Engineer Rashid Interview बारामूला संसदीय सीट से सांसद इंजीनियर रशीद इन दिनों जेल से बाहर हैं और जम्मू-कश्मीर में अपने प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार को धार देने में जुटे हैं। उनका मानना है कि कश्मीर मसले को हल करना बेहद जरूरी है। कश्मीरी मुद्दों आर्टिकल- 370 सहित रशीद से कई मुद्दों पर वार्ता की गई। पेश है इंटरव्यू के कुछ अंश
नवीन नवाज, श्रीनगर। Engineer Rashid Interview: बारामूला के सांसद शेख अब्दुल रशीद उर्फ इंजीनियर रशीद फिलहाल जम्मू-कश्मीर की राजनीति के केंद्र में हैं। अपने तल्ख रवैये और कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए जनमत संग्रह पर जोर देने वाले इंजीनियर रशीद को कोई अलगाववादी बता रहा है और कोई भाजपा का एजेंट।
नेकां और कुछ अन्य दल उन पर कश्मीर में भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप लगाते हैं। विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए तिहाड़ से जमानत पर छूटे अवामी इत्तिहाद पार्टी के चेयरमैन और बारामूला के सांसद रशीद कश्मीर मसले पर खुलकर बात करते हैं और नेकां और पीडीपी जैसे दलों की राजनीति को सवालों के घेरे में खड़ा करने से नहीं चूकते।
पाकिस्तान समर्थक रहे प्रतिबंधित जमात के नेताओं से समझौते पर भी वह पक्ष साफ करना चाहते हैं। इंजीनियर रशीद को प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के नेताओं का भी समर्थन है। प्रस्तुत हैं दैनिक जागरण के ब्यूरो प्रभारी नवीन नवाज से उनकी बातचीत का अंश:
1. आपके बारे में कहा जा रहा है कि आप जम्मू-कश्मीर में आम आदमी पार्टी की तरह नई ताकत बनना चाहते हैं?
यह सही नही है। मैं अरविंद केजरीवाल से पहले से सियासत में हूं। उन्होंने जब पार्टी बनाई थी तो उन्होंने मुझसे मुलाकात की थी और हमसे चर्चा की थी। हमनें उन्हें कुछ सुझाव दिए थे। आप ने हमारा मॉडल अपनाया है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर और दिल्ली के मुद्दे और हालात पूरी तरह अलग हैं। वहां शासन का मसला है, यहां विवाद है, टकराव है।
2. आप कश्मीर की आजादी की वकालत करते हैं, देश तोड़ने की बात करते हैं?
यह गलत है, मैंने कभी नहीं कहा कि यह आजादी की लड़ाई है। मैंने हमेशा कहा है कि यह एक मानवीय और राजनीतिक मुद्दा है और हल किया जाना चाहिए। यह कहना कोई अलगाववाद नहीं है। मैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से कहता हूं कि डरो मत, डराओ मत। मैं सच बोलता हूं, इसलिए मुझे जेल में डाला गया। यहां लोकसभा चुनाव हुए, मोदी ने उन्हें पूरे दुनिया में लोकतंत्र की जीत के रूप में प्रचारित कर बेचा, लेकिन जो उस लोकतांत्रिक जीत का हीरो है, जिसने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री को हराया, जिसने भाजपा के प्रॉक्सी उम्मीदवार सज्जाद गनी लोन को हराया, उसे आप जेल से बाहर नहीं आने दे रहे।
3. आपने पहली बार कई सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं, आप कश्मीर में किंग मेकर की भूमिका में आने का प्रयास कर रहे हैं, कुछ कह रहे हैं कि अगली सरकार में आप मंत्री होंगे? सच्चाई क्या है?
पहली बात मेरी प्राथमिकता कभी भी सरकार बनाने की नहीं रही। मैं कश्मीर मसले का हल चाहता हूं। दूसरा मैं भाजपा के साथ कभी नहीं जाऊंगा। मैंने यह अवश्य कहा है कि अगर कश्मीर मसले को वह हल करती है तो मैं उसका साथ दूंगा। भाजपा की राजनीति और मेरी राजनीति में जमीन-आसमान का फर्क है। भाजपा को कश्मीरियों से कोई हमदर्दी नहीं। उसने 370 को हटाया है। अगर मुझे भाजपा का साथ देना होता तो लोकसभा चुनाव में जीत के बाद में भाजपा के साथ चला जाता और केंद्र में मंत्री बनता। मुझे मंत्री बनाकर भाजपा पूरी दुनिया को बताती कि देखो कश्मीरियों का सांसद हमारे साथ है, कश्मीर ने अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण पर अपनी मुहर लगा दी।
4. उमर अब्दुल्ला कहते हैं कि इंजीनियर रशीद यकीन दिलाएं कि वह भाजपा के साथ नहीं जाएंगे तो वह उनका साथ देंगे?
