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अमरनाथ धाम में विराजमान हिम शिवलिंग पर भी जलवायु परिवर्तन का असर, धर्मगुरुओं ने कही ये बात

जलवायु परिवर्तन का असर कश्मीर के मौसम पर भी पड़ा है। यही कारण है कि दक्षिण कश्मीर में समुद्रतल से लगभग 3888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित श्री अमरेश्वर धाम में विराजमान हिम शिवलिंग पर भी मौसम का प्रभाव पड़ा है। अमरनाथ यात्रा शुरू होने के एक सप्ताह में ही हिम शिवलिंग पिघल गया। हालांकि धर्मगुरु ने कहा कि हिम शिवलिंग से ज्यादा पवित्र गुफा का महत्व है।

By Jagran News Edited By: Jeet Kumar Updated: Sun, 07 Jul 2024 06:00 AM (IST)
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जलवायु परिवर्तन का हिम शिवलिंग पर भी पड़ा है

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। जलवायु परिवर्तन का असर कश्मीर के मौसम पर भी पड़ा है। यही कारण है कि दक्षिण कश्मीर में समुद्रतल से लगभग 3888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित श्री अमरेश्वर धाम में विराजमान हिम शिवलिंग पर भी मौसम का प्रभाव पड़ा है। अमरनाथ यात्रा शुरू होने के एक सप्ताह में ही हिम शिवलिंग पिघल गया।

इसी बीच, विभिन्न धर्मगुरुओं ने कहा कि श्री अमरेश्वर धाम जिसे श्री अमरनाथ जी की पवित्र गुफा पुकारा जाता है, में पवित्र हिम शिवलिंगका निस्संदेह अपना महत्व है, लेकिन उससे ज्यादा पवित्र गुफा का है। क्योंकि भोले बाबा ने इसी गुफा का चयन कर अमरत्व की कथा सुनाई थी।

अमरनाथ यात्रा ईसा पूर्व एक हजार वर्ष पहले से जारी

इतिहासकारों का मत है कि यह तीर्थयात्रा ईसा पूर्व एक हजार वर्ष पहले से जारी है। यह तीर्थयात्रा श्रावण माह में शुरू होकर श्रावण पूर्णिमा के दिन संपन्न होती है। कुछ वर्षों से इस तीर्थयात्रा की समयावधि बढ़ाते हुए इसे श्रावण माह से लगभग 20-25 दिन पहले शुरू किया जा रहा है। पवित्र गुफा में भगवान शंकर, मां पार्वती, भगवान गणेश सहित संपूर्ण शिव परिवार हिमलिंग स्वरूप में विराजमान होते हैं। भगवान शंकर का प्रतीक पवित्र हिमलिंग आकार में सबसे विशाल होता है। कई बार उनकी ऊंचाई 10 फीट से भी ज्यादा होती है।

अमरकथा सुनाने के लिए इसी गुफा का किया था चयन

श्री अमरेश्वर धाम की पवित्र छड़ी मुबारक के संरक्षक और दशनामी अखाड़ा के महंत दीपेंद्र गिरि के अनुसार, यह सही है कि पवित्र गुफा में हिम¨लग स्वरूप में विराजमान भगवान शंकर के दर्शन की प्रत्येक श्रद्धालु की इच्छा होती है। मगर मान्यताओं और धर्मग्रंथों के अनुसार, स्थान का महत्व अधिक है। भगवान शंकर ने मां पार्वती को अमरकथा सुनाने के लिए इसी पवित्र गुफा का चयन किया है, इसलिए यह महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। वह कोई और स्थान भी चुन सकते थे, लेकिन उन्हें अमर कथा सुनाने के लिए इससे श्रेष्ठ स्थान नहीं मिला था।

इससे पहले भी हिमलिंग पिघल चुके हैं

श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के एक अधिकारी ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा कि यह कोई पहला अवसर नहीं है जब हिमलिंग स्वरूप में विराजमान होने वाले भगवान शंकर तीर्थयात्रा के संपन्न होने से पहले पिघल गए हों। वर्ष 2004 में तीर्थयात्रा लगभग एक माह की थी और 15 दिन में भगवान विलुप्त हो गए थे। वर्ष 2013 में 22 दिन में, वर्ष 2016 में 13 दिन, वर्ष 2006 में यात्रा शुरू होने से पहले ही पवित्र गुफा में हिमलिंग स्वरूप शंकर भगवान विलुप्त हो गए थे।

हिम शिवलिंग पर किया था अध्ययन

श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड से संबंधित रहे सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा कि वर्ष 2006 में यात्रा शुरू होने से पहले ही हिम शिवलिंग विलुप्त होने को लेकर विवाद पैदा हुआ था। इसके बाद बोर्ड के आग्रह पर सेना के हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल और स्नो एंड एवलांच स्टडीज इस्टेब्लिशमेंट (सासे) ने पवित्र गुफा में हिम शिवलिंग को लेकर अध्ययन किया था।

पवित्र गुफा के आसपास मानवीय गतिविधियां

मौसम में बदलाव, पवित्र गुफा के आसपास के तापमान में बढ़ोतरी, पवित्र गुफा में श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या, पवित्र गुफा के आसपास मानवीय गतिविधियों में वृद्धि बड़ा कारण है। अध्ययन में बताया था कि प्रत्येक श्रद्धालु पवित्र गुफा में लगभग 100 वाट ऊर्जा उत्सर्जित करता है। तीर्थयात्रा के समय पवित्र गुफा में एक समय में लगभग 250 श्रद्धालु रहते हैं। पवित्र गुफा में वेंटिलेशन लोड भी लगभग 36 किलोवाट है। समय से पूर्व बड़ी संख्या में अनाधिकृत श्रद्धालु, पवित्र गुफा और यात्रा मार्ग पर सेवा प्रदात्ता, सुरक्षाबल भी पवित्र गुफा में दर्शन के लिए आते हैं। इससे भी असर होता है।

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