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Article 370 हटने के बाद हुए बड़े बदलाव, फिर भी कई चुनौतियों से जूझ रहा जम्मू-कश्मीर

जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir News) में Article 370 खत्म होने के पांच साल पूरे हो चुके हैं। इन 5 सालों पर में कई अहम और बड़े बदलाव की दिशा में जम्मू-कश्मीर आगे बढ़ा है लेकिन अभी भी चुनौतियां कम नहीं हुई है। विकास के क्षेत्र में जम्मू-कश्मीर तेजी से आगे बढ़ रहा है लेकिन आतंकवाद और नशे के गठजोड़ से मुक्ति पाना अभी बाकी है।

By Jagran News Edited By: Nitish Kumar Kushwaha Updated: Tue, 06 Aug 2024 12:41 PM (IST)
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आर्टिकल 370 हटने के 5 साल बाद भी कई चुनौतियों का जम्मू कश्मीर सामना कर रहा है। (जागरण फाइल फोटो)

नवीन नवाज, श्रीनगर। ऐतिहासिक लाल चौक में स्थित घंटाघर के शिखर पर अब शान से तिरंगा लहराता है, घंटाघर के नीचे आम कश्मीरी ही नहीं, देश-विदेश से आने वाले सैलानी भी निर्भय होकर सेल्फी लेते हैं। पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

आजादी और पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा झेलम की लहरों में कहीं गुम हो चुका है। स्थानीय लोगों ने हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में पूरे उत्साह से न सिर्फ भाग लिया बल्कि बीते 35 वर्ष में अब तक के सबसे ज्यादा 58.46 प्रतिशत मतदान का रिकॉर्ड भी बनाया।

1 लाख 26 हजार करोड़ के मिले निवेश प्रस्ताव

आतंकी हिंसा अपने न्यूनतम स्तर पर जा पहुंची है। सुरक्षा एवं विश्वास के वातावरण की बहाली के बीच बीते पांच वर्ष में प्रदेश में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए 4.74 लाख लोगों को रोजगार देने की अपेक्षित क्षमता के साथ 1,26,582 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव भी प्राप्त हुए हैं।

यह सब पांच अगस्त 2019 को केंद्र सरकार की ओर से जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाने के ऐतिहासिक निर्णय से संभव हुआ है, लेकिन अभी भी चुनौतियां कम नहीं हुई हैं।

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विकास के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा जम्मू-कश्मीर

बीते पांच वर्ष के दौरान कश्मीर में कई सिनेमा हाल खुले हैं, राष्ट्रीय खेल प्रतियोगताएं हो रही हैं, जी-20 सम्मेलन का सफल आयोजन, स्कूल कॉलेजों में छात्रों की नियमित उपस्थिति ने सभी के आत्मविश्वास में नई भावना को बढ़ाया है।

इससे पता चलता है कि जम्मू-कश्मीर की जनता सीमा पार से गोलीबारी, आतंकी हिंसा, बंद, पथराव और हड़ताल व आजादी के नारों से तंग आ चुकी थी। जम्मू-कश्मीर में अब सभी केंद्रीय कानून लागू हैं और अन्य पिछड़ा वर्ग को ही नहीं अनुसूचित जनजातियों को भी उनका हक मिला है।

अभी भी कम नहीं हुई चुनौतियां

बदलाव के इस दौर में प्रदेश के लिए चुनौतियां भी कम नहीं हुई हैं। प्रॉक्सी युद्ध में मुंह की खाने और कश्मीरियों को भारत के खिलाफ खड़ा करने के अपने एजेंडे की नाकामी से हताश आतंकी संगठनों और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अब जम्मू संभाग में हिंसा को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है।

इसके अलावा आतंकवाद व नशे के गठजोड़ की चुनौती भी सामने आई है। इससे निपटने के लिए सुरक्षा एजेंसियों ने एक प्रभावी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। जम्मू-कश्मीर में प्रशासनिक भ्रष्टाचार और प्रशासन में आतंकी व अलगाववादी तंत्र एक बड़ी समस्या रहा है।

भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों और कर्मियों के खिलाफ निरंतर कार्रवाई के साथ जिस तरह से सरकारी तंत्र में छिपे बैठे आतंकियों और अलगाववादियों के समर्थक अधिकारियों व कर्मियों को सेवामुक्त किया जा रहा है, उससे राष्ट्रवादी तत्वों को मजबूती मिली है।

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विधानसभा चुनाव और राज्य के दर्जा की मांग बाकी

जम्मू-कश्मीर में बीते पांच वर्ष में लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूती मिली है। निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन और नए राजनीतिक गठबंधनों ने सत्ता की गतिशीलता को बदल दिया है। स्थानीय निकायों और पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत किया गया है, लेकिन इसके लिए चुनाव पिछले साल से होने हैं।

विधानसभा चुनाव और राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग भी बाकी है। हालांकि, प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री कई बार यकीन दिला चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा यथोचित्त समय पर मिलेगा।

शरीयत बहाली की सोच को रोकना भी चुनौती

जमात-ए-इस्लामी समेत कई अन्य अलगाववादी संगठन और उनके नेता अब मुख्यधारा में शामिल होने की बात कर रहे हैं, जिससे सभी उत्साहित हैं और केंद्र सरकार भी, लेकिन जिन संगठनों का मूल उद्देश्य जम्मू-कश्मीर में निजाम-ए-मुस्तफा और शरीयत बहाली रहा है, वह उसे पाने के लिए वोट की ताकत का इस्तेमाल कर सकते हैं, इस सोच को रोकना सबसे बड़ी चुनौती है।

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