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World Bicycle Day 2023: साइकिलिंग में भी आगे हैं छोरियां, 2018 से हरियाणा को दिला चुकी हैं 14 नेशनल मेडल

World Bicycle Day साइकिलिंग में भी छोरों को छोरियों पीछे छोड़ रही हैं। प्रति वर्ष तीन जून को विश्व साइकिल दिवस मनाया जाता है। 2018 से शुरू हुए इस दिवस का उद्​देश्य पर्यावरण को बचाने के साथ सेहत बनाने से है।

By Jagran NewsEdited By: Himani SharmaUpdated: Fri, 02 Jun 2023 02:18 PM (IST)
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साइकिलिंग में भी आगे हैं छोरियां, 2018 से हरियाणा को दिला चुकी हैं 14 नेशनल मेडल
करनाल, कपिल पूनिया: प्रति वर्ष तीन जून को विश्व साइकिल दिवस मनाया जाता है। 2018 से शुरू हुए इस दिवस का उद्​देश्य पर्यावरण को बचाने के साथ सेहत बनाने से है। हालांकि सेहत और पर्यावरण बचाने के साथ साइकिलिंग में करियर की भी संभावना है। इस क्षेत्र में भी लड़कियां आगे निकल रही हैं। करनाल में वर्ष 2018 के बाद से अब तक करनाल की लड़कियां साइकिलिंग में प्रदेश को 14 नेशनल मेडल दिला चुकी हैं। जबकि लड़कों ने केवल पांच नेशनल मेडल ही जीते हैं।

40 खिलाड़ी कर रहे हैं साइकिलिंग का अभ्‍यास

करनाल में कुल 40 खिलाड़ी वर्तमान में साइकिलिंग का अभ्यास कर रहे हैं, जिनमें 28 लड़कियां हैं। साइक्लिंग में एशियन चैंपियन भी करनाल का ही खिलाड़ी है। हालांकि पूरे हरियाणा में अब तक साइकिलिंग के लिए वेलोड्रम ट्रैक नहीं है। भौतिक संसाधनों के सुख में आज लोग पुरानी सवारी साइकिल को भूल चुके हैं, जो बिना किसी प्रदूषण के सेहत बनाने में भी सहायक रही।

आज साइकिल केवल गरीबों की सवारी बनकर रह गई है। जिस कारण संपन्न लोग मोटापा कम करने के लिए अन्य स्त्रोत का सहारा ले रहे हैं। साइकिल केवल पर्यावरण बचाने और सेहत बनाने तक ही सिमित नहीं है। अब यह करियर भी बन चुकी है।

इसका उदाहरण करनाल के मंजीत सिंह हैं। मंजीत सिंह साइकिलिंग में एशियन चैंपियन बनकर आर्मी में तैनात हैं। हालांकि साइक्लिंग एक महंगा खेल है और इसके लिए अभी तक पूरे हरियाणा में वेलोड्रम ट्रैक भी उपलब्ध नहीं है। जिस कारण खिलाड़ियों को जोखिम के साथ सड़कों पर अभ्यास करना पड़ रहा है।

हरियाणा के युवाओं की रगों में खून के साथ खेल दौड़ता है। कुश्ती, कब्बडी के साथ हरियाणा के युवा साइक्लिंग में भी पीछे नहीं हैं। रोड रेस में हरियाणा देश में दूसरे स्थान पर है। जबकि ट्रैक न होने के कारण ट्रैक रेस में प्रदेश के युवा पिछड़ रहे हैं।

छोरी जीत रही छोरों से रेस

साइकिलिंग को लड़कों का खेल माना जाता है, क्योंकि इसमें स्टेमिना की जरूरत होती है। लेकिन करनाल की छोरी साइकिलिंग में छोरों पर भारी पड़ रही हैं। साइक्लिंग कोच ओंकार सिंह ने बताया कि 2018 के बाद सरकार की ओर से सात साइकिल और अन्य उपकरण प्रदान किए गए।

जिसके बाद लड़कियों ने अब तक नेशनल में 14 मेडल जीते हैं। जबकि लड़कों ने पांच मेडल हासिल किए। कोच ने बताया कि उनके पास कुल 40 खिलाड़ी अभ्यास करते हैं। जिनमें 28 लड़कियां हैं। हाल ही में करनाल को साइकिलिंग की आवासीय खेल अकादमी मिली है।

ताकत के साथ मानसिक मजबूती का है खेल

साइक्लिंग में 100 किलोमीटर से लेकर 250 किलोमीटर तक की रेस होती है। जिसके लिए इससे कई गुना किलोमीटर का अभ्यास करना होता है। इसमें ताकत के साथ मानसिक मजबूती बहुत जरूरी है। खिलाड़ी अक्सर लंबी दूरी देखकर ऊब जाते हैं। कोच ओंकार ने बताया कि इस खेल में लड़कियों ने अधिक ताकत और मानसिक मजबूती का प्रदर्शन किया है। जिस कारण वह बेहतर प्रदर्शन कर पा रही हैं।

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