उमर अब्दुल्ला ने ऐसा सीधे मुझसे कभी नहीं कहा। मैंने उन्हें पेशकश की थी पर उनका कोई जवाब नहीं आया। मैंने कहा था कि वह कुरान की कसम उठाएं और अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए मेरे साथ मिलकर संघर्ष करने का यकीन दिलाएं, मैं उनके साथ चलूंगा। उनका कोई जवाब नहीं आया। उनकी खानदानी रिवायत है झूठ बोलना।
सच तो यह है कि यहां नेकां और पीडीपी कभी भी भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना सकती हैं। चुनाव के बाद उमर अब्दुल्ला भाजपा के साथ सरकार बनाएंगे और राज्य का दर्जा मिल जाएगा। फिर वह कहेंगे कि पीडीपी के कारण राज्य का दर्जा चला गया था, मैं इसे वापस लेकर आया हूं। यह वह लोग हैं जो पहले थप्पड़ मारते हैं और फिर सहलाते हैं। आज भी यह लोग केंद्र सरकार के साथ संपर्क में हैं। एएस दुल्लत (पूर्व रॉ चीफ) ही नेकां और पीडीपी को लेकर केंद्र के बीच समन्वयक की भूमिका निभाते हैं। मेरा वहां कोई गॉडफादर नहीं है।
5. आपकी नजर में कश्मीर मसला क्या है और इसका हल क्या है?
कश्मीर मुद्दा 1947 से है, हम तो इस मुद्दे से पीड़ित हैं। मैंने हमेशा यही कहा है किसी के घर शव न पहुंचे। जब कोई फौजी बलिदान देता है तो उसके शव पर तिरंगा डालना आसान होता है, तीन दिन बाद उसके मां-बाप की क्या हालत होती है।यही हालत कश्मीर में किसी आतंकी के मारे जाने पर होती है, जब वह पाकिस्तान के लिए जान देता है तो सारे जमा होते हैं। नारेबाजी होती है, फिर उस आतंकी के घर की हालत देखने कोई नहीं जाता कि उसके परिजन पर क्या गुजर रही है। यही हाल हमारे राजनीतिक कार्यकर्ताओं का है, हमारे कश्मीरी पंडित भाइयों का है।
मैं भी यही चाहता हूं कि किसी मां की गोद खाली न हो। उसके लिए आपको मसला हल करना पड़ेगा। अब मसला है क्या? पाकिस्तान कहता है कि सारा जम्मू-कश्मीर एक विवाद है, हिंदुस्तान कहता है कि पीओके (गुलाम जम्मू कश्मीर) वाले हमारे साथ आना चाहते हैं, वह मोदी जी के हाथ से लड्डू खाना चाहते हैं।मोदी जी की बात सच होगी, मुझे उनकी विश्वसनीयता पर शक नहीं है, क्या पाकिस्तान उन्हें आने देगा। अगर मोदी जी को यकीन है वह लोग आना चाहते हैं तो वह संयुक्त राष्ट्र की सिफारिशों को लागू करें, उनसे कहा जाए कि रेफ्ररेंडम करो। वह आराम से हमारे साथ आएंगे।
अमित शाह और मोदी जी दावा करते हैं कि गुलाम जम्मू-कश्मीर का एक-एक नागरिक हमारे साथ आना चाहता है। अच्छी बात है। चलो मैं कहता हूं कि पाकिस्तान भी कहता है कि चलो रेफ्ररेंडम कराते हैं। अभी मैं उस कश्मीर की बात करता हूं, अगर मोदी जी की इंटेलीजेंस इतनी तेज है, फिर अखंड भारत का सपना सच होगा। कश्मीर में शांति होगी, आप शारदा पीठ जाओ, फिर आप चीन पर हमला करो उधर से आप मध्य एशिया जाओ। आपकी तो बल्ले-बल्ले है।
यह जनमत संग्रह इस तरफ भी होगा और उस तरफ भी, अपने आप पता चल जाएगा कि कश्मीरी क्या चाहता है और कश्मीर मसला हल हो जाएगा। वहां तो सभी लोग उनके साथ हैं जैसा वह दावा करते हैं, यहां भी साठ प्रतिशत लोगों ने भारतीय संविधान के तहत आपको वोट दिया है, इसलिए आपको सौ प्रतिशत यकीन होना चाहिए कि साठ प्रतिशत आपके हक में होंगे और मसला हल हो जाएगा। पाकिस्तान को ऐसा थप्पड़ पड़ेगा कि वह दोबारा कभी नहीं उठेगा।
6. जम्मू-कश्मीर की जनता ने 1947 में ही भारत विलय का अपना निर्णय सुना दिया था। जनमत संग्रह अब अव्यावहारिक और आप्रसंगिक हो चुका है?
