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Jammu-Kashmir Election 2024: आतंक के गेटवे से लोकतंत्र के द्वार तक, पूरी तरह बदल गया उत्तरी कश्मीर का माहौल

उत्तरी कश्मीर में लोकतंत्र की जीत का डंका बज रहा है। वह इलाका जो कभी आतंक का गढ़ हुआ करता था अब लोकतंत्र का द्वार बन गया है। लोग बेखौफ होकर घूम रहे हैं और चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। आइए जानते हैं कैसे बदला है उत्तरी कश्मीर का माहौल और कैसे यहां के लोग लोकतंत्र का जश्न मना रहे हैं।

By Jagran News Edited By: Rajiv Mishra Updated: Sun, 29 Sep 2024 09:45 AM (IST)
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कुपवाड़ा में शनिवार को एक जनसभा में उमड़ी लोगों की भीड़l (जागरण फोटो)

नवीन नवाज, कुपवाड़ा। वह दिन बीत गए, जब सूरज के ढलते ही सन्नाटा छा जाता था। घर से बाहर निकलना तो दूर, दरवाजे पर आहट भी डरा देती थी। अब दिन हो या रात, कोई डर नहीं। कश्मीर में हूए बदलाव पर आपको विश्वास न हो तो उत्तरी कश्मीर के बारामुला, कुपवाड़ा और बांडीपोर में घूम जाइए। पारंपरिक कश्मीरी रौफ नृत्य की स्वरलहरियों पर बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग भी झूमते नजर आएंगी। यह उत्साह और उल्लास है लोकतंत्र के महोत्सव का, जो बता रहा है कि उत्तरी कश्मीर अब आतंक का नहीं अब लोकतंत्र का द्वार बन गया है।

उत्तरी कश्मीर को कहा जाता था आतंक का गेटवे

उत्तरी कश्मीर के तीनों जिले नियंत्रण रेखा से सटे हैं। यही वजह है कि आतंकी इन क्षेत्रों से ही घुसपैठ की राह तलाशते थे। इसके अलावा गुरेज, टंगडार, करनाह, कुपवाड़ा और सोपोर आतंकियों और अलगाववादियों के गढ़ के रूप में कुख्यात रहे हैं। यही वजह है कि उत्तरी कश्मीर को आतंक का गेटवे अर्थात प्रवेश द्वार कहा जाता था।

पूरी तरह से बदला है यहां का माहौल

पांच वर्ष में यहां माहौल पूरी तरह बदला है। अब यहां कोई युवाओं को गुलाम जम्मू-कश्मीर की जिहादी फैक्टरियों में जाने के लिए प्रेरित करता नहीं दिखता। यह अलग है कि बसों व अन्य वाहन नियंत्रण रेखा की तरफ जा रहे हैं, लेकिन यह युवा लोकतंत्र की फुहार से सराबोर हैं और इनकी टोलियां अब मतदाताओं को ईमानदार व कर्मठ उम्मीदवारों के चयन के लिए प्रेरित करती दिख रही हैं। जम्मू कश्मीर में अंतिम चरण में एक अक्टूबर को 40 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान होना है। इनमें से 16 उत्तरी कश्मीर में ही हैं।

सोपोर से था आतंकी अफजल गुरु

यह जानना आवश्यक है कि कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी, आतंकी अफजल गुरु का संबंध सोपोर से रहा है। कश्मीर में आतंकी हिंसा व अलगाववाद का जनक कहा जाने वाला मकबूल बट त्रेहगाम का निवासी था। हिजबुल मुजाहिदीन का पहला कमांडर मास्टर अहसान डार भी पट्टन से ही निकला है।

मीर इमरान ने कही ये बात

कश्मीर मामलों के जानकार मीर इमरान ने कहा कि आज हुर्रियत से जुड़े नेताओं और पूर्व आतंकियों के चुनाव मैदान में उतरने की चर्चा है। यह अच्छी बात है। एक समय बहिष्कार की ही बातें होती थी। उस दौर में पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन ने मुख्यधारा में शामिल हो चुनाव लड़ा था इसलिए कह सकते हैं कि कश्मीर में लोकतंत्र की ठंडी हवा की शुरुआत भी उत्तरी कश्मीार से हुई। कुपवाड़ा के मुख्य बाजार में एक चुनावी रैली का हिस्सा बने जुबैर ने कहा कि मैं पहली बार वोट डालूंगा। मुझे उम्मीद है कि जो हमारा नया नेतृत्व सामने आएगा, वह हमारी उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करेगा।

महात्मा गांधी उत्तरी कश्मीर के रास्ते कश्मीर आए थे। उन्होंने 1947 में भारत-पाक विभाजन के समय पूरे देश में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बीच कश्मीर में व्याप्त सांप्रदायिक सदभाव को देखकर कहा था कि मुझे कश्मीर में आशा की किरण नजर आ रही है। आतंक के चरम पर भी अगर लोकतंत्र का दीप कहीं टिमटिमा रहा था तो वह उत्तरी कश्मीर ही था। -रफी रज्जाकी, समाजसेवी

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मुद्दे और भी हैं

उड़ी से सटे कमलकोट के रहने वाले गुलाम हसन ने कहा कि सर्दियों में हमें बिजली की किल्लत रहती है। हम एलओसी पर रहते हैं और हमारे लिए यह बहुत जरुरी है। एक महिला सकीना बेगम ने कहा कि स्वच्छ पेयजल का भी मसला है। सर्दियों में हमें मीलों चलकर पानी लाना पड़ता है। अनुच्छेद 370 और 35ए के बारे में कहते हैं कि यह हमारी पहचान से जुड़े हैं, लेकिन यह कहीं बाहर से नहीं मिलेंगे, संसद ने हटाया है तो संसद ही देगी।

मकबूल बट के पुश्तैनी मकान से लगभग 200 मीटर दूर खड़े इरफान अहमद नामक युवक ने कहा कि हमारे यहां तो चुनाव को लेकर आप शादी जैसा जश्न देख सकते हैं। उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है कि बंदूक ने हमें कुछ नहीं दिया। अगर यहां आतकी हिंसा न होती तो शायद हमें बहुत कुछ मिल गया होता। हमें राज्य का दर्जा वापस मिलनी चाहिए।

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