जम्मू संभाग की दो सीटों पर जहां भाजपा ने जीत हासिल की। वहीं कश्मीर संभाग की दो संसदीय सीटों पर नेकां ने जीत हासिल की। वहीं एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की है। कश्मीर की तीनों सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला था। पीडीपी-नेकां ने जहां अपने विरोधियों को भाजपा का एजेंट बताते हुए अनुच्छेद 370 केा हटाए जाने के खिलाफ मतदान की अपील की।
नवीन नवाज, श्रीनगर। जम्मू कश्मीर में संसदीय चुनाव ने कई राजनीतिक आकांक्षाओं और वास्तविकताओं को उजागर किया है। इसने जम्मू कश्मीर में मजबूत होती लोकतंत्र की जड़ों की पुष्टि करते बताया कि आम कश्मीरी वोट की ताकत को पहचान चुका है।
उसने परिवारवाद की सियासत को गुडबाय बोलते हुए दो पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की हार की पटकथा लिखने के साथ ही सज्जाद गनी लोन को भी ठेंगा दिखाया है। जनता ने निर्दलीय इंजीनियर रशीद की जीत का जश्न मनाया तो नेकां के आगा सैयद रुहुल्ला को उसकी साफगोई का इनाम दिया है।
जुगल और जितेंद्र सिंह को स्थिरता और विकास की गाड़ी बनाए रखने का अवसर देते हुए साफ कर दिया कि जम्मू कश्मीर में अगर कोई जीता है तो सिर्फ लोकतंत्र। यह भाजपा की नहीं , यह भारतीय लोकतंत्र की जीत है।
राजनीतिक दलों का पहला इम्तिहान
पांच अगस्त 2019 के बाद जम्मू कश्मीर में केंद्र सरकार से लेकर स्थानीय राजनीतिक दलों के लिए यह पहला बड़ा इम्तिहान था। तमाम आशंकाओं के विपरीत चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह शांत रहीं, कहीं भी अलगाववादियों या आतंकियों के चुनाव बहिष्कार का एलान सुनने को नहीं मिला। हर जगह खूब चुनावी रैलियां हुई।
इंटरनेट मीडिया पर चुनावी रैलियों में नाचते युवाओं के वीडियो, अपने प्रत्याशियों के समर्थन में युवा समर्थकों के मीमस और रील्स छाए रहे।
मतदान का रिकॉर्ड टूटा और 35 वर्ष बाद कश्मीर में सबसे अधिक 58.46 प्रतिशत मतदान हुआ है। श्रीनगर,बारामुला व अनंतनाग सीट पर क्रमश: 38.49, 59.1 और 54.84 प्रतिशत मतदाओं ने अपने मताधिकार का प्रयाेग कर सभी को अचंभित कर दिया।
जेल में रहकर हराया
मौजूदा चुनाव में सबसे बड़ा उल्टफेर बारामुला संसदीय सीट परहुआ है। जहां जेल में बंद निर्दलीय इंजीनियर रशीद ने सज्जाद गनी लोन और नेशनल कान्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला को हरा दिया। दूसरा उल्टफेर अनंतनाग-राजौरी संसदीय सीट पर हुआ है,जहां महबूबा मुफ्ती को हार का मुंह देखना पड़ा है। हालांकि इंजीनियर रशीद को रेस का काला घोड़ा माना जा रहा था,लेकिन उमर अब्दुल्ला हारेंगे यह किसी को उम्मीद नहीं थी।
कश्मीर में तीन सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला
कश्मीर की तीनों सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला था। पीडीपी-नेकां ने जहां अपने विरोधियों को भाजपा का एजेंट बताते हुए अनुच्छेद 370 केा हटाए जाने के खिलाफ मतदान की अपील की, वहीं पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और अपनी पार्टी ने परिवारवाद की सियासत को समाप्त करने, कश्मीर में एक नए दौर की बहाली के लिए वोट मांगा।इन दोनों दलों का भाजपा का साथ भी मिला। इसके अलावा उत्तरी कश्मीर में सज्जाद गनी लोन का लाइफ विद डिग्नटी और इंजीनियर रशीद का जेल का बदला वोट से, जुल्म का बदला वोट से का नारा खूब गूंजा।
कश्मीरियों की रिहाई का गूंजा नारा
