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Jammu-Kashmir के इन गावों में बनने वाला स्वादिष्ट कलाकंद पहुंच गया शहरों में तो ग्रामीण हो जाएंगे मालामाल

जम्मू-कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में नियंत्रण रेखा पर कंटीले तारों के किनारे रहने वाले गांव के लोग मिल्क केक बनाने में लगे हुए हैं जिसे कलाकंद कहा जाता है। इसे जम्मू-कश्मीर से बाहर बेचने के लिए लोग सरकारी समर्थन पर नजर गड़ाए हुए हैं।

By Jagran NewsEdited By: Nidhi VinodiyaUpdated: Tue, 28 Feb 2023 08:33 PM (IST)
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Jammu-Kashmir के इन गावों में बनने वाला स्वादिष्ट कलाकंद पहुंच गया शहरों में तो ग्रामीण हो जाएंगे मालामाल
राजौरी, पीटीआई । जम्मू-कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में नियंत्रण रेखा पर कंटीले तारों के किनारे रहने वाले गांव के लोग मिल्क केक बनाने में लगे हुए हैं, जिसे कलाकंद कहा जाता है। इसे जम्मू-कश्मीर से बाहर बेचने के लिए लोग सरकारी समर्थन पर नजर गड़ाए हुए हैं।

जम्मू-कश्मीर में कलाकंद की बिक्री का दायरा सीमित है। कलाकंद की बिक्री पर ग्रामीणों ने कहा कि मिल्क केक के उत्पादन करने वाले कई परिवारों को अक्सर अपने अधिशेष को खेतों में फेंकना पड़ता है।

LOC के समीप ही स्थित है यह गाँव 

बता दें कि यह कलाकंद राजौरी जिले में नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ रोधी बाधा प्रणाली से आगे स्थित सेहर, मकरी, नंब और कदाली गांवों में लकड़ी की आग पर गाय के दूध से कलाकंद तैयार किया जाता है।

मिठाई बेच कर करते हैं गुजरा 

सेहर गांव के निवासी कमल प्रकाश कहते हैं, "हमारे गांव में उत्पादित मिल्क केक सबसे अच्छी गुणवत्ता के होते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से, हमारे पास बाहरी बाजारों में बिक्री के कोई साधन नहीं है। हमारी बिक्री ज्यादातर नियंत्रण रेखा पर सेना के इलाकों में होती है।" उन्होंने कहा कि वह मिठाई बेचकर गुजारा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को मिल्क केक उत्पादकों को अपनी उपज बेचने के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करने के लिए कदम उठाने चाहिए ताकि वे अपना जीवन यापन ठीक से कर सकें।

कलाकंद की बिक्री से क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा 

एक और ग्रामीण प्रकाश ने कहा, "हमारा गांव नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की ओर है और कमाई के अवसर बहुत कम हैं। कलाकंद की अच्छी बिक्री से हमारे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है, क्योंकि बड़ी संख्या में लोग इसे बनाने में लगे हुए हैं।" प्रकाश ने कहा कि अधिकांश घरों में दूध देने वाले जानवर हैं और उन्हें कम बिक्री के कारण कई लीटर दूध फेंकना पड़ जाता है।

ग्रामीणों का जीवन खेती-किसानी पर निर्भर है 

एक अन्य स्थानीय निवासी विक्की कुमार ने कहा कि वे गांव के घरों से गाय का दूध इकट्ठा करते हैं। उन्होंने कहा कि गाय के दूध को लकड़ी की आग पर घंटों तक संसाधित किया जाता है और इसमें थोड़ी मात्रा में चीनी मिलाई जाती है। उत्पाद स्वस्थ है क्योंकि इसमें कोई स्वाद या कोई अन्य पदार्थ नहीं मिलाया जाता है।

हम ग्राहकों और कलाकंद की बिक्री के उचित मूल्य मिलने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि क्षेत्र के ज्यादातर ग्रामीणों का जीवन खेती -किसानी पर निर्भर हैं और खराब सड़कों, खराब स्वास्थ्य देखभाल और सख्त सुरक्षा प्रतिबंधों के कारण विभिन्न कठिनाइयों का सामना करते हैं।

मिठाइयों को शहरों में बेचने की हो रही तैयारी 

खास बात यह है कि सीमा पर तैनात सेना के जवानों ने भी 'शुद्ध और बेहद स्वादिष्ट' मिठाइयां बनाने के लिए ग्रामीणों की सराहना की। वरिष्ठ वैज्ञानिक और कृषि विज्ञान केंद्र, राजौरी के प्रमुख, अरविंद कुमार इशर ने कहा कि उनका कार्यालय नियंत्रण रेखा के गांवों के बाहर कलाकंद की बिक्री सुनिश्चित करने के लिए एक परियोजना पर काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस समय ग्रामीणों की इन स्वादिष्ट मिठाइयों को जम्मू जैसे बड़े शहरों के बाजारों में उपलब्ध कराई जा सके।

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