यही कारण है कि इस सीट पर चुनाव से पहले मुद्दे, सियासत व नेताओं के सुर-ताल बदल गए हैं। अतीत को भुलाकर अब नए चेहरे ताल ठोक कर कश्मीर के भविष्य को संवारने में आगे आने लगे हैं। 14 लाख से अधिक मतदाताओं में 28.5 प्रतिशत पहाड़ी हैं जो किसी भी उम्मीदवार की हार-जीत का फैसला करेंगे। 90 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं में 50 प्रतिशत कश्मीरी मुस्लिम (Kashmiri Muslim Voters) और 10 प्रतिशत हिंदू, सिख व कश्मीरी हिंदू हैं।
इस सीट पर नेकां-कांग्रेस-पीडीपी का रहा है दबदबा
आंकड़ों को देखें तो इस सीट पर नेकां-कांग्रेस-पीडीपी (National Conference, Congress, PDP) का दबदबा रहा है, लेकिन अनंतनाग (Anantnag) में भाजपा (Jammu BJP) की सेंध से तीनों पार्टियों का जनाधार कमजोर हुआ है। क्योंकि पहाड़ी और गुज्जरों को आरक्षण का लाभ देकर भाजपा ने इसे साधा है। अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट का क्षेत्र जम्मू कश्मीर के दोनों संभागों में पीर पंजाल के दाएं और बाएं फैला हुआ है।
जम्मू के राजौरी-पुंछ में भाजपा का मजबूत वोट बैंक
इसमें 11 विधानसभा क्षेत्र दक्षिण कश्मीर के और सात जम्मू के राजौरी व पुंछ के शामिल किए हैं। नेकां-पीडीपी-कांग्रेस तीनों का वोटर पूरे क्षेत्र में है। वहीं जम्मू के राजौरी-पुंछ में भाजपा का मजबूत वोट बैंक है। गुज्जर-बक्करवाल और पहाड़ियों का भी उसे सहयोग मिलेगा। इस सीट पर 28.5 प्रतिशत पहाड़ी मतदाता हैं जिनको 35 वर्ष की लंबी जंग के बाद अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा मिला है। 21.5 प्रतिशत गुज्जर मतदाता है जो इस सीट पर अहम अहमियत रखते हैं।
अगर पहाड़ी के साथ गुज्जर मतदाता का समर्थन किसी उम्मीदवार को मिलता है तो उसकी जीत तय मानी जाएगी। हाल ही में जम्मू दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में पहाड़ी समुदाय को दिए एसटी आरक्षण व गुज्जर परिवारों के आतिथ्य से नाता जोड़कर उन्हें साधने की कोशिश की।
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पिछले एक महीने की बात करें तो पार्टी ने अपने साथ इन क्षेत्रों के तीन बड़े नेताओं को अपने साथ जोड़ा है। इन नेताओं का पहाड़ी और गुज्जर वोटरों से लेकर मुस्लिम वोटरों पर भी गहरा प्रभाव है। सिर्फ कांग्रेस के लिए नहीं नहीं नेकां और पीडीपी के लिए अगर चुनौती है तो वह सिर्फ भाजपा ही है।
पाक के समर्थन में नारे गायब
कश्मीर में कभी आतंक के गढ़ कहे जाने क्षेत्रों में अब भाजपा की रैलियां और बैठकें आम हैं। क्योंकि अब वहां पाक के समर्थन में नारे गायब हो चुके हैं। युवा अब तिरंगा उठाकर स्वयं को राष्ट्रवादी साबित कर रहे हैं। कुलगाम, अनंतनाग आदि कई आतंक प्रभावित क्षेत्रों में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र रैना के दौरों पर लोगों की भारी भीड़ कश्मीरी पार्टियों को बड़ा संदेश दे रही हैं।
भाजपा को उम्मीद है कि पहाड़ी और हिंदू वोट मिलकर कश्मीर घाटी में भी लोकसभा चुनाव जीतने का उसका मंसूबा पूरा कर सकते हैं। कश्मीर में चुनाव जीतना पार्टी के लिए एक सीट जीतने से ज्यादा धारणा की लड़ाई जीतने जैसा होगा।2019 में अनंतनाग थी अलग लोकसभा सीट 2019 में अनंतनाग अलग लोकसभा सीट थी। इस सीट पर नेकां के हसन मसूदी ने जीत हासिल की थी, लेकिन अब राजौरी व पुंछ के साथ साथ कश्मीर का हिस्सा जोड़ कर राजौरी-अनंतनाग नई सीट घोषित की गई है। 18 विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किया गया जिसमें शोपियां की जैनीपोरा, कुलगाम जिले की डीएच पोरा, कुलगाम व देवसर।
अनंतनाग की डूरो, कोकरनाग, अनंतनाग वेस्ट, अनंतनाग, सेरीगुफवारा -बिजबेड़ा, अनंतनाग इस्ट, पहलगाम। राजौरी की नौशहरा, राजौरी, बुद्धल व थन्ना मंडी व पुंछ जिले की सुरनकोट, पुंछ हवेली व मेंढर शामिल है। 35 वर्ष बाद पहाड़ियों को मिला हक 35 वर्ष से पहाड़ी समुदाय के लोग एसटी के दर्जे की मांग कर रहे थे, लेकिन इनकी मांग को भाजपा सरकार ने पूरा कर दिखाया।
