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उमर अब्दुल्ला के लिए अपना एजेंडा लागू करना आसान नहीं, सरकार की असली चाबी LG के पास

जम्मू-कश्मीर में नई सरकार के लिए अपना एजेंडा लागू करना आसान नहीं होगा। सरकार की असली चाबी उपराज्यपाल प्रशासन के पास है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद उपराज्यपाल प्रशासन ने शहीदी दिवस दरबार मूव शेख अब्दुल्ला की जयंती पर अवकाश और शेर-ए-कश्मीर पुलिस पदक को रद्द कर दिया था। क्या उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में बन रही सरकार इन फैसलों को फिर से बहाल करा पाएगी?

By naveen sharma Edited By: Rajiv Mishra Updated: Sun, 13 Oct 2024 07:56 AM (IST)
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नई सरकार के लिए अपना एजेंडा लागू करना आसान नहीं (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद फिर से चुनी हुई सरकार आ गई है। नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) गठबंधन के साथ सरकार बनाने जा रही है। ऐसे में सभी की नजर इस पर टिकी हुई हैं कि क्या उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में बन रही सरकार शहीदी दिवस, दरबार मूव बहाल करा पाएंगे, क्या शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की जयंती पर रद्द अवकाश फिर से लागू करेंगे, क्या शेर-ए-कश्मीर पुलिस वीरता पदक व शेर-ए-कश्मीर पुलिस उत्कृष्ट सेवा पदक भी फिर से मिलेगा या नहीं?

सरकार की असली चाबी उपराज्यपाल के पास

चुनाव प्रचार के दौरान नेकां ने दशकों तक चले कई निर्णय को फिर से बहाल करने का जनता को विश्वास दिलाया था। ऐसे में संभवता बुधवार को बनने जा रही नई सरकार के लिए अपना एजेंडा लागू करना आसान नहीं होगा। क्योंकि सरकार की असली ‘चाबी’ उपराज्यपाल प्रशासन के पास है। बता दें कि इन फैसलों को अनुच्छेद 370 हटने के बाद उपराज्यपाल प्रशासन ने रद्द कर दिया था।

13 जुलाई को मनाया जाता था शहीदी दिवस

पांच अगस्त 2019 से पूर्व जम्मू-कश्मीर में हर वर्ष 13 जुलाई को शहीदी दिवस मनाया जाता था। पूरे प्रदेश में राजकीय अवकाश रहता था। शहीदी दिवस कश्मीर में 13 जुलाई 1931 को महाराजा हरि सिंह के खिलाफ हुए कथित विद्रोह में मारे गए लोगों की याद में मनाया जाता था।

पांच दिसंबर को शेख अब्दुल्ला जिन्हें शेर-ए-कश्मीर कहा जाता है, की जयंती होती है। नेकां ने सत्ता में रहते उनकी जयंती पर राजपत्रित अवकाश घोषित किया था। उनके नाम पर वीरता और उत्कृष्ट सेवाओं के लिए दिए जाने वाले पदकों का नामकरण किया था।

उपराज्यपाल ने हटा दिया था शेर-ए-कश्मीर का नाम

जनवरी 2020 में उपराज्यपाल प्रशासन ने पुलिस अधिकारियों को उनकी वीरता व उत्कृष्ट सेवाओं के लिए दिए जाने वाले पदक से शेर-ए-कश्मीर का नाम और उनकी तस्वीर को हटा दिया। शहीदी दिवस और शेख अब्दुल्ला की जयंती का अवकाश समाप्त कर दिया। दरबार मूव (सचिवालय स्थानांतरण छह माह कश्मीर-छह माह जम्मू) परंपरा जो सरकारी खजाने पर अनावश्यक बोझ बनी हुई थी, समाप्त कर दिया गया।

बिलाल बशीर ने कही ये बात

कश्मीर मामलों के जानकार बिलाल बशीर ने कहा कि शेख अब्दुल्ला से संबंधित अवकाश और पदकों के मामले में आप किसी हद तक कह सकते हैं कि यह आम कश्मीरी से ज्यादा नेकां को प्रभावित करते हैं, लेकिन दरबार मूव की मांग जम्मू में विशेषकर भाजपा का गढ़ माने जाने वाले जम्मू शहर में भी हो रही है।

उमर के लिए यह सब करना आसान नहीं है। वह सिर्फ सिफारिश कर पाएंगे, इससे ज्यादा कुछ नहीं। रमीज मखदूमी ने कहा कि मौजूदा परिस्थिति में मुख्यमंत्री कोई भी बड़ा प्रशासनिक निर्णय स्वेच्छा से लागू नहीं कर पाएंगे। उन्हें उपराज्यपाल की सहमति लेनी होगी। जब तक उपराज्यपाल नहीं चाहेंगे रद्द अवकाश बहाल नहीं हो पाएंगे और न शेर-ए-कश्मीर पुलिस पदक फिर से बनेगा।

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इन पर टिकी नजरें

  • क्या शहीदी दिवस और दरबार मूव बहाल करा पाएंगे
  • क्या शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की जयंती पर अवकाश लागू करेंगे
  • क्या फिर से शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के नाम से पदक मिलेंगे

अनुमति लेकर करना होगा काम

उमर अब्दुल्ला जनवरी 2009 से जनवरी 2015 तक मुख्यमंत्री रहे थे। उस समय जम्मू-कश्मीर एक राज्य था। जम्मू-कश्मीर का अपना खुद का संविधान था। अब जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है। उमर राज्यपाल के मंजूरी और अनुमति लिए बगैर नहीं कर पाएंगे।

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