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Article 370: SC ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला, जानिए क्‍या है अनुच्‍छेद 370 का इतिहास और कैसे किया गया था लागू

Article 370 हटाने के फैसले पर दर्ज याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने इस फैसले को सही ठहराया है। पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि इसको हटाने से जम्‍मू-कश्‍मीर को ही फायदा होगा। चलिए जानते हैं कि अनुच्छेद क्या है इससे यहां के लोगों को कौन से अधिकार मिलते थे और आखिर इससे जुड़ा इतिहास क्या है।

By Gurpreet Cheema Edited By: Gurpreet Cheema Updated: Mon, 11 Dec 2023 12:00 PM (IST)
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राज्यसभा में चार साल पहले जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 बिल पेश करते हुए गृह मंत्री अमित शाह
श्रीनगर, ऑनलाइन डेस्क। जम्‍मू कश्‍मीर में अनुच्‍छेद 370 हटाने के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया दिया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार के Article 370 हटाने के इस फैसले को सही ठहराया है। यह फैसला बरकरार रहेगा।

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि इसको हटाने से जम्‍मू-कश्‍मीर को ही फायदा होगा। साथ ही उन्‍होंने बताया कि राष्‍ट्रपति और केंद्र सरकार के पास यह सभी अधिकार है। जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। केंद्र के फैसले पर सवाल उठाना उचित नहीं है।

अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला ऐतिहासिक

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाना नरेंद्र मोदी की सरकार का ऐतिहासिक फैसला माना जाता है। चार साल पहले संसद में इसे काफी हंगामे के बीच पेश किया गया था और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी के बाद यह फैसला लागू किया गया।

अनुच्छेद 370 हटाए जाने से पहले जब भी इसे लेकर बात होती थी तो कश्मीर के कई नेता और स्थानीय लोग इसका विरोध करते थे। अनुच्छेद 370 का अपना इतिहास रहा है, उस दौरान कुछ परिस्थितियां कुछ ऐसी रहीं जब राज्य को विशेष दर्जा दिया गया था। चलिए जानते हैं कि अनुच्छेद क्या है, इससे यहां के लोगों को कौन से अधिकार मिलते थे और आखिर इससे जुड़ा इतिहास क्या है।

अनुच्छेद 370 क्या है?

भारत के संविधान में 17 अक्तूबर, 1949 को अनुच्छेद 370 शामिल किया गया था। यह जम्मू-कश्मीर को भारत के संविधान से अलग रखता था। इसके तहत राज्य सरकार को अधिकार था कि वो अपना संविधान स्वयं तैयार करे। साथ ही संसद को अगर राज्य में कोई कानून लाना है तो इसके लिए यहां की सरकार की मंजूरी लेनी होती थी। वहीं, पहले जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रीय ध्वज भी अलग था और यहां के लोगों के लिए राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना अनिवार्य नहीं था।

कैसे लागू हुआ अनुच्‍छेद 370?

ये भारतीय संविधान के भाग XXI "अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान" शीर्षक से तैयार किया गया था। अक्टूबर 1947 में कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय पत्र यानी ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर किए थे।

इसके जरिए उन्होंने प्रिंसले स्टेट को भारत में विलय पर सहमति जाहिर की थी। इस विलय पत्र में लिखा था कि जम्मू-कश्मीर विदेश, रक्षा और संचार मामलों में भारत सरकार को अपनी शक्ति हस्तांतरित करेगा। इसके बाद साल 1949 में जम्मू-कश्मीर की सरकार ने इसका एक प्रस्ताव तैयार किया और 27 मई, 1949 को कश्मीर की संविधान सभा ने इसे कुछ बदलाव के साथ स्वीकार किया। फिर 17 अक्टूबर, 1949 को यह भारतीय संविधान का हिस्सा बन गया।

अनुच्छेद 370 हटने के बाद क्या हुआ?

भारत सरकार ने आज ही यानी कि पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा खत्म कर दिया था, जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया और लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया।

अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को कौन से विशेष अधिकार देता था?

अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा मिला था। इसकी वजह से यहां संविधान की धारा 356 लागू नहीं हो सकती थी और राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्‍त करने का भी अधिकार नहीं था। इसकी वजह से कश्मीर में आरटीआई (RTI) और सीएजी (CAG) जैसे कानून लागू नहीं हो सकते थे और यहां के नागरिकों के पास दौहरी नागरिकता होती थी। साथ ही अलग राष्ट्र ध्वज भी था।

अनुच्छेद 35A क्या है?

35A के तहत 14 मई 1954 के पहले जो कश्मीर में बस गए थे, उन्हीं लोगों को यहां का स्थायी निवासी माना जाता था। साथ ही जो लोग यहां के निवासी नहीं थे उनके पास राज्य में जमीन लेने का अधिकार नहीं था। यानी की जो लोग भारत में रह रहे थे वे भी यहां जमीन नहीं ले सकते थे। यहां तक की यहां सरकारी नौकरियों तक के लिए भी आवेदन नहीं किया जा सकता था और न ही यहां के विश्वविद्यालयों में एडमिशन लिया जा सकता था।

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