जम्मू-कश्मीर में सीमा से सटे गांवों में चुनावी चर्चाएं शुरू, क्या है यहां के चुनावी मुद्दे? जनता ने बताया किसे देंगे समर्थन
Jammu Kashmir Lok Sabha News लोकसभा चुनाव की तारीखों के एलान के बाद जम्मू-कश्मीर में तैयारियां तेज हो गई हैं। पार्टियां प्रचार-प्रसार के लिए पूरी तरह तैयार हैं। वहीं सीमावर्ती गांवों में भी चर्चाएं तेज हैं। सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों के क्या मुद्दे होंगे और वह किस पार्टी को समर्थन देंगे इसे लेकर कुछ लोगों का कहना है कि लोकसभा चुनाव में हम पहले की तरह ही मतदान करेंगे।
60 सालों से सरकारी व कस्टोडियन भूमि पर करते आ रहे हैं खेती
सीमावर्ती क्षेत्रों में हुआ विकास
लोगों का कहना है कि सीमावर्ती क्षेत्र में पिछले वर्षों से विकास तो हुआ है, सड़कें व बंकर भी बन रहे हैं, लेकिन 80 फीसद किसानों के पास मालिकाना भूमि नहीं है। ऐसे में लोगों का भविष्य अंधकारमय में हो गया है। प्रति परिवार को छह एकड़ भूमि का मालिकाना हक देने के की मांग को लेकर वह संघर्ष करते आ रहे हैं जो राजनीतिक किसानों के कब्जे वाली भूमि का मालिकाना हक दिलाने का भरोसा देगी उसी को अपना समर्थन देंगे और यही उनका मुद्दा होगा।सीमावर्ती क्षेत्र में जंगल हो चुकी सरकारी भूमि को 1950 से आबाद करते आ रहे हैं। इस दौरान उन्हें कई बार पलायन भी करना पड़ा। गोलीबारी का सामना भी करना पड़ा। पूर्व की सरकारों ने रोशनी एक्ट के तहत मालिकाना हक देने की प्रक्रिया शुरू की थी। अब सरकार भूमि से बेदखल कर दिया। कुछ मालकियत की भूमि डिफेंस और तारबंदी के आगे चली गई है। अन्य कोई रोजगार भी नहीं है। सरकार से प्रति परिवार 48 कनाल भूमि का मालिकाना हक देने की मांग को लेकर संघर्ष करते आ रहे हैं जो राजनीतिक पार्टी हमें सरकारी भूमि का मालिकाना हक दिलाने का भरोसा दिलाएगी उसी को समर्थन करेंगे।
- भारत भूषण, पूर्व सरपंच, बोबिया।
लोकसभा चुनाव को लेकर काफी उत्साह है। आज तक पाकिस्तान भी लोगों को मतदान करने से नहीं रोक पाया। मतदान तो इस बार भी करेंगे, लेकिन किसी भी सरकार ने उनकी भूमि संबंधी समस्याओं का समाधान नहीं किया। सीमा पर किसान वर्षों से सरकारी भूमि पर खेती कर गुजर बसर करते आ रहे थे। अब उनकी गिरदावरी ही खारिज कर दी गई। अगर भूमि नहीं रहेगी तो किसान सीमा पर रहकर क्या करेंगे। किसी ने भी उनकी समस्याओं पर विचार नहीं किया, जबकि कई वर्षों से सरकारी भूमि का मालिकाना हक पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं जो राजनीतिक पार्टी उन्हें मालिकाना हक देने का भरोसा दिलाएगी उसी को अपना समर्थन देंगे।
- अजीत कुमार, स्थानीय निवासी।
1956 में सीमा पर जंगल हो चुकी भूमि को आबाद करने के लिए तत्कालीन सरकारों ने लोगों को कहा था। अब कंडी क्षेत्र से दर्जनों परिवारों ने सीमा पर आकर कस्टोडियन और सरकारी भूमि को आबाद किया था। अभी तक उन्हें मालिकाना हक नहीं दिया गया। हालात यह है कि गिरदावरी नहीं होने के कारण उन्हें कृषि से संबंधित योजनाओं का लाभ मिलना ही बंद हो गया। न तो अब प्रधानमंत्री किसान निधि के दो-दो हजार रुपए उनके खातों में आ रहे हैं और न ही केसीसी बन रहे हैं। किसानों की समस्याओं पर कोई गौर नहीं कर रहा। अब लोकसभा चुनाव में भी किसानों का यही मुद्दा रहेगा।
- प्रदीप कुमार, स्थानीय निवासी।
सीमावर्ती क्षेत्र से बीस प्रतिशत लोग तो पहले ही सुरक्षित स्थानों पर बस गए हैं जो कठिन परिस्थितियों में खेती कर अपनी गुजर-बसर करते आ रहे थे। उन्हें सरकारी भूमि से बेदखल कर दिया गया जो थोड़ी बहुत मालकित की भूमि थी, वह तारबंदी और डिफेंस में चली गई है। पीछे बची सरकारी भूमि से भी बेदखल कर दिया गया है। उनकी समस्याओं पर किसी ने गौर नहीं किया जो भी राजनीतिक पार्टी उनकी भूमि संबंधी समस्याओं का समाधान करवाएगी, उसी को समर्थन देने के लिए विचार करेंगे।
-रोशन लाल।
सीमावर्ती लोगों की भूमि संबंधी समस्याओं का मुद्दा सरकार के समक्ष समय-समय पर उठाते रहे हैं। सरकार भी इस पर गंभीरता से विचार कर रही है।
- अभिनंदन शर्मा. सदस्य, जिला विकास परिषद, हीरानगर।