यहां मीडिया से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक सब कहते हैं कि भारत लोकतंत्र की जननी है (इंडिया इज मदर ऑफ डेमोक्रेसी)। यहां कश्मीर में वाकई लोकतंत्र हैं तो कश्मीर मसले को लोकतांत्रिक तरीके से हल किया जाए। अगर मोदी जी को यह बात बुरी लगती है तो वही बताएं कि क्या हल है। विलय के समय हमारे पास 50 प्रतिशत था, ऑटोनामी थी, हमारा प्रधानमंत्री, सदर-ए-रियासत, संविधान और निशान था। उस समय कुछ लोगों ने वादा किया था कि हम आपको 90 प्रतिशत देंगे। हम उस 90 प्रतिशत को लेने के लिए निकले थे। उसके लिए यहां एक लाख लोगों की जान चुकी है।भारत के विभिन्न प्रधानमंत्रियों ने बातचीत के लिए कश्मीरियों को बुलाया लेकिन मोदी जी पांच अगस्त 2019 को उठे और बोले कि यहां सबकुछ हल हो गया और हमसे 50 प्रतिशत भी छीन लिया। फिर कहते हैं कि कैसा लगता है। चलो ठीक है, आप 370 हटाने की तारीफ करो, लेकिन जब आप एसपी को थानेदार बना देंगे तो उसे कैसा लगेगा, यह वही जानता है। यही हमारे साथ हो रहा है। आपने एक राज्य को भंग कर उसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया। फिर यहां मुझे मीडिया से भी शिकायत है, केंद्र सरकार के दबाव मे एक नैरेटिव बनाया गया कि यहां सब कुछ सही है। राष्ट्रीय मीडिया की यहां विश्वसनीयता खत्म हो चुकी है।
7. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नया कश्मीर बना रहे हैं, उस पर आप क्या कहते हैं?
मोदी जी का दावा है पांच अगस्त 2019 को सब-कुछ हल हो गया। मैंने यहां आकर सड़कों की दुर्दशा देखी है, वह पहले कभी नहीं थी, रोजगार का मसला है, यहां लोग पानी के लिए तरस रहे हैं।इसीलिए मैं मोदी जी से कहता हूं कि आओ बातचीत की मेज पर आओ, लेकिन वह नहीं आते हैं। अगर मोदी जी का नया कश्मीर सचमुच जमीन पर है, जैसा वह दावा करते हैं, उनके प्रॉक्सी उम्मीदवार सज्जाद गनी लोन को मैंने हरा दिया।मैंने उनके नए कश्मीर के दावे को दफन कर दिया। इसलिए वह मुझे जेल में रखते हैं। आज मैं जेल से छूट कर आया हूं, सब पूछ रहे हैं। अगर मैं हार गया होता तो मीडिया की हेडलाइन होती है, टेरर फंडिग के आरोपित इंजीनियर रशीद को लोगों ने नकार दिया और मोदी को बड़ा भाई कहने वाला सज्जाद गनी लोन जीत गया। आप में यह हिम्मत नहीं कि मोदी जी का नया कश्मीर इंजीनियर रशीद की जीत ने जमीन के नीचे दफन कर दिया।
8. कश्मीर के पाकिस्तान में विलय की समर्थक जमात-ए इस्लामी के साथ आपका गठजोड़ है, क्या यह आपको पाकिस्तान समर्थक नहीं बनाता?
जमात-ए इस्लामी इस समय एक प्रतिबंधित है। चुनावी अधिसूचना जारी होने तक हम जमात से प्रतिबंध हटाने की मांग कर रहे थे, हमारा उसके साथ कोई राजनीतिक समझौता नहीं था। अब प्रतिबंधित जमात-ए इस्लामी के लोगों ने नामांकन पत्र जमा कराए, उनके नामांकन पत्र स्वीकार हुए है, जिसका सीधा मतलब यह है कि सरकार को उनके चुनाव लड़ने पर एतराज नहीं है। वह निर्दलीय निजी हैसियत में चुनाव लड़ रहे थे। उन्होंने एक बयान में कहा कि हम इंजीनियर रशीद का समर्थन करना चाहते हैं अगर वह चाहें तो। कल तक जब मैं विधायक था तो यह लोग मुझ पर कई आरोप लगाते थे।अब उनका मुझे समर्थन देना, मेरी नैतिक जीत है। मैंने तीन मुद्दों पर उनके साथ समझौता किया है, हिंसा और बंदूक की संस्कृति का बिल्कुल साथ नहीं देना है। कश्मीर मसले के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सभी को एकजुट होना है। जब तक कश्मीर मसला हल होता है, तब तक कश्मीर की विधानसभा में अच्छे लोग भेजने हैं जो सुशासन भी दें और लोगों की भावनाओं पर बात भी करें। इसके अलावा मेरे साथ उनका कोई समझौता या एजेंडा नहीं है।
9. आप पर भाजपा के एजेंट होने का आरोप है?
मुझे यहां आरएसएस और भाजपा का एजेंट बताया जा रहा है, लेकिन मैं किसी का एजेंट नहीं हूं। फारूक साहब आप राजनीति को इतना नीचे मत गिराइए। पूरी दुनिया उनके बारे मे जानती है। राजनीतिक दलों का एक व्यक्तित्व होता है। जब फारूक साहब कहते हैं कि इंजीनियर रशीद आरएसएस का बंदा है तो हंसी भी आती हैं।मैं मुस्लिम हूं और इस्लाम में बताया गया है कि हमें दूसरों के धर्म की भी इज्जत करनी चाहिए, वह मैं करता हूं। फारूक अब्दुल्ला के घर में तो मुगल बादशाह अकबर का दीन-ए-इलाही चलता है। पूरे मुल्क में वही एक मुस्लिम नेता हैं जो मंदिरों में जाकर माथा टेकते हैं, भजन गाते हैं। इसलिए आरएसएस का एजेंट वह हैं या मैं।
10. क्या आपको लोगों की सहानुभूति मिल रही है?
मेरे खिलाफ कभी भी मतदाताओं में नाराजगी नहीं रही है। वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव मैं मात्र 24 हजार वोटों से हारा था। इस बार ढाई लाख वोट से जीत दर्ज की।मेरे पक्ष में जो लोग रैलियों में आ रहे हैं, वह कोई सहानुभूति नहीं, बल्कि यहां आम कश्मीरियों को पता है कि मैं भी उनमें से एक हूं, जो सिर्फ उनकी बात करता है, इंसानियत की बात करता है, सच बोलता है। मैं उनकी आवाज बनता आया हूं, इसलिए वह मेरे साथ हैं।पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाया गया तो उससे पहले फारूक साहब, महबूबा मुफ्ती और कई अन्य नेताओं के साथ एक बैठक हुई थी। सभी कह रहे थे कि अनुच्छेद 370 हटाना हमें मंजूर नहीं है।मुझे समझ नहीं आता कि मुझे चार अगस्त 2019 को ही गिरफ्तार कर तिहाड़ भेज दिया गया। यह सब क्यों हुआ, यह यहां सब अच्छी तरह जानते हैं। कश्मीरी अब मूर्ख नहीं रहा। नेताओं को मुगालता होगा, आम लोगों को नहीं।
11. केंद्र सरकार कह रही है कि अनुच्छेद 370 बहाल नहीं हो सकता और आप इसे बहाल करने के लिए आंदोलन की बात कर रहे हैं। आपका रोडमैप क्या है?
फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती या अन्य लोगों ने पांच साल तक इस मुद्दे पर कुछ भी व्यावहारिक नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करना, वहां लड़ना तो कानूनविदों का काम है। राजनीतिक लोगों का काम होता है, राजनीतिक लड़ाई लड़ना, आम जनमानस को तैयार करना। इन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया।आपको कृषि कानून याद होंगे, किसान सड़कों पर उतर आए और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उन्हें वापस लेने का एलान करना पड़ा। फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती सभी केंद्र के एजेंट हैं।मैं अगर जीता तो साथी विधायकों संग न सिर्फ सदन के भीतर बल्कि सदन के बाहर भी आंदोलन चलाऊंगा। दिल्ली की सड़कों पर आंदोलन ले जाऊंगा। हिंदुस्तान में लोगों को पता ही नहीं है कि कश्मीर मसला क्या है, वह इसे सिर्फ एक आतंकी हिंसा का मसला मानते हैं
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