पुलवामा के पंपोर में दिखी सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल, मुस्लिम पड़ोसियों ने किया कश्मीरी पंडित का अंतिम संस्कार
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा के पंपोर में सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल देखने को मिली। इस कस्बे कश्मीरी पंडित अशोक कुमार वांगू की मंगलवार को मौत हो गई और उनकी मौत के बाद मुस्लिम पड़ोसियों ने वांगू का अंतिम संस्कार किया। पंपोर शहर के द्रंगबल स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। उन्हें अस्पताल ले जाया गया और वहीं डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
पीटीआई, पंपोर (पुलवामा)। Kashmiri Pandit Last Rites By Muslims: जम्मू-कश्मीर के पुलवामा के पंपोर में सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल देखने को मिली। इस कस्बे मुस्लिम पड़ोसियों के द्वारा कश्मीरी पंडित अशोक कुमार वांगू का अंतिम संस्कार किया। अशोक का मंगलवार शाम करीब पांच बजे पंपोर शहर के द्रंगबल स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। उन्हें अस्पताल ले जाया गया और वहीं डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
अंतिम संस्कार जम्मू की बजाय पंपोर में किया जाएगा
कश्मीर पंडित समुदाय ने अशोक के पार्थिव शरीर को जम्मू ले जाने के बजाय पंपोर में ही अंतिम संस्कार करने का फैसला लिया। कश्मीरी पंडित समुदाय के सदस्यों ने हर सुख-दुख में उनके साथ खड़े रहने के लिए स्थानीय मुसलमानों के प्रति अपना आभार व्यक्त किया।
अंतिम संस्कार में सभी ने की मदद
वहीं, मृतक के पड़ोसी कश्मीरी पंडित राजू भट ने कहा कि पुरुष, महिलाएं और बच्चों सभी ने इसमें हमारी मदद की। हमें ज्यादा कुछ नहीं करना पड़ा। यह हमारे लिए यह सब नया नहीं है और यह ही कश्मीरियत है। उन्होंने आगे कहा कि हालांकि वर्तमान समय में ऐसा करने का वास्तव में कुछ मतलब है और इसके लिए हम उनके आभारी हैं।
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वांगू की मौत की खबर मिलते ही पहुचें सभी लोग
मृतक अशोक कुमार वांगू की मौत की खबर जैसे ही इलाके में फैली, उसके बाद ही पूरे द्रंगबल मोहल्ले और आसपास के इलाकों के मुस्लिम लोग वहां आ गए। दिवंगत की आत्मा के अनुष्ठानों की जरूरी औपचारिकताओं और व्यवस्था में मदद की। वांगू के बचपन के दोस्त व सहपाठी मुस्लिम पड़ोसी मोहम्मद यूसुफ मलिक ने कहा कि उनका क्षेत्र हमेशा हिंदू-सिख-मुस्लिम एकता के लिए जाना जाता रहा है।
पंपोर सांप्रदायिक सौहार्द के लिए है एक मिसाल
मलिक ने यह भी कहा कि यहां हिंदू, मुस्लिम और सिख सौहार्दपूर्ण ढंग से एक साथ रहे हैं और हमें यहां कभी कोई समस्या नहीं हुई। हम एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल होते हैं। इसलिए पंडित समुदाय ने फैसला किया कि वे वांगू को अंतिम संस्कार के लिए जम्मू नहीं ले जाएंगे।
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