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J&K Election 2024: परिवारवाद की सियासत से मुक्ति नहीं, NC-PDP ने उतारे नए चेहरे मैदान में, बाप-दादा रह चुके हैं विधायक-मंत्री

JK Election 2024 जम्मू-कश्मीर में परिवारवाद की सियासत जोरों से चल रहा है। बदलाव की राजनीति करने वाले भी अपने परिजनों को टिकट देने से नहीं चूकते हैं। प्रदेश की सियासत पर काफी हद तक अब्दुल्ला परिवार का दबदबा रहा है। शेख अब्दुल्ला के बाद फारूक और उमर अब्दुल्ला परिवार की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं। पीडीपी प्रमुख बेटी इल्तिजा को चुनावी मैदान में उतारा है।

By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Sun, 01 Sep 2024 05:33 PM (IST)
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&K Election 2024: जम्मू-कश्मीर को परिवारवाद की सियासत से मुक्ति नहीं, अनुच्छेद 370 से तो मिल गई।
नवीन नवाज, श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 और 35-ए की बेड़ियों से आजादी मिल चुकी है, लेकिन परिवारवाद की सियासत से मुक्ति नहीं मिल रही है। नेकां और पीडीपी जम्मू कश्मीर में विरासत की सियासत के चेहरे माने जाते हैं पर परिवार की सियासत करने में कोई भी दल पीछे नहीं है।

यही वजह है कि नेकां-पीडीपी के साथ जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी, भाजपा समेत अन्य दलों ने भी पुराने नेताओं के स्वजन को जमकर टिकट बांटे हैं। प्रदेश में विधानसभा की 90 सीटों पर मतदान होना है। भाजपा, नेकां, पीडीपी जैसे दलों ने काफी प्रत्याशी तय कर लिए हैं।

51 सीटों पर प्रत्याशी घोषित- एनसी

पहले दौर के लिए नामांकन का कार्य पूरा हो चुका है। चुनाव में शामिल विभिन्न दलों ने लगभग बड़ी संख्या में उम्मीदवार तय कर लिए हैं। इनमें नेकां सबसे आगे है। नेकां ने 51 विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशी घोषित किए हैं और इनमें से 26 उम्मीदवार ऐसे हैं जिनके बाप-दादा विधायक या मंत्री रह चुके हैं या फिर नेकां या अन्य दल में मजबूत स्थिति रखते थे। नेकां और पीडीपी के राजनीतिक परिवारों के पांच चेहरे इस विधानसभा चुनाव से राजनीति में पदार्पण कर रहे हैं।

अपनों को टिकट देने पर सभी पार्टी देती है ये तर्क

अन्य दल भी नेताओं के रिश्तेदारों पर ही मेहरबानी लुटा रहे हैं। बदलाव की राजनीति की बात करने वाले भी इसमें पीछे नहीं हैं। राजनीतिक मामलों के जानकार संत कुमार शर्मा ने कहा कि परिवारवाद की सियासत से राजनीतिक दल आसानी से छुटकारा नहीं पा सकते।

नेता का बेटा चुनाव लड़ना चाहता है या राजनीति मे आगे बढ़ना चाहता है तो आप उसे रोक नहीं सकते हैं। अभी भी स्थिति यह है कि एक बार मंत्री या विधायक बनने के बाद नेता उस क्षेत्र को अपना इलाका मान लेते हैं। साथ ही लोग भी उनसे वैसा ही व्यवहार करते हैं।

इसीसे ही परिवारवाद की राजनीति आगे बढ़ती है। क्षेत्रीय दलों में यह ज्यादा होती है, क्योंकि उनके नेताओं का अपने इलाके में अपने निजी, पारिवारिक या जातीय संबंधो के आधार पर प्रभाव ज्यादा होता है। राजनीतिक दल यही तर्क देते हैं कि वह जीतने वाले उम्मीदवार पर दांव लगाते हैं।

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  1. अब्दुल्ला परिवार आजादी के बाद से प्रदेश की सियासत पर काफी हद तक काबिज रहा। शेख अब्दुल्ला के बाद फारूक अब्दुल्ला और अब उमर अब्दुल्ला परिवार की विरासत की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं।
  2. पूर्व मंत्री अली मोहम्मद सागर ने अपने बेटे सलमान सागर को भी चुनाव मैदान में उतारा है। दोनों बाप-बेटा श्रीनगर में हजरतबल और खनयार विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। सलमान श्रीनगर के मेयर रह चुके हैं।
  3. सोनावारी से नेकां उम्मीदवार हिलाल अकबर लोन के पिता मोहम्मद अकबर लोन सांसद और नेकां सरकार में मंत्री रहे हैं।
  4. मुफ्ती परिवार भी पीढ़ी दर पीढ़ी खानदानी सियासत को आगे बढ़ा रहा है। परिवार की तीसरी पीढ़ी के तौर पर इल्तिजा मुफ्ती को चुनाव में उतारा गया है। वह गृह सीट अनंतनाग के बिजबेहाड़ा से नामांकन कर चुकी हैं।
  5. अनंतनाग से पीडीपी प्रत्याशी महबूब बेग के पिता मिर्जा अफजल बेग नेकां सरकार में मंत्री रहे हैं। 2014 में चुनाव के वक्त वह पीडीपी में शामिल हो गए थे।
  6. महबूबा ने अपने मामा सरताज मदनी को भी चुनाव मैदान में उतारा है।
  7. नेकां के मोहम्मद शफी उड़ी के पुत्र सज्जा शफी भी उड़ी से चुनाव में उतरकर राजनीति में कदम रखेंगे।

पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी के कारण ही राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं में असंतोष देखा जाता है। इस वजह से निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।

- रमीज मखदूमी, कश्मीर मामलों के जानकार

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