भाजपा ने राजनीतिक समीकरणों को बदला
अगर भाजपा को पहाड़ी वोट मिलता है तो इस सीट से भाजपा की जीत पक्की है, लेकिन पहाड़ियों को एसटी का दर्जा देने के बाद गुज्जर समुदाय के कुछ लोग भाजपा से खफा चल रहे हैं। परिसीमन, विरोधियों के वोट बैंक में सेंध व प्रदेश की सियासत में उतरे कुछ नए राजनीतिक दलों के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार के सहारे भाजपा ने राजनीतिक समीकरणों को बदल दिया है। 2022 में परिसीमन ने प्रदेश की राजनीति में उसके महत्व को बढ़ाकर 70 वर्ष से जारी राजनीतिक असंतुलन को किसी हद तक दूर किया है।
90 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हर पार्टी में रखते है पकड़ विकास को देखते हुए लोगों को बदल रहा है नजरिया इस सीट पर 90 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता है जिनमें 50 प्रतिशत कश्मीरी मुस्लिम शामिल है। मुस्लिम मतदाता कांग्रेस, पीडीपी, नेकां के पक्ष में मतदान करते आए हैं। अब कुछ मुस्लिम मतदाताओं पर भाजपा ने भी अपनी पकड़ बना ली है।पहले जम्मू-पुंछ सीट होती रही है। इस सीट पर राजौरी-पुंछ दोनों जिलों से कांग्रेस, नेकां व पीडीपी के पक्ष में भी मतदान होता रहा है। पहले राजौरी-पुंछ जम्मू संसदीय क्षेत्र और अनंतनाग-कुलगाम और शोपियां व पुलवामा एक ही संसदीय सीट अनंतनाग का हिस्सा थे। पांच अगस्त 2019 से पहले कश्मीर में तीन और जम्मू में दो संसदीय क्षेत्र थे।
परिसीमन प्रक्रिया में इस असंतुलन को दूर किया है। जम्मू कश्मीर में पांच वर्ष में विकास कार्य जिस गति से हुआ, उससे भाजपा के प्रति कश्मीर में लोगों में सहानुभूति बढ़ी है। अपने क्षेत्र के उम्मीद के लिए एकजुट होकर करें मतदान राजौरी-पुंछ को कश्मीर से जोड़कर नई राजौरी-अनंतनाग नई सीट बनाई है।पहले जम्मू-पुंछ एक सीट होती रही है जिस भी दल से सांसद चुना जाता वह राजौरी-पुंछ के लोगों को कम ही मिलता। अब यह नई सीट बनी है अगर राजौरी व पुंछ के लोग एकजुट होकर अपने क्षेत्र के उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करें तो हम अपने क्षेत्र के उम्मीदवार को जीता सकते हैं जो हमारे बीच ही रहेगा और हम किसी समय उससे मिल सकते हैं।अगर कश्मीर को कोई उम्मीदवार इस सीट से चुनाव जीत जाता है तो हमें वह उम्मीदवार पांच वर्ष बाद चुनाव के समय ही मिलेगा और अगर हमें उसका कोई काम पड़ता है तो हमें कश्मीर का रुख करना पड़ेगा जो हम लोगों के लिए काफी मुश्किल होगा। -योगेश शर्मा, पूर्व सरपंच 10 वर्षों में तेजी से विकास हुआ, मतदाता अब अधिक जागरूक राजौरी-पुंछ के साथ दशकों तक सभी दलों ने विश्वासघात किया।10 वर्षों से राजौरी व पुंछ में भी अन्य क्षेत्रों की तरह विकास के कार्य तेजी से हुए हैं। लोगों को कई योजनाओं का लाभ मिला। सबसे बड़ी बात पहाड़ियों को हक मिला। अब मतदाताओं को तय करना है कि हमें किस दल के पक्ष में मतदाता करना है। मतदाता पहले से अधिक जागरूक हो चुका है। -एडवोकेट हक नवाज मिर्जा, बार काउंसिल राजौरी के पूर्व अध्यक्ष।
मोहम्मद शफी कुरैशी
कश्मीर के बड़े नेता। 1967, 1971 और 1977 के चुनावों में कांग्रेस की तरफ से अनंतनाग से लोकसभा के लिए चुने गए। अपने संसदीय कार्यकाल के दौरान कुरैशी केंद्र की सरकार में वाणिज्य, इस्पात और भारी इंजीनियरिंग, रेल, पर्यटन और नागरिक उड्डयन विभाग में मंत्री भी थे। बाद में कांग्रेस ने उन्हें बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का राज्यपाल भी बनाया गया था।
मुफ्ती मोहम्मद सईद
जम्मू-कश्मीर के दो बार मुख्यमंत्री (2002 और 2015 में) रहे। इसके अलावा वह 1989 से 1990 तक भारत के गृह मंत्री भी रहे थे। मुफ्ती मोहम्मद सईद ने 1999 में कांग्रेस से अलग होकर जम्मू और कश्मीर पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना की थी। पीडीपी ने 2014 में भाजपा के सहयोग से सरकार भी बनाई।
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