियों के बावजूद कश्मीर से पलायन नहीं किया
आतंकियों की धमकियों के बावजूद उन्होंने कश्मीर से पलायन नहीं किया और फिर भी उनकी हर स्तर पर उपेक्षा हुई है, क्योंकि वह हमेशा दूसरों की राजनीतिक बैसाखी के सहारे अपने मुद्दों के समाधान की उम्मीद में थे।जम्मू कश्मीर में सिख समुदाय की आबादी करीब 2.60 लाख (लगभग दो प्रतिशत) है, जबकि सिख समुदाय का कहना है कि यह आंकड़ा 2011 की जनगणना के मुताबिक है, जो सही नहीं है। उनकी आबादी छह लाख के आसपास है और इनमें से साढ़े चार लाख जम्मू संभाग में और डेढ़ लाख के करीब कश्मीर में हैं।
जम्मू कश्मीर में 90 विधानसभा सीटें हैं
घाटी में तीन विधानसभा सीटों पुलवामा, अमीराकदल-श्रीनगर और बारामुला में सिख मतदाता किसी भी प्रत्याशी की हार जीत तय कर सकते हैं। इसके अलावा कुलगाम, अनंतनाग, शोपियां, बड़गाम और कुपवाड़ा में भी लगभग सात सीटों पर सिख समुदाय का अच्छा वोट है। जम्मू संभाग में कठुआ से लेकर पुंछ तक 10 सीटों पर सिख समुदाय का अच्छा खासा वोट बैंक है। जम्मू कश्मीर में 90 विधानसभा सीटें हैं।हमने सभी दलों का साथ दिया, लेकिन सबने वादा तोड़ा
आल पार्टी सिख कोआर्डिनेशनल कमेटी के चेयरमैन सरदार जगमोहन ¨सह रैना ने कहा कि हमारे समुदाय ने नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस, पीडीपी और भाजपा का समय-समय पर साथ दिया है। हर दल ने हमें हमारी समस्याओं के समाधान का यकीन दिलाया, लेकिन किसी ने वादा पूरा नहीं किया। इसलिए सिख समुदाय के विभिन्न सामाजिक, बुद्धिजीवी संगठनों में यह विचार मजबूत हुआ है कि हमें दूसरों पर निर्भर रहने के बजाय अपनी लड़ाई खुद लड़नी चाहिए। इसलिए समुदाय के पढ़े लिखे और योग्य लोगों को बतौर निर्दलीय चुनाव में उतारने पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है।
हमें दो-तीन सीटें आरक्षित चाहिए
समाजसेवी इंदूमीत सिंह ने कहा कि यहां सिखों का नरसंहार हुआ, लेकिन हमने कश्मीर नहीं छोड़ा। अल्पसंख्यक होने के बावजूद हमें अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं है। सिख समुदाय की सरकारी नौकरियों में भागीदारी भी नाममात्र है। परिसीमन आयोग के समक्ष जब हम पेश हुए थे तो हमें यकीन दिलाया गया कि हमारे लिए भी कोई क्षेत्र आरक्षित होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हमें नामांकन के आधार पर नहीं, बल्कि कोई दो तीन सीटें आरक्षित चाहिए।जहां सिख समुदाय प्रभावी है, वहां से उतारेंगे उम्मीदवार
गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी श्रीनगर के पूर्व महासचिव सरदार नवतेज ¨सह ने कहा कि हमें यहां अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा नहीं है, यहां अल्पसंख्यकों के लिए रोजगार पैकेज है, लेकिन वह हमारे लिए नहीं है। आजादी के बाद से जो हमारे साथ राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक पक्षपात हो रहा था, वह जारी रहा। हम यहां गुरुद्वारा एंडोमेंट एक्ट लागू करने की मांग करते हैं, पंजाबी भाषा को प्रोत्साहित करने की बात करते हैं, सिखों को विधानसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व की मांग करते हैं। सिख समुदाय का तभी भला होगा जब हम यहां राजनीतिक रूप से मजबूत होंगे। इसलिए हम प्रयास कर रहे हैं कि उन सीटों पर जहां सिख समुदाय पूरी तरह प्रभावी है, सर्वसम्मति से एक सिख उम्मीदवार को ही मैदान में उतारा जाए।
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अल्पसंख्यक दर्जा, राजनीतिक आरक्षण, पंजाबी भाषा को स्कूलों में लागू करना, पंजाबी भाषा को प्रोत्साहित करनासरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व और कम से कम तीन सीटों को आरक्षित करनाइन विधानसभा सीटों पर प्रभाव :- कश्मीर
- पुलवामा
- अमीराकदल-श्रीनगर
- बारामुला