Jammu Kashmir Election 2024: न पाकिस्तान का जिक्र, न अलगाववाद की बात; जम्मू-कश्मीर में क्या हैं चुनावी मुद्दे?
Jammu and Kashmir Assembly Elections जम्मू-कश्मीर में चुनाव को लेकर मतदाताओं में उत्साह बरकरार है। आज पहले चरण की वोटिंग है। पहले चरण में 24 विधानसभा सीटों पर चुनाव हो रहा है। यह चुनाव दस साल बाद हो रहा है। वर्ष 1987 के बाद यह पहला अवसर है जब जम्मू-कश्मीर में विशेषकर कश्मीर घाटी में चुनाव को लेकर एक नया उत्साह नजर आ रहा है।
नवीन नवाज, श्रीनगर। Jammu and Kashmir Assembly Elections:आखिर वह घड़ी आ गई, जिसका यहां हर किसी को इंतजार था। बुधवार को सूर्योदय के साथ जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र का एक नया अध्याय शुरू हुआ। आज विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 24 सीटों पर मतदान की प्रक्रिया शुरू हुई।
दूसरे चरण का मतदान 25 सितंबर और तीसरे व अंतिम चरण का मतदान पहली अक्टूबर को होगा। यह चुनाव आम चुनाव से पूरी तरह अलग है और यह जम्मू-कश्मीर की राजनीति को एक नया मोड़ देगा। वर्ष 1987 के बाद यह पहला अवसर है जब जम्मू-कश्मीर में विशेषकर कश्मीर घाटी में चुनाव को लेकर एक नया उत्साह और उल्लास नजर आ रहा है।
राष्ट्रवाद और अलगाववाद के वर्चस्व का मुद्दा कोसों दूर
कहीं पाकिस्तान या अलगाावाद का जिक्र तक नहीं हो रहा। बीते 37 वर्ष में पहली बार चुनाव में भाग लेना या भाग न लेना, जीवन-मरण का प्रश्न नहीं है। यह पहला चुनाव है जिसमें राष्ट्रवाद और अलगाववाद के वर्चस्व की लड़ाई नजर नहीं आ रही है, अगर है तो विकसित जम्मू-कश्मीर के सपने को पूरी तरह साकार करने की।
चुनाव में विकास, रोजगार, भ्रष्टाचार, स्थानीय अस्मिता जैसे मुद्दों को प्राथमिकता मिल रही है। जम्मू-कश्मीर में लगभग 10 वर्ष बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, जबकि केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है। वर्ष 1987 के बाद घाटी में चुनाव प्रक्रिया बहिष्कार की राजनीति से प्रभावित रही है। मतदान में भाग लेना जिहादियों को अपने घर दावत देना माना जाता था। कर्मचारी भी चुनाव में ड्यूटी से बचते थे।
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खैर, लोकसभा चुनाव 2024 में रिकॉर्ड मतदान ने कश्मीर में बदले वातावरण का संकेत दिया जिसकी पुष्टि विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों के प्रचार अभियान ने की है। जम्मू-कश्मीर में क्षेत्रीय दलों का अब तक बोलबाला रहा है।
अलगाववादियों के चुनाव बहिष्कार के कारण कई राष्ट्रीय दलों के नेता, उम्मीदवार और समर्थक भी घर बैठना पसंद करते थे। कांग्रेस, भाजपा और लोजपा इसमें अपवाद रही हैं। अब बदले माहौल में क्षेत्रीय, राष्ट्रीय दलों के साथ निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या बढ़ चुकी है।
प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी भी कई निर्दलीय उम्मीदवारों का खुलेआम समर्थन कर रही है या यूं कहिए कि प्रतिबंधित जमात भी परोक्ष रूप से मैदान में है। टेरर फंडिंग के आरोपित सांसद इंजीनियर रशीद की पार्टी अवामी इत्तिहाद पार्टी भी कश्मीर में कई मिथकों को भंग करती नजर आ रही है।
कश्मीर घाटी में पहले चरण के मतदान के लिए मंगलवार को मतदान केंद्रों के लिए रवाना होते मतदान कर्मचारी l
बदले माहौल में विकास, रोजगार, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को मिल रही है प्राथमिकता
कई बड़े नेताओं के लिए अस्तित्व बचाए रखने का संकट भी
इस चुनाव में अब्दुल्ला, लोन और मुफ्ती परिवार के लिए अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखने का संकट भी है। यही कारण है उमर अब्दुल्ला और सज्जाद गनी लोन दो-दो सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं।
पीडीपी अध्यक्षा की पुत्री इल्तिजा मुफ्ती भी चुनाव लड़ रही हैं। उनकी जीत की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए ही पीडीपी नेतृत्व ने उन्हें अपनी पारंपरिक सीट बिजबिहाड़ा में प्रत्याशी बनाया है।
वहीं भाजपा जम्मू संभाग से आगे कश्मीर में चुनावों को पूरी गंभीरता से लेती नजर आ रही है। पहले भी उसके उम्मीदवार कश्मीर में चुनाव लड़ते आए हैं, लेकिन जीत की मंशा के साथ पहली बार लड़ रहे हैं।
प्रदेश में अब बदल चुका राजनीतिक परिदृश्य
कश्मीर मामलों के जानकार इमरान मीर ने कहा कि विधानसभा चुनाव जम्मू-कश्मीर में एक नयी सुबह का आगाज है। चुनाव परिणाम क्या होगा, यह मतगणना के बाद तय होगा, लेकिन प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी और इंजीनियर रशीद की भागीदारी ने इस चुनाव को रुचिकर बना दिया है।