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Jammu Kashmir Weather Update: बढ़ रहे तापमान में सिमटते जा रहे कश्मीर के ग्लेशियर, गर्मी ने तोड़ा था 25 साल का रिकॉर्ड

इस साल पड़ी भीषण गर्मी ने कश्मीर के ग्लेशियरों (Glaciers of Kashmir) को सिमटा दिया है। कोलाहाई समेत अधिकांश ग्लेशियर पिछले 40 वर्षों में 28 प्रतिशत से अधिक सिकुड़ गए है। इसका एक कारण सर्दियों में पर्याप्त बर्फबारी नहीं होना भी है। मौसम विज्ञानियों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन ने कश्मीर के मौसम को प्रभावित किया है।

By Jagran News Edited By: Rajiv Mishra Updated: Fri, 12 Jul 2024 07:31 AM (IST)
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जलवायु परिवर्तन से पिघल रहे हैं कोवाहाई के ग्लेशियर

रजिया नूर, श्रीनगर। जम्मू ही नहीं, कश्मीर में भी इस बार भीषण गर्मी ने रिकार्ड तोड़े हैं। जुलाई 1999 के बाद 25 वर्षों में सात जुलाई को 35.7 डिग्री सेल्सियस के साथ श्रीनगर सबसे गर्म रहा। फरवरी के आखिर में भी उतनी सर्दी नहीं पड़ी, जिनकी कि अमूमन होती है। यहां तक कश्मीर में से पहले पौधे जाग उठे।

मौसम की इस बेरुखी का ग्लेशियर पर प्रतिकूल असर हो रहा है। कोलाहाई समेत अधिकांश ग्लेशियर, जिनके दम पर पूरी घाटी की प्यास बुझती है, फसलें पनपती हैं, बीते 40 वर्ष में अपने वजूद का 28 प्रतिशत से अधिक हिस्सा खो चुके हैं।

ग्लोबल वार्मिंग ने ग्लेशियरों को जिंदा रहने की दी है चुनौती

विज्ञानियों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन ने ग्लेशियरों को जिंदा रहने की चुनौती दी है। कश्मीर न केवल अपनी सुंदरता, बल्कि सुहाने और संतुलित मौसम के लिए भी पूरे विश्व में मशहूर है। यहां सर्दी (अक्टूबर अंत से मार्च महीने के अंत तक) में तापमान के सामान्य से नीचे बने रहने के बीच बर्फबारी होती थी।

अप्रैल में लोग बहार के मौसम, जबकि जून से अगस्त में गर्मी के मौसम में तापमान 28-30 डिग्री सेल्सियस रहता है। अलबत्ता बीते कुछ वर्षों से यह सब अस्तव्यस्त हो गया है।

इस साल कश्मीर में फरवरी के आखिर में उतनी सर्दी नहीं पड़ी, जिनकी कि अमूमन होती है। इसका परिणाम यह निकला कि पौधे समय से पहले जाग उठे। मौसम की इस बेरुखी का ग्लेशियर पर प्रतिकूल असर हो रहा है।

मौसम में दिखे चौंका देने वाले परिवर्तन

सर्दी के मौसम में पर्याप्त बर्फबारी न होना और जनवरी- फरवरी में तापमान सामान्य से ऊपर चले जाने तथा मई जून में इसमें सामान्य से नीचे चले जाने जैसे चौंका देने वाले परिर्वतन दिखे। कश्मीर विश्विविद्यालय के भू सूचना विज्ञान विभाग के प्रोफेसर शकील अहमद रमशू ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन ने प्रत्यक्ष व परोक्ष दोनों रूप से कश्मीर के मौसम को प्रभावित कर दिया है।

उन्होंने कहा कि विश्व स्तर पर औद्योगिक क्रांति ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है। घाटी में उद्योग नहीं हैं, किंतु विश्व स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग का सीधा प्रभाव कश्मीर घाटी के मौसम पर भी पड़ा है।

भूमध्य सागर से उठने वाला पश्चिमी विक्षोभ ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन कश्मीर के वायुमंडल को प्रभावित करने में अहम भूमिका निभाता है। यही कारण है कि यदि बीते 20-25 वर्षों में विश्व स्तर पर तापमान एक से दो डिग्री बढ़ा है तो इसकी आंच कश्मीर के ग्लेशियरों पर भी पड़ रही है।

नदी-नालों का जलस्तर गिरा

प्रोफेसर शकील ने बताया कि हिमालय की गोद में कश्मीर के सबसे विशाल कोलाहाई ग्लेशियर 1962 से अब तक 23 प्रतिशत तक सुकड़ गया है। यह ग्लेशियर कश्मीर की जीवन रेखा झेलम नदी का जलस्रोत है।

इस ग्लेशियर के पिघलने से इससे बनने वाले दो प्रमुख नालों लिद्दर व सिंधु नाले में पानी का स्तर घट गया है। ये दोनों नाले झेलम में गिरते हैं।

घाटी के 147 ग्लेशियरों की समीक्षा की गई

प्रोफेसर शकील ने सेटेलाइट आब्जर्व्ड ग्लेशियर इन द कश्मीर हिमालया, इंडिया 1980-2018 नाम से एक शोध का जिक्र करते हुए कहा कि इस शोध के तहत कोलाहाई समेत घाटी के 147 ग्लेशियरों की समीक्षा की गई। इसमें पाया गया कि 1980 से 2018 तक कोलाहाई ग्लेशियर 28.82 प्रतिशत तक सुकड़ गया।

छोटे ग्लेशियरों की स्थिति तो और भी नाजुक है। उन्होंने बताया कि शोध में पाया गया है कि कश्मीर के ग्लेशियर हिमालय शृंखला के अन्य ग्लेशियरों की तुलना में ज्यादा तेजी से पिघले हैं।

जो ग्लेशियर समुद्र तल से 4200 व 4400 मीटर ऊंचाई हैं, वह तो और भी अधिक ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं। यदि इसके समाधान के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई तो भविष्य में इसके घातक परिणाम निकल सकते हैं।

...यह हैं कारण और निवारण

  • उपजाउ व कृषि जमीन पर निर्माण करना।
  • उद्योग के नाम पर प्रकृति के साथ खिलवाड़ बंद की जाए।
  • विकास को प्रकृति के अनुकूल बनाने जैसे उपायों की जरूरत है।
  • स्थानीय स्तर पर ग्लेशियरों का संरक्षण कर सकते।
  • वनों के अंधाधुंध कटाव को रोकना होगा।
  • उपजाऊ या कृषि योग्य भूमि पर अतिक्रमण बंद करना होगा।
  • ग्लेशियरों के इर्द गिर्द मानव हस्तक्षेप को भी कम करना है।
  • ग्लेशियरों के इर्द गिर्द मानव गतिविधि सीमित करना।
  • खुद की जमीन पर पेड़-पौधे लगाए जाएं।

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पर्यावरण संरक्षण के लिए यह कर रहा प्रशासन

पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रशासन बड़े-बड़े दावे कर रहा है, लेकिन जमीनी स्तर पर पर्यावरण दिवस पर समारोहों का आयोजन तक ही यह समिति रहता है। बता दें कि इस वर्ष पूरे देश के साथ साथ घाटी में भी पर्यावरण दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा एक पेड़ मां के नाम विषय से एक अभियान चलाया गया।

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