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लोकतंत्र की जीत और अलगाववाद की हार का प्रतीक है यह चुनाव, वोटर्स ने पाकिस्तान को भी दिखाया ठेंगा

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव (Jammu Kashmir Assembly Elections) में रिकॉर्ड मतदान हुआ है। तीनों चरणों में लगभग 64 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। यह चुनाव जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की जीत और अलगाववाद की हार का प्रतीक है। विधानसभा चुनाव में भाजपा कांग्रेस नेकां पीडीपी सहित सभी प्रमुख दलों ने चुनाव में भाग लिया। चुनाव परिणाम 8 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे।

By Jagran News Edited By: Rajiv Mishra Updated: Wed, 02 Oct 2024 07:45 AM (IST)
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लोकतंत्र के एक नए युग का सूत्रपात है यह चुनाव
नवीन नवाज, श्रीनगर। पांच अगस्त 2019 को जिस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संसद में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को पारित किया गया था,वह लक्ष्य पांच वर्ष बाद केंद्र शासित जम्मू कश्मीर में विधानसभा के गठन के लिए तीन चरणों की मतदान प्रक्रिया के दौरान सिद्ध होता नजर आया। 1987 के बाद पहली बार जम्मू कश्मीर में किसी भी जगह पुनर्मतदान नहीं कराना पड़ा है, आतंकी हिंसा और अलगाववादियों का चुनाव बहिष्कार तो दूर, कानून व्यवस्था की स्थिति भी कहीं पैदा नहीं हुई ।

मतदाताओं ने पाकिस्तान को भी दिखाया ठेंगा

मतदाताओं ने पूरे उत्साह के साथ मतदान में भाग लिया और सभी मुद्दों का समाधान मतदान में बताते हुए जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र के एक नए युग के सूत्रपात का संदेश सारी दुनिया को सुनाते हुए, कश्मीर में आतंकी हिंसा, अलगाववाद, आजादी और जिहादी नारों के संरक्षक पाकिस्तान को भी ठेंगा दिखा दिया। यह एक ऐतिहासिक चुनाव है जो जम्मू कश्मीर के समग्र परिदृश्य को एक नयी दिशा देगा।

आर्टिकल 370 हटने के बाद पहला चुनाव

केंद्र शासित जम्मू कश्मीर में यह पहला विधानसभा चुनाव है। इससे पूर्व जम्मू कश्मीर में अंतिम बार विधानसभा चुनाव 2014 में हुए थे। उस समय जम्मू कश्मीर में दो विधान दो निशान की व्यवस्था की संरक्षक, अलगाववाद और आतंकी हिंसा के पारिस्थिति तंत्र को मजबूती देने वाला अनुच्छेद 370 और 35ए पूरी तरह प्रभावी था।

370 के समर्थकों ने भी बढ़-चढ़ कर लिया हिस्सा

मौजूदा विधानसभा चुनाव प्रक्रिया में मतदाताओं की भागीदारी ने उन ताकतों को भी हमेशा के लिए चुप कराया दिया है,जो कहते थे कि अनुच्छेद 370 के साथ छेड़खानी करने पर कश्मीर में भारतीय संविधान का नाम लेने वाला तो दूर, तिरंगा थामने के लिए कोई कंधा भी नहीं होगा। यह वह चुनाव है,जिसमें अनुच्छेद 370 के समर्थक भी भारतीय संविधान में ही अपनी उम्मीदों और आकांक्षाओं की पूर्ति की उम्मीद जताते हुए वोट मांगने निकले। कश्मीर बनेगा पाकिस्तान को जो नारा देते थे, चुनाव को गैर इस्लामिक बताते थे, वह भी मुख्यधारा की डुबकी लेते नजर आए।

तीनों में चरणों में इतना रहा मतदान प्रतिशत

90 सीटों पर हुए भाग्य आजमा रहे 873 उम्मीदवारों के लिए लगभग 64 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। मौजूदा विधानसभा चुनाव में प्रदेश में 88.23 लाख मतदाताओं में लगभग 56 लाख मतदाताओं ने वोट डाला है। पहले चरण में 61.38,दूसरे चरण 57.31 और तीसरे व अंतिम चरण में लगभग 69 प्रतिशत मतदान हुआ है।

महिला उम्मीदवारों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2014 की तुलना में मौजूदा विधानसभा चुनाव में भाग लेने वाले उम्मीदवारों की संख्या में सात प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पिछले विधानसभा चुनाव में 28 महिला उम्मीदवार थी जो बढ़कर 43 हो गई हैं। निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या में पिछले चुनाव की तुलना में 26 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है जो चुनावी परिदृश्य और जमीनी स्तर पर राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाया है।

यह पहले से अधिक समावेशी और भागीदारी वाला चुनाव

पहली बार जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए नौ सीटें आरक्षित रही हैं जबकि अनुसूचित जातियों के लिए सात सीटें आरक्षित हैं। इसके अलावा वाल्मिकी, गुरखा, भारत पाक विभाजन के समय पश्चिमी पाकिस्तान से आकर बसे नागरिकों ने भी पहली बार मतदान किया है,जिसके जिसके परिणामस्वरूप यह चुनाव पहले से अधिक समावेशी और भागीदारी वाला है। वर्ष 2014 में 138 जीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) ने भाग लिया जबकि मौजूदा चुनाव में इनकी संख्या 236 रही है। आरयूपीपी की भागीदारी में 71 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि जम्मू कमीर में लोकतंत्र की गहराती मजबूत जड़ों की पुष्टि करती है। विभिन्न दलों द्वारा प्रचार के लिए, राज्य एमसीएमसी द्वारा अभियान सामग्री के पूर्व-प्रमाणन के लिए कुल 330 अनुरोध प्राप्त हुए, जबकि 2014 के एलए चुनावों में 27 अनुरोध प्राप्त हुए थे।

संवेदनशील इलाकों में भी रात भर हुआ प्रचार

मौजूदा चुनाव प्रक्रिया के दौरान कश्मीर में कई जगह प्रत्याशियों ने रात भर चुनाव प्रचार किया और यह चुनाव हंदवाड़ा, कुपवाड़ा, सोपोर, कुलगाम और शोपियां जैसे इलाकों में हुआ जहां पहले दिन में भी चुनाव प्रचार करने की हिम्मत कोई नहीं जुटाता था। चुनाव प्रक्रिया के साथ अगर कोई जुड़ता तो उसे मस्जिद में सार्वजनिक तौर पर माफी मांगनी पड़ती थी।

पीएम मोदी ने 10 साल में पहली बार कश्मीर में की रैली

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी बीते 10 वर्ष में पहली बार कश्मीर मे कोई चुनावी रैली की। राहुल गांधी ने अनंताग, श्रीनगर और सोपोर जैसे संवेदनशील कस्बे में चुनावी रैलियां की। केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिह समेत भाजपा के कई वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री गुरेज, कुपवाड़ा समेत विभिन्न इलाकों में मतदाताओं के बीच नजर आए।

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जम्मू में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला

हरेक दल इस चुनाव में अपनी जीत के लिए जोर लगाता नजर आया। कांग्रेस-नेकां के बीच गठजोड़ हुआ तो भाजपा की ए और बी टीम कहे जाने वाले क्षेत्रीय दल उसके साए से बाहर आने को छटपटाते नजर आए। जम्मू में जहां भाजपा बनाम कांग्रेस रहा तो कश्मीर में पूरी तरह से बहुकोणीय मुकाबले में भाजपा को कश्मीर से बाहर करने, कश्मीर मसले के शांति पूर्ण समाधान,विकास, रोजगार और अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर राजनीति हुई।

लोकतंत्र का गुणगान करती दिखी जमात-ए-इस्लामी

भाजपा अपने विरोधियों को हराने के लिए नया कश्मीर का इमारत तैयार करने का एलान करते हुए यही जताने का प्रयास करती रही है कि लोग खुश हैं, पथराव बंद हो गया है और आतंकी हिंसा अतीत की बात है। भाजपा पर उसके राजनीतिक विरोधियों ने जो प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी को प्रतिबंध मुक्त करने के समर्थक भी हैं, प्रतिबंधित जमाते इस्लामी को कश्मीर में बढ़ावा देने, टेरर फंडिंग के आरोपित सांसद इंजीनियर रशीद की पर्दे के पीछे मदद करने का भी आरोप लगाया। प्रतिबंधित जमात-ए- इस्लामी जो चुनाव बहिष्कार का हिस्सा रही है, वह अब लोकतंत्र का गुणगान करती दिखी है। इन चुनावों में पीडीपी में मुफ्ती खानदान की सियासत की विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उठाती इल्तिजा मुफ्ती भी नजर आयी।

सैयद अमजद शाह ने कही ये बात

जम्मू कश्मीर मामलों के जानकार सैयद अमजद शाह ने कहा कि अगर वर्ष 1987 के चुनाव को यहां कई लोग जम्मू कश्मीर में आतंकी हिंसा और अलगाववाद के लिए जिम्मेदार मानते हैं, तो मौजूदा चुनाव जम्मू कश्मीर में एक बार फिर स्थानीय लोगों की भारतीय लोकतंत्र ,भारतीय संविधान में आस्था की पुष्टि करता है।

उन्होंने कहा कि आपको मतदान के प्रतिशत की गहराइयों में जाने के बजाय पूरी चुनाव प्रक्रिया को लेकर आम लोगों के रवैये को समझना चाहिए। इस चुनाव में कहीं भी अलगाववाद का भाव नहीं था, अगर कश्मीर मसले की बात किसी ने उठाई या किसी नेअनुच्छेद 370 की पुनर्बहाली की बात की है तो उसने यही कहा कि यह सब भारतीय संविधान और लोकतंत्र की देन है। अगर हमसे छीना गया है तो हमें मिलेगा भी भारतीय लोकतंत्र से और वह भी चुनावी प्रक्रिया से।

आपको शायद ध्यान होगा कि 16 अगस्त को जब मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव का एलान किया थ तो उन्होंने कहा था कि दुनिया जल्द ही जम्मू कश्मीर में नापाक और शत्रुतापूर्ण षडयंत्रों की विफलता और लोकतंत्र की जीत का गवाह बनेगी। उन्होंने गलत नहीं कहा था,यह चुनाव जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र का एक नया सूर्याेदय है।

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