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Jammu Kashmir Exit Poll: जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस की ताकत बढ़ी, भाजपा अपना गढ़ बचाने में रही कामयाब

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल (Jammu Kashmir Exit Poll) के नतीजे आ गए हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस पूरे प्रदेश में बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी है जबकि भाजपा अपने गढ़ को बचाकर खुद को जम्मू का बड़ा चैंपियन बनाए रखने में कामयाब बता रही है। इन नतीजों ने जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक-सामाजिक और क्षेत्रीय विषमताओं को उजागर किया है।

By naveen sharma Edited By: Rajiv Mishra Updated: Sun, 06 Oct 2024 09:37 AM (IST)
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एग्जिट पोल में नेकां-कांग्रेस को बढ़त (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल (Jammu Kashmir Election Exit Poll) के नतीजे शनिवार को आ गए हैं। इनके मुताबिक नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) पूरे प्रदेश में बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी है, लेकिन भाजपा फिर अपने गढ़ को बचाकर खुद को जम्मू का बड़ा चैंपियन बनाए रखने में कामयाब बता रही है। इन नतीजों ने जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक-सामाजिक और क्षेत्रीय विषमताओं को ही उजागर कर फिर स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर के हर क्षेत्र में अलग मुद्दा मायने रखता है।

इन पार्टियों को मिल सकती है इतनी सीटें

स्थानीय राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक, नेशनल कॉन्फ्रेंस 30-34 और कांग्रेस 10-13 सीटें लेती नजर आ रही हैं। भाजपा अधिकतम 27 सीटें ले सकती है। पीडीपी नौ से 10 सीटों तक जाएगी। अन्य के हिस्से चार से आठ सीटें आ सकती हैं।

उनके मुताबिक, भाजपा ने जम्मू की 43 और कश्मीर की 19 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। जम्मू में वह कठुआ, सांबा,जम्मू, उधमपुर में जहां हर सीट पर विरोधियों के मुकाबले 20 नजर आती है।

कई सीटों पर भीतरघात से बढ़ी मुश्किल

रियासी, राजौरी-पुंछ,रामबन-डोडा और किश्तवाड़ जहां मुस्लिम बहुसंख्य हैं, वह कुछेक सीटों पर प्रभावी होने के बावजूद प्रमुख विरोधियों नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के मुकाबले उन्नीस है। भाजपा को जम्मू में कई सीटों पर भीतराघात का सामना करना पड़ा।

रामनगर, उधमपुर पश्चिम, जम्मू पश्चिम, मढ़, छंब जैसी सीटों पर उसके अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ भाजपा अपने पुराने कई नेता जो टिकट न मिलने के कारण नाराज थे,मैदान में हैं।

ये मुद्दे भी भाजपा के लिए नुकसानदायक

बेशक जम्मू में अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के मुद्दे पर भाजपा को समर्थन प्राप्त है,लेकिन स्थानीय भाजपा नेताओं के प्रति जनमानस में अंसतोष, जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा न मिलना, उसके लिए नुकसानदायक साबित हुआ है। उसने जिस तरह से बार बार खानदानी सियासत को निशाना बनाया, उससे भी आम मतदाता चिढ़े थे।

कश्मीर में नहीं खुलता दिख रहा खाता

हालांकि कश्मीर प्रांत में भाजपा को सीट मिलती नजर नहीं आ रही है, लेकिन हब्बाकदल और गुरेज में उसकी संभावना को नहीं नकारा जा सकता। इसके अलावा जम्मू प्रांत के मुस्लिम बहुल जिलों में कांग्रेस नेकां गठजोड़ ने भी नुकसान पहुंचाया है।

कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस का गठजोड़ यह साबित करने में कामयाब रहा कि भाजपा कश्मीर और कश्मीरियों की दुश्मन है। वह कश्मीरियों को राजनीतिक रूप से कमजोर बनाना चाहती है,इसलिए उसने वोटों के विभाजन के लिए इंजीनियर रशीद, प्रतिबंधित जमात-ए- इस्लामी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और अपनी पार्टी को आगे बढ़ाया है।

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मतदाताओं को यह समझाने में कामयाब रही नेकां-कांग्रेस

कश्मीर में आम मतदाताओं को कांग्रेस-नेकां यह समझाने में कामयाब रही है कि अनुच्छेद 370 और 35 को सिर्फ इसलिए हटाया क्योंकि जम्मू कश्मीर एक मुस्लिम बहुल प्रदेश है। दूसरा ,जम्मू कश्मीर में अब बाहरी लोगों को रोजगार और नौकरी में प्राथमिकता मिलेगी। उनके लिए पहचान का संकट बन जाएगा।

उन्होंने अपने चुनाव प्रचार को जममू कश्मीर के लिए राज्य के दर्जे और अनुच्छेद 370 की पुनर्बहाली पर केंद्रित रखते हुए स्थानीय भावनाओं को उभारने का भी प्रयास किया। उसका फायदा भी उन्हें चुनाव में मिला।

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