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जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से आए विस्थापितों को मिला संपत्ति का मालिकाना अधिकार, 70 हजार परिवार होंगे लाभांवित

जम्मू-कश्मीर में वर्ष 1947 में पश्चिमी पाकिस्तान से आए विस्थापितों को पांच अगस्त 2019 से पहले स्थानीय नागरिक का अधिकार प्राप्त नहीं था। वह भारत के नागरिक तो थे लेकिन जम्मू-कश्मीर के नहीं। प्रदेश प्रशासनिक परिषद ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए पाकिस्तानी विस्थापितों को सरकारी भूमि पर मालिकाना अधिकार दे दिया है। इससे सशक्तीकरण का एक नया दौर शुरू होगा।

By Jagran News Edited By: Jeet Kumar Updated: Wed, 31 Jul 2024 05:30 AM (IST)
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जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से आए विस्थापितों को मिला संपत्ति का मालिकाना अधिकार
 राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। वर्ष 1947 में पाकिस्तान से आए विस्थापित हों या 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान बेघर होकर अपने ही प्रदेश में शरणार्थी बने लोग, अब वे आबंटित सरकारी भूमि के आबंटी नहीं, मालिक कहलाएंगे। प्रदेश प्रशासनिक परिषद ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए उन्हें सरकारी भूमि पर मालिकाना अधिकार दे दिया है।

अब यह लोग संबंधित भूमि का प्रयोग अपनी इच्छा और आवश्यकता अनुसार कर सकेंगे। प्रदेश प्रशासन के इस निर्णय से जम्मू-कश्मीर में लगभग 70 हजार परिवार लाभांवित होंगे। इससे उनके लिए आर्थिक-सामाजिक संपन्नता व सशक्तीकरण का एक नया दौर शुरू होगा।

पहले अपनी मर्जी से खरीद-बेच नहीं सकते थे

जम्मू-कश्मीर में वर्ष 1947 में पश्चिमी पाकिस्तान से आए विस्थापितों को पांच अगस्त, 2019 से पहले स्थानीय नागरिक का अधिकार प्राप्त नहीं था। वह भारत के नागरिक तो थे, लेकिन जम्मू-कश्मीर के नहीं। उन्हें जम्मू-कश्मीर में रहने और गुजर-बसर करने के लिए जमीन आबंटित की गई थी, लेकिन वह इस जमीन को अपनी मर्जी से खरीद-बेच नहीं सकते थे। उनके पास इसका कोई मालिकाना अधिकार नहीं था।

इसके अलावा 1965 में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के छंब और कुछ अन्य क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। उन इलाकों से भी कई परिवार विस्थापित बनकर जम्मू व अन्य कस्बों में आकर बसे। इन्हें भी जमीन आबंटित की गई थी, लेकिन मालिकाना अधिकार नहीं था।

अलबत्ता, इनके पास राज्य का स्थायी नागरिकता अधिकार था। पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी जम्मू-कश्मीर के स्थायी नागरिक हो गए। जम्मू-कश्मीर में स्टेट सब्जेक्ट की अनिवार्यता समाप्त हो गई और उसके स्थान पर अधिवास प्रमाणपत्र की व्यवस्था लागू की गई। उन्हें भी पहली बार डोमिसाइल अधिकार मिले थे।

अब तक मिले थे केवल आश्वासन

पश्चिमी पाकिस्तान से आए नागरिक और 1965 में विस्थापित हुए परिवार बीते कई वर्षों से आबंटित भूमि के मालिकाना अधिकार की मांग कर रहे थे। इस संदर्भ में उन्होंने कई बार प्रदेश प्रशासन और केंद्र सरकार से भी आग्रह किया। कई राजनीतिक दलों ने उन्हें केवल आश्वासन दिए और इसे अपने चुनावी एजेंडे में भी शामिल किया।

अलबत्ता, उनकी यह मांग उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की अध्यक्षता में हुई प्रदेश प्रशासनिक परिषद की बैठक में पूरी हो गई। प्रशासनिक परिषद की ओर से लिए गए इस निर्णय से पश्चिमी पाकिस्तान से आए नागरिक और 1965 के विस्थापित भी 1971 के गुलाम जम्मू-कश्मीर के विस्थापितों के समान भूमि पर मालिकाना अधिकार के अधिकारी हो गए हैं।

हमारे लिए यह सपना सच होने जैसा

पाकिस्तान से पश्चिमी होकर आए एक परिवार की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे रोहित चौधरी ने कहा कि यह तो हमारे लिए एक सपने के सच होने के समान है। अब हम इन जमीनों के आधार पर बैंक से अपने लिए ऋण ले सकते हैं। किसान निधि का लाभ ले सकते हैं। कोई हमें अब इन जमीनों से बेदखल नहीं कर सकता।

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