दक्षिण कश्मीर के कुछ हिस्सों और श्रीनगर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के वहीद उर रहमान परा का जेल फ्री कश्मीर, केस फ्री कश्मीर और जेलाें में बंद कश्मीरियों की रिहाई का नारा सुनाई दिया। युवा मतदाताओं की भीड़ सिर्फ रैलियों तक सीमित नहींरही है बल्कि मतदान केंद्र तक वह पहुंचे।कश्मीर मामलों के जानकार बिलाल बशीर ने कहा कि मुझे इंजीनियर रशीद की जीत या महबूबा की हार पर कोई हैरानी नहीं हुई है। आप मानें या न मानें पीडीपी को कश्मीर के लोगों ने भाजपा के साथ गठजोड़ के लिए पूरी तरह माफ नहीं किया है।
इसके अलावा इंजीनियर रशीद और पीडीपी के वहीद उर रहमान परा की रैलियों में गूंजे नारों की बात करेंगे तो वह किसी को भी अलगाववादी लग सकते हैं,लेकिन एक बात ध्यान में रखें कि यह नारा कश्मीर के नौजवानों ने दिया है,जिनकी आयु 18 से 35 वर्ष के बीच है जो आतंकी हिंसा के दौर में जन्मे और पले बड़े हैं। मतलब यह कि वह भारतीय संविधान और लोकतंत्र की ताकत को पहचानते हैं।
आगा सैयद रुहुल्ला को भी संसद का टिकट
वह दोगले नारों की सियासत में यकीन नहीं करता। वह सीधी और साफ बात कहने वालों को अपना प्रतिनिधि चुनना चाहता है। इसलिए अगर कश्मीरी मतदाता ने बारामुला में इंजीनियर रशीद को जिताया है तो श्रीनगर में नेशनल कान्फ्रेंस के आगा सैयद रुहुल्ला को भी संसद का टिकट दिया है।
आगा सैयद रुहुल्ला नेशनल कान्फ्रेंस के एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन्होने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के खिलाफ अपने पार्टी नेतृत्व को ही लताड़ते हुए कहा था कि बीच का केाई रासता नहीं होता।आपको इस तरफ या उस तरफ होना पड़ेगा। उनकी यह साफगोई श्रीनगर में नेकां को अपना किला बचाने में काम आयी है। जेल में बंद इंजीनियर रशीद के समर्थन में जो नारा गूंजा, वह कश्मीर के हर घर को प्रभावित करता है। इसके अलावा पीडीपी और नेकां ने आम मतदाताओं के मूड को सही तरीके से नहीं पड़ा था।
कश्मीर में दल विशेष की चुनाव जीते नहीं जीता जा सकता चुनाव
अपनी पार्टी के सैयद मोहम्मद अल्ताफ बुखारी और पीपुल्स कान्फ्रेंस के सज्जाद गनी लोन के लिए भी यह चुनाव सबक है कि कश्मीर में आप किसी दल विशेष की आलोचना कर चुनाव नहीं जीत सकते।सैयद अमजद शाह ने कहा कि यह चुनाव पूरी तरह भयमुक्त वातावरण में हुआ है। चुनाव बहिष्कार नहीं हुआ है। जम्मू और उधमपुर में जहां भाजपा की जीत पहले ही दिन से तय थी, वहीं कश्मीर की तीन सीटों को लेकर कोई भी निश्चिंत नहीं था और हुआ भी यही।
उमर और महबूबा की हार ने परिवारवाद की सियासत से कश्मीरियों के मोहभंग की पुष्टि करने के साफ कर दिया है वह सीधी और स्पष्ट बात करने वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता देते हैं।
यह महबूबा-उमर की हार नहीं, लोकतंत्र की जीत है
चुनाव परिणाम के बाद अब कश्मीर की सियासत में व्यापक बदलाव आएगा,क्योंकि नेशनल कान्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को ही नहीं अपनी पार्टी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और भाजपा को भी कश्मीर में अपनी रणनीति नए सिरे से तय करनी होगी।
कश्मीर में मतदाता किसी राजनीतिक दल पर नहीं बल्कि भारतीय संविधान और लोकतंत्र पर विश्वास जताते हुए वोट डालने निकले थे। इसलिए आज का चुनाव परिणाम अलगाववादी विचारधारा के समर्थक इंजीनियर रशीद की जीत नहीं है, यह महबूबा या उमर की हार नहीं है, यह सिर्फ और भारतीय लोकतंत्र की जीत है।
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