जम्मू-कश्मीर में अपने बूते सरकार बनाना किसी दल के लिए नहीं आसान, पार्टियों ने निर्दलीयों का मन टटोलना किया शुरू
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद भाजपा के अलावा नेकां-कांग्रेस गठबंधन भी सरकार बनाने का दावा कर रहा है पर राजनीतिक और क्षेत्रीय समीकरणों के मद्देनजर अपने बूते सरकार बनाना किसी भी दल के लिए आसान नहीं दिखता। बड़े दलों ने निर्दलीयों का मन टटोलना आरंभ कर दिया है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा ने हर स्थिति के लिए अपनी तैयारी कर ली है।
नवीन नवाज, जागरण, श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद भाजपा के अलावा नेकां-कांग्रेस गठबंधन भी सरकार बनाने का दावा कर रहा है, पर राजनीतिक और क्षेत्रीय समीकरणों के मद्देनजर अपने बूते सरकार बनाना किसी भी दल के लिए आसान नहीं दिखता। संभव है कि आठ अक्टूबर को मतगणना के बाद सत्ता कि कुंजी छोटे दल व निर्दलीयों के हाथ न आ जाए। बड़े दलों ने निर्दलीयों का मन टटोलना आरंभ कर दिया है।
प्रदेश के राजनीतिक, क्षेत्रीय और सामाजिक समीकरणों के बीच कुछ दलों के एक-दूसरे के साथ आने में कुछ चुनौतियां हो सकती हैं, पर इतिहास पर गौर करें तो कुछ भी असंभव नहीं दिखता है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा ने हर स्थिति के लिए अपनी तैयारी कर ली है।
मतदान के अंतिम क्षण तक समीकरण बनते-बदलते रहे
दरअसल, इस बार कई दलों की भागीदारी और निर्दलीयों के मैदान में उतरने से मतदान के अंतिम क्षण तक समीकरण बनते-बदलते रहे। कश्मीर में इंजीनियर रशीद ओर प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के नेताओं के मैदान में उतरने से कई दलों के समीकरण प्रभावित भी हुए।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर के 90 में 43 विधानसभा क्षेत्र जम्मू संभाग और 47 कश्मीर में हैं। 2014 के विस चुनाव में भाजपा ने 25 सीटें जीती थीं और सभी जम्मू संभाग में थीं। इनमें से 18 सीटें जम्मू, कठुआ, सांबा और ऊधमपुर की थीं। उस समय इन चार जिलों मे 21 विधानसभा क्षेत्र थे, अब 24 हैं।
इन क्षेत्रों पर अब बड़ा दांव
गुज्जर-बक्करवाल और पहाड़ी समुदाय समेत अनुसूचित जनजातियों के लिए राजनीतिक आरक्षण का प्रविधान कर भाजपा ने जम्मू संभाग के मुस्लिम बहुल इलाकों में सेंध लगाने का प्रयास किया था, लेकिन लोकसभा चुनावों में यह सार्थक होता नहीं दिखा।
कश्मीर में भाजपा एक-दो सीटों पर ही प्रभावी नजर आई है। कश्मीर में नेकां स्वयं को मजबूत बताती है, पर नए समीकरणों में उसके समक्ष भी चुनौती बढ़ी है। जम्मू में कांग्रेस कितनी सीटें जीत पाएगी, वही पार्टी की राह तय करेगा।
अपनी पार्टी और पीसी भी दूर खड़े
कश्मीर में भाजपा के सहयोगी माने जाने वाली जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी और पीपुल्स कान्फ्रेंस के नेता लोकसभा चुनाव तक भाजपा से अपने संबंधों को नहीं छिपाते थे, पर अब वह भाजपा से दूर नजर आते हैं। उम्मीद नहीं कि दोनों दल इतनी सीटें जीत सकें कि भाजपा को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक ले जाएं।