कश्मीर में आतकंवाद और अलगाववाद की जननी और पोषक कही जाने वाले प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के चार पूर्व नेताओं ने चुनावी दंगल में उतरते हुए बतौर निर्दलीय अपना-अपना नामांकन जमा कराया।इनमें वर्ष 2016 के दौरान दक्षिण कश्मीर के शोपियां व कुलगाम में हिंसक प्रदर्शनों के आयोजन मे अहम भूमिका निभाने वाला सरजन बरकती उर्फ आजादी चाचा भी शामिल है। उसने जेल से अपना नामांकन जमा कराया है।
चुनाव में उतरे जमात-ए-इस्लामी से संबधित रहे निर्दलीय उम्मीदवारों ने लोगों से कहा है कि वह अपने जमीर की आवाज पर वोट करें।संसद हमले में सलिंप्तता के आधार पर फांसी की सजा पाने वाले आतंकी अफजल गुरु का भाई एजाज गुरु भी उत्तरी कश्मीर में सोपोर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तैयारी में है।
जम्मू कश्मीर में तीन चरणों में मतदान होने जा रहा है। पहले चरण में शामिल 24 सीटों में से 16 दक्षिण कश्मीर के चार जिलों में हैं और शेष आठ जम्मू प्रांत के डोडा-किश्तवाड़ और रामबन हैं। आज इन सीटों के लिए नामांकन का अंतिम दिन था।
अनुच्छेद 370 हटने के बाद बदले हालात
उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक परिस्थितियां बड़ी तेजी से बदली हैं। लोकसभा चुनाव में प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के कई नेता और कार्यकर्ता मतदान केंद्रों पर नजर आए। कई आतंकियों के स्वजन भी वोट डालने निकले थे।जमात-ए-इस्लामी ने 1987 तक जम्मू कश्मीर में चुनावी सियासत का हिस्सा रही है, लेकिन उसके बाद से इसने ही चुनाव बहिष्कार के अभियान को चलाया। कश्मीर में सक्रिय आतंकियों और अलगाववादियों का 95वें प्रतिशत कैडर जमात-ए-इस्लामी से ही प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से जुड़ा हुआ है।
जमात-ए-इस्लामी के नेताओं ने कई बार संकेत दिया कि अगर प्रतिबंध हटा तो वह विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। इस मुद्दे पर केंद्र और जमात के बीच एक बातचीत भी जारी है, लेकिन इसका नतीजा निकलने से पहले ही चुनाव आयोग ने चुनाव की घोषणा कर दी।अब जमात-ए-इस्लामी के कई पूर्व नेताओं निर्दलीय चुनाव में उतरना शुरू कर दिया है। इन सभी को जमात का समर्थन प्राप्त है। जमात-ए-इस्लामी ने कश्मीर में कई जगह अन्य दलों के प्रत्याशियों के समर्थन का भी यकीन दिलाया है।
यहां यह बताना असंगत नहीं होगा कि 1987 तक जमात-ए-इस्लामी ने जम्मू-कश्मीर में हुए लगभग हर विधानसभा चुनाव में भाग लिया है।जम्मू कश्मीर में 1972 में हुए विधानसभा चुनाव में जमात-ए-इस्लामी के 22 में से पांच, 1977 के विधानसभा चुनाव में 19 में एक प्रत्याशी ने जीत दर्ज की जबकि 1983 के चुनाव में इसने 26 उम्मीदवार मैदान में उतारे और सभी हार गए।अलबत्ता, 1987 में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के बैनर तले कश्मीर में सभी प्रमुख संगठनों ने नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठजोड़ के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे। फ्रंट के सिर्फ चार उम्मीदवार जीते थे और यह सभी जमात-ए-इस्लामी से संबंधित थे। इनमें से तीन दक्षिण कश्मीर से ही जीते थे।
'हमें अतीत में नहीं वर्तमान में जीना चाहिए'
जमात-ए-इस्लामी के पूर्व नेता तलत मजीद ने आज पुलवामा विधानसभा क्षेत्र के लिए बतौर निर्दलीय अपना नामांकन जमा कराया।उन्होंने दैनिक जागरण के साथ फोन पर बातचीत में कहा कि मौजूदा वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए,जम्मू कश्मीर में जो हालात हैं, उन्हें देखते हुए मेरा मानना है कि हमारा चुनावी प्रक्रिया में शामिल होने का वक्त आ चुका है।
कश्मीर मुद्दे पर आज से पहली मेरी क्या राय थी, वह सार्वजनिक है। जमात-ए-इस्लामी और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्यकों ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए। बतौर कश्मीरी हमें अतीत में नहीं बल्कि वर्तमान में जीना चाहिए और एक बेहतर भविष्य के लिए आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।कुलगाम विधानसभा क्षेत्र में जमात-ए-इस्लामी से संबधित सयार अहमद रेशी ने बतौर निर्दलीय अपना नामांकन जमा कराया है।
उन्होंने कहा कि हम ऐसा वातावरण बनाना चाहते हैं जहां सुख शांति हो, जहां बेटा अपने मां बाप की आंखों का तारा बने। जहां तमाम बुराईयां खत्म हों, बुराइयों को खत्म करने के लिए हम आगे आए हैं।उन्होंने कहा कि इज्जत और जिल्लत अल्लाह के हाथ में है। मैं लोगों से अपील करता हूं कि आप अपने जमीर को टटोल कर देखें और फिर तय करें कि किसे वोट देना है। मैं एक शिक्षक रहा हूं और मैंने हमेशा समाज की भलाई के लिए काम कर रहा हूं।
मैं निर्दलीय मैदान में हूं, पता नहीं चुनाव चिहृन क्या मिलेगा। जो भी निशान मिलेगा, लोग तैयार हैं, यहां एक मूवमेंट चलेगी, एक ऐसा अभियान चलेगा बदलाव के लिए। जिला कुलगाम के देवसर विधानसभा क्षेत्र से बतौर निर्दलीय नामांकन जमा कराने वाले नजीर अहमद बट भी जमात-ए-इस्लामी से संबधित रहे हैं।
सरजन अहमद भी लड़ रहे विधानसभा चुनाव
साल 2016 में शोपियां व कुलगाम में हिंसक प्रदर्शनों के आयोजन में मुख्य भूमिका निभाने वाले सरजन अहमद बागे उर्फ सरजन बरकती उर्फ आजादी चाचा भी जिला शोपियां के जेनपोरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। वह टेरर फंडिंग के आरोप में जेल में बंद हैं और उनका नामांकन उनकी बेटी सुगरा बरकती ने जमा कराया है।
कश्मीर मामलों के जानकार बिलाल बशीर ने कहा कि प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी की पृष्ठभूमि वाले अभी तक चार प्रत्याशियों का पता चला है, उन्होंने अपने नामांकन जमा कराए हैं।देवसर, पुलवामा, कुलगाम में जमात-ए-इस्लामी का अच्छा खासा कैडर है। इसलिए इन सीटों पर मतदान और चुनाव परिणाम दोनों ही दिलचस्पी का विषय रहेगा।कुलगाम में जहां माकपा नेता मोहम्मद युसुफ तारगामी लगातार चार बार चुनाव जीते हैं, वहां अब जमात-ए-इस्लामी का एक पूर्व नेता मैदान मे हैं जो तारीगामी की पांचवी जीत की संभावना को समाप्त कर सकता